दो खोजे हैं. एक है आवश्यकता की पूर्ति की खोज और दूसरी है सुख की खोज. आवश्यकता की पूर्ति पदार्थ से ही संभव है, अध्यात्म से वह नहीं हो सकती. सुख की उपलब्धि अध्यात्म से ही संभव है, पदार्थ से नहीं हो सकती. खेत-खलिहानों में या बाजार में जाने पर आवश्यकता की पूर्ति होती है.
पदार्थ के किसी भी क्षेत्र में जाने पर, पदार्थ की सीमा में जाने पर, यह सच है कि आवश्यकता की पूर्ति होगी. पदार्थ का समूचा क्षेत्र आवश्यकता-पूर्ति का क्षेत्र है. अध्यात्म का क्षेत्र इससे बिल्कुल उल्टा है. वह है सुख-पूर्ति का क्षेत्र. मनुष्य इस विषय में भ्रांत है. जो आवश्यकता-पूर्ति का क्षेत्र है, उसे उसने सब कुछ देने वाला मान लिया है, दुख से छुटकारा देने वाला मान लिया.