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झारखंड की झलक

दर्शक संदर्भ : चौदह वर्षो का सफर झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. तीसरी बार (2004 और 2009 में पहले चुनाव हो चुके हैं). हालांकि यह विधानसभा, चौथी होगी (पहली विधानसभा, संयुक्त बिहार में हुए चुनाव के बाद गठित हुई थी). झारखंड क्यों बना था? याद करिए, तब अलग झारखंड की बात करनेवालों का एक […]

दर्शक
संदर्भ : चौदह वर्षो का सफर
झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. तीसरी बार (2004 और 2009 में पहले चुनाव हो चुके हैं). हालांकि यह विधानसभा, चौथी होगी (पहली विधानसभा, संयुक्त बिहार में हुए चुनाव के बाद गठित हुई थी). झारखंड क्यों बना था? याद करिए, तब अलग झारखंड की बात करनेवालों का एक ही तर्क था कि वे तत्कालीन बिहार के कुशासन और अराजकता से मुक्ति चाहते थे. अपनी दुनिया, अपना परिवेश, अपना माहौल, खुद गढ़ना-बनाना चाहते थे, एक बेहतर शासित राज्य की इच्छा थी.
पर वह सपनों का झारखंड आज कहां खड़ा है? झारखंड बने 14 साल हुए. 14 वर्षाे में 18752 हत्याएं हुई हैं. क्या यही झारखंड का सुशासन है? गुड गवर्नेश है? इन्हीं गुजरे 14 सालों में 9588 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं हुई हैं. क्या इसीलिए झारखंड बना था? दिल्ली में हुई एक बलात्कार की घटना (निर्भया कांड) ने देश की आत्मा को झकझोर दिया था. पर झारखंड में, जहां दुर्गा पूजा की होड़ रहती है, काली पूजा जैसी संपन्न परंपरा है यानी महिला के देवी रूप का स्मरण और नमन, वहां बलात्कार की इतनी घटनाएं हो, फिर भी राज्य में बेचैनी न बने, क्या हम ऐसा ही राज्य चाहते थे? इन गुजरे 14 वर्षो में सबने राज किया है.
सबसे अधिक शासन तो भाजपा के नेतृत्व में ही रहा, पर सब एक तरह निकले. खुदगर्ज. संविधान, कानून-मर्यादा को तहस-नहस करनेवाले. क्या हम इसलिए अलग झारखंड चाहते थे कि हमारा जीवन अपराधियों के हाथ गिरवी रहे? हम असुरक्षित रहें? हमारे घरों में लूटपाट हो, चोरी-व्यभिचार हो, और हम सुरक्षा के लिए तरसते रहें? 14 वर्षो में, झारखंड में 8149 लूट की घटनाएं हुई हैं. आखिर इन चीजों के लिए कोई जिम्मेदार है या नहीं? मानव इतिहास में राज्य या देश नाम की संस्था, इस वजह से ही बनी थी कि आम नागरिकों या लोगों को सुरक्षा मुहैया करायेगी. नागरिकों की सुरक्षा, पहला राजधर्म है. पर क्या यह झारखंड में हो रहा है? इतना होने के बाद भी कोई आवाज नहीं उठती. क्या आपने कभी खुद से पूछा कि आप अपने बंद घरों में भी सुरक्षित क्यों नहीं हैं?
डकैत कहीं भी, कभी भी आपको लूट सकते हैं. 14 वर्षो के झारखंड में 5054 डकैती की घटनाएं हुई हैं.
क्या यह डकैती किसी राजनेता, मंत्री, मुख्यमंत्री, अफसर या पुलिसवालों के घर हुई? पैसेवाले के घर हुई? क्या यह लूट, हत्या या बलात्कार भी इस शासकवर्ग के घर हुआ? नहीं. यह सबकुछ भोगने, सहने और झेलने के लिए तो वह सामान्य झारखंडी जनता है, जिसके नाम पर यह झारखंड बना. क्यों यहां इतना अपराध बढ़ रहा है? कारण सामान्य है, कोई अबूझ पहेली नहीं. झारखंड में अपराध की बाढ़ इसलिए आयी, क्योंकि सत्ता में बैठे लोगों ने अपराधियों को संरक्षण दिया.
