राज्य के मुद्दों से होगा अंतरचार कंपनियां काम कर रही है झारखंड में मनोज सिंह , रांची राज्य की करीब दो दर्जन सीटों को कोयलाकर्मी प्रभावित करेंगे. यहां राज्य के मुद्दों के अतिरिक्त देश स्तरीय मुद्दे भी होंगे. यहां केंद्र सरकार की योजनाओं को भी मुद्दा बनाया जायेगा. कोयला कर्मियों के बीच संघर्षरत ट्रेड यूनियनें भी अपनी भूमिका तलाश रही हैं. चुनाव में वह केंद्र सरकार की योजना की अच्छाइयों और बुराइयों को भी इनके बीच ले जायेंगे. राज्य में चार कोयला कंपनियां संचालित हैं. इसमें सीसीएल, बीसीसीएल, सीएमपीडीआइ व इसीएल है. करीब दो लाख से अधिक कर्मी यहां काम करते हैं. एक