सोना शुरू से ही पूरी दुनिया के लिए सबसे आकर्षक धातु रहा है. भारत में तो इसका इतिहास हजारों साल पुराना है. हम भारतीय सोने को शुभ मानते हैं, इसलिए यहां परंपरागत रूप से हर शुभ अवसर पर सोने के आभूषणों की खरीद की जाती है. लोग सोना इसलिए भी खरीदना चाहते हैं क्योंकि सोना मुसीबत के समय काम आ सकता है और इसकी कीमत समय के साथ बढती जाती है.
लेकिन हाल के दशक में सोने की कीमत में इतनी ज्यादा उछाल आयी कि सोना आम आदमी की पहुंच से बाहर होने लगा था.बदलते वक्त के साथ सोना केवल आभूषणों के लिए नहीं रहा बल्कि लोगों ने इसे निवेश करने का सबसे फायदेमंद स्रोत मान लिया.साल 2002 से ही सोने को लेकर निवेशकों ने ज्यादा रूचि दिखानी शुरू की जिसकी वजह से सोने के प्रति निवेश का रुझान बढ़ने लगा.हमारे लिए ये जानना जरूरी है कि सोने की कीमते क्यों बढती और घटती हैं और इन हालत में सोना खरीदना कितना उपयोगी है.
डॉलर तय करता है सोने की कीमत
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोने का व्यापार डॉलर में किया जाता है. इसलिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा अपने डॉलर के लिए किये गए किसी भी निर्णय का असर सोने पर पड़ता है. पिछले कुछ सालों से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में बनी हुयी गिरावट से इसे उबारने के लिएअमेरिका के फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों को अत्यंत निचले स्तर पर रखा था और बाजार से बांड्स खरीदकर वैश्विक बाज़ार में अत्यधिक तरलता यानि लिक्विडिटी की बाढ़ ला दी. इस वजह से डॉलर अंतरराष्ट्रीय रूप में निचले दायरे में सीमित रहा.
अब चूंकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था इस मंदी से उबरने का संकेत दे रही है तो अमेरिकी केन्द्रीय बैंक ने पहले से दी जा रही छूटों में कटौती करना शुरू कर दिया है. इसे अर्थव्यवस्था के लिए वसूली के संकेत के रूप में देखा जा रहा है.
जानिये क्यों गिर रहे हैं सोने के दाम !
अंतरराष्ट्रीय पैमाना यही रहा है कि डॉलर अगर मजबूत होता है तो सोने के दाम गिरते हैं. ऐसे में फेडरल रिजर्व की कोशिशों से डॉलर जितना मजबूत होगा, सोने के भाव उसी अनुरूप नीचे आयेंगे. फिलहाल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोने के भाव 35 प्रतिशत गिरे हैं मगर भारत में इसका फायदा अभी 19 प्रतिशत के आस-पास ही दिखाई दे रहा है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि डॉलर का मूल्य भारतीय रुपये के मुकाबले बढ़ा हुआ है और सोने पर सरकार द्वारा लगाये गए आयात शुल्क की वजह से भी जनता को वैश्विक स्तर पर सोने के गिरे मूल्य का पूरा लाभ अभी नहीं मिल पा रहा है.
जानकारों के मुताबिक आने वाले समय में अमेरिकी फेडरल रिजर्व की कार्रवाइयों की वजह से डॉलर और ज्यादा मजबूत हो सकता है लेकिन भारत में इसका असर कम करने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक भी अपनी तैयारियां कर चुके हैं. ऐसे में ये उम्मीद है कि वैश्विक रूप से डॉलर के मजबूत होने का ज्यादा असर भारतीय रुपये पर नहीं पड़ेगा.
भारत में कैसे और सस्ता हो सकता है सोना !
सरकार ने देश में कई क्षेत्रों में एफडीआई को मजूरी दी है जिससे देश के बाज़ार में डॉलर का प्रवाह बढ़ेगा और घरेलू अर्थव्यवस्था के ऊपर उठने उम्मीद है. अगर ऐसा होता है तो अर्थव्यवस्था की रेटिंग भी बढ़ेगी. ऐसा होने पर रूपया और मजबूत होगा. एक्सपर्ट मानते हैं कि सरकार इसी सोच के साथ काम कर रही है. इसलिए डॉलर के मजबूत होने पर भी हमारे रुपये पर इसका ज्यादा असर नहीं दिखाई दे रहा. अगर सरकार इस रास्ते पर सफलता से आगे बढती रही तो इससे न सिर्फ रुपये का डॉलर के मुकाबले अवमूल्यन रुकेगा बल्कि ऐसा भी हो सकता है कि रूपया पहले से ज्यादा मजबूत हो जाये. शेयर मार्केट में उछाल ने भी निवेशकों में भरोसे को वापस लौटाया है और इसकी वजह से वो सोने की जगह शेयर की तरफ ज्यादा ध्यान देने लगे हैं, जिसकी वजह से सोने में निवेशकों की रूचि कम हुई है. मांग कम होने का प्रभाव भी सोने की कीमत पर पड़ रहा है और अगर ये रुझान बने रहे तो सोना स्वाभाविक रूप से नीचे आने लगेगा.
अर्थव्यवस्था से जुड़े इन घरेलु प्रयासों और अंतरराष्ट्रीय बदलाव से जुड़ी यही वो खास वजहें हैं, जिनकी वजह से ये उम्मीद की जा रही है कि सोने जैसी बेशकीमती धातु के दाम और कम हो सकते हैं जल्द ही इसका अधिकतम फायदा भारतीय ग्राहकों को भी मिलेगा.
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