या अपराधी भी सत्ता में बढ़े. भ्रष्ट पुलिस अफसरों को संरक्षण मिला. सरकार का पूरा जांचतंत्र और व्यवस्था, ध्वस्त और खत्म है. उसे ठीक करने का जो ईमानदार संकल्प, मनोबल और विजन चाहिए, वह झारखंड चलानेवालों के पास है ही नहीं. चाहे वो पक्ष में हों या विपक्ष में हो. जिनके अंदर शासन चलाने की क्षमता नहीं है, वे लोग सत्ता में बैठेंगे, तो यही होगा, जो झारखंड में हो रहा है. यह क्रूर तथ्य है, पर यथार्थ है.
हर झारखंडी को यह सच, जान और समझ लेना चाहिए. अगर शासक चरित्रवान नहीं होंगे, ईमानदार नहीं होंगे, उनमें विजन नहीं होगी, रकीबुलों के हाथ बिकेंगे, पैसेवालों की जी-हुजूरी करेंगे, तो फिर ऐसा ही झारखंड बनेगा? नहीं. इससे और बदतर होगा. इसलिए झारखंड को अपना भविष्य तय करना है और लोकतंत्र में तय करने का यह पावन अधिकार, जनता के हाथ है. वोट का अधिकार, मानव इतिहास में इंसान का सबसे बड़ा हथियार है. सत्ता बदल देने का अधिकार.
फालतू, पालतू, भ्रष्ट, चोर, इनइफिशिएंट को नकार देने या खारिज कर देने का यंत्र. इस यंत्र का महत्व समझिए. पर इस यंत्र को भी आधुनिक राजनीतिक तंत्र या पार्टियां, प्रभावित करना चाहती हैं. खरीदना चाहती हैं. भ्रम उत्पन्न करना चाहती हैं. हड़िया, दारू या पैसे से प्रभावित करना चाहती हैं. जाति, धर्म, क्षेत्र, बाहरी-भीतरी जैसे भावनात्मक मुद्दों पर उलझा कर जनता को ठगना चाहती हैं. उसके इस अचूक हथियार या ब्रह्मास्त्र या अमोघ शस्त्र को निष्प्रभावी करने का षड्यंत्र करती हैं.
पर याद रखिए, वोट का यह ब्रह्मास्त्र , पांच वर्षो में सिर्फ एक बार मिलता है. अगर आप वोट देने से चूके या आपके वोट को प्रभावित कर उपयोग करने में राजनेता कामयाब हुए, तो आप ठगे जायेंगे. आपका भविष्य तो दावं पर होगा ही, आपकी आनेवाली पीढ़ियों के लिए कुछ नहीं बचेगा. इसलिए याद रखिए, वोट ‘नान निगोसियबुल इंस्ट्रमेंट’ (समझौता विहीन अस्त्र) है. इस पर कोई समझौता नहीं. नेताओं के भाषण, झूठे वायदे या मोहक बातें आपका भविष्य नहीं संवारेगी. अपने विवेक से पूछिए, अपने भविष्य के लिए और अपने बच्चों के भविष्य के लिए.
फिर तय कीजिए कि किसे आप वोट देना चाहते हैं? खूब मंथन करिए और वोट देने में विवेक की आवाज सुनिए. हर औरत, मर्द और युवा-युवतियां मान ले कि अगले लगभग दो माह (चुनाव होने तक) हमारे निजी भविष्य के लिए निर्णायक है. हम चौकस रहेंगे. जगे रहेंगे. सजग रहेंगे. और इन दो महीनों में ऐसा माहौल बनाये कि हर आदमी (जिसे वोट देने का अधिकार है) वोट जरूर दे, ताकि झारखंड की तकदीर बदले. पर नेताओं के भाषणों से प्रभावित होकर नहीं, अपनी अंतरात्मा-विवेक की आवाज से.
