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एलएन मिश्र हत्याकांड का फैसला 8 दिसंबर तक टला

नयी दिल्ली : दिल्ली की एक अदालत ने करीब चार दशक पहले 1975 में तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की समस्तीपुर में हुई हत्या के मामले में फैसला फिर एक बार 8 दिसंबर तक के लिए टाल दिया है. इससे पहले जिला न्यायाधीश विनोद गोयल ने 12 सितंबर को इस सनसनीखेज हत्याकांड के मुकदमे […]

नयी दिल्ली : दिल्ली की एक अदालत ने करीब चार दशक पहले 1975 में तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की समस्तीपुर में हुई हत्या के मामले में फैसला फिर एक बार 8 दिसंबर तक के लिए टाल दिया है. इससे पहले जिला न्यायाधीश विनोद गोयल ने 12 सितंबर को इस सनसनीखेज हत्याकांड के मुकदमे की सुनवाई पूरी की थी.
इस मुकदमे में अंतिम बहस सितंबर, 2012 में शुरू हुई थी. उन्होंने सीबीआइ और चार अभियुक्तों के वकील की दलीलें सुनने के बाद फैसले के लिए 10 नवंबर की तारीख निर्धारित की थी. समस्तीपुर जंकशन पर दो जनवरी, 1975 को ब्रॉडगेज के उद्घाटन समारोह के दौरान बम विस्फोट हुआ था. तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र विस्फोट में बुरी तरह जख्मी हो गये थे और अगले दिन उनका निधन हो गया था.
इस हत्याकांड की सुनवाई के दौरान अभियोजन के 161 गवाहों और बचाव पक्ष के 40 से अधिक गवाहों की गवाही हुई इस हत्याकांड में आनंद मार्ग समूह के चार सदस्यों के साथ ही उस सयम 24 वर्ष के रहे वकील रंजन द्विवेदी का भी आरोपित के रूप में नाम शामिल था. रंजन के अलावा इस मामले में संतोषानंद अवधूत, सुदेवानंद अवधूत और गोपालजी अभियुक्त हैं. एक अभियुक्त की मुकदमे की सुनवाई के दौरान ही मृत्यु हो गयी थी. इन अभियुक्तों ने इस हत्याकांड में उनके खिलाफ चल रहा मुकदमा निरस्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने 17 अगस्त, 2012 को उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा था कि 37 साल तक मुकदमे की सुनवाई पूरी नहीं हो सकने के आधार पर इसे खारिज नहीं किया जा सकता है. इस हत्याकांड में पटना में सीबीआइ की अदालत में एक नवंबर, 1977 को आरोपपत्र दाखिल किया गया था. इस मुकदमे को 1979 में शीर्ष अदालत से अटार्नी जनरल के अनुरोध पर दिल्ली की अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया था.
गोपालजी के अलावा मिश्र हत्याकांड में आरोपित सभी अभियुक्त 20 मार्च, 1975 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एएन रे की हत्या का प्रयास मामले में भी आरोपित थे. संतोषानंद व सुदेवानंद को न्यायमूर्ति रे मामले में एक आरोपित विक्रम के इकबालिया बयान के आधार पर आरोपित बनाया गया था. इस मामले में विक्रम सीबीआइ के लिये गवाह बन गया था.
न्यायमूर्ति रे की हत्या के प्रयास के अपराध में निचली अदालत ने संतोषानंद और सुदेवानंद को 10-10 साल की बामशक्कत कैद की सजा सुनायी थी, जबकि द्विवेदी को चार साल की सजा सुनायी गयी थी. इन सभी ने इस फैसले को दिल्ली हाइकोर्ट में चुनौती दी थी. इन सभी दोषियों का तर्क था कि विक्रम बाद में अपने इकबालिया बयान से मुकर गया था. हाइकोर्ट ने हत्या के प्रयास के अपराध में इसी साल अगस्त में संतोषानंद और सुदेवानंद की सजा बरकरार रखी थी, लेकिन रंजन द्विवेदी को बरी कर दिया था.
आनंद मार्गी पर आरोप, साथी को छुड़ाने के लिए किया था हमला
जिस समय रंजन द्विवेदी पर मामला दर्ज किया गया था, उस समय वे 27 साल के थे, अब वे 67 साल के हैं. उन्होंने खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए 39 गवाह पेश किये थे, जिसमें से 31 की मौत हो चुकी है.
गोपालजी को छोड़ कर बाकी सभी आरोपी तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया अजीत नाथ रे की हत्या की कोशिश के मामल में भी दोषी साबित हुए थे. एडवोकेट रंजन द्विवेदी को चार साल और संतोषानंद व सुदेवानंद को 10-10 साल की कठोर सजा सुनायी गयी थी. आरोप है कि संगठन ने अपने साथी को छुड़ाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने को किया था हमला.

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