वोट देने के पहले कैसे चीजों को सोचें-समझें? इससे संबंधित एक पुरानी कहावत है. मार्गदर्शन के तौर पर यह प्रसंग जानें. अरस्तू का वह कथन फिर हम आपको याद दिलाना चाहते हैं. अरस्तू अपनी सभाओं में लोगों से सवाल पूछते थे कि यदि आपके जूते टूट जाये, तो आप कहां जाते हैं? लोग कहते, मोची के पास. अरस्तू जिरह करते, डॉक्टर के पास क्यों नहीं? लोग हंसी उड़ाते. फिर अरस्तू पूछते, फर्नीचर बनवाना हो, तो कहां जाते हैं? लोग कहते, बढ़ई के पास. अरस्तू कहते क्यों, सुनार के पास क्यों नहीं? लोग फिर हंसते. अरस्तू को पागल करार देते. अरस्तू फिर आखिर में कहते कि यदि जूते के लिए विशेषज्ञ तलाशते हैं, फर्नीचर के लिए कुशल व विश्वसनीय लोग चाहिए होता है, तो राज्य चलाने का काम किसी ऐरे-गैरे को कैसे दे सकते हैं ? यह निर्णय लेते समय विवेक कहां चला जाता है?
अगर आप चरित्रवान, योग्य और झारखंड के लिए कुछ कर सकने की क्षमता-योग्यता रखनेवाले लोगों को नहीं चुनेंगे, तो क्या होगा? अपराध का यह तांडव घर-घर पहुंचेगा. कोई सुरक्षित नहीं बचेगा. आपको याद है कि अब तक (पिछले 14 वर्ष में, झारखंड में) सिर्फ नक्सली हमलों में 1500 लोग मारे गये हैं. जो पुलिसकर्मी या जो नक्सली मारे गये, वे इसमें शामिल नहीं हैं. झारखड के कुल 24 जिलों में से 21 जिले नक्सली प्रभाव में हैं. आप झारखंड में रहते हैं, तो आपको मालूम होगा कि झारखंड में 49 ऐसे थाने हैं, जहां चौकसी यानी नियमित गश्ती नहीं होती. ये थाने नक्सली प्रभाव में हैं. लगभग 67 थाना क्षेत्र ऐसे हैं, जहां से शाम के बाद सड़कों पर आप गुजर नहीं सकते. नक्सली बंद के आवाहन पर साइकिल नहीं चलती. दुकान नहीं खुलती. इतना भी होता तो गनीमत थी.
लेकिन नक्सली किसी भी घर में, कहीं भी अपना फरमान जारी कर सकते हैं या कह सकते हैं कि इतने लोग रात में खाना खाने पहुंचेंगे. अगर आपको जीना है, तो खाना देना होगा. शरण देनी होगी. उनके भय और आतंक के साये में घुटना होगा. क्या इसी जिंदगी के लिए झारखंड बना था? खूंटी का एक उदाहरण तो पूरे देश के लिए सबसे गंभीर नजीर है. पिछले 05 सालों में 483 लोग मारे गये. खूंटी शायद देश का एकमात्र जिला होगा, जहां पिछले पांच वर्षो में लूट (66), डकैती (48), चोरी (201) और अपहरण (46) के कुल अपराध से अधिक हत्याएं (483) हुई हैं. यहां के कई इलाकों में, दिन में भी पुलिस नहीं जाती है. उस इलाके में एक एसपी अनीस गुप्ता बेहतर तरीके से काम कर रहे थे, तो उन्हें तुरंत वहां से हटा दिया गया. यह हटाने का काम किसने किया? सरकार ने! सरकारों का राजधर्म है कि जनता को सुरक्षा दें. पर जनता को सुरक्षा देनेवाले अफसर ही सरकारों द्वारा बदले जाने लगे, तो साफ है कि सरकारें चाहती हैं कि झारखंड में अपराध हो, कुशासन रहे, अराजकता हो. चोर, भ्रष्ट और डकैत अफसर बढ़े.
याद रखिए, पिछले 14 वर्षो की इस अराजकता, कुशासन से मुक्ति का पर्व है, चुनाव. एक-एक घर में औरत, मर्द, युवा, सब बैठें और अब तक रहे अपने विधायकों का मूल्यांकन करें. पिछले 14 वर्ष में जनता के रहनुमाओं यानी विधायकों की बढ़ी ताकत, सामाजिक हैसियत, संपत्ति का खुद मूल्यांकन करें और तय करें कि अब क्या करना है?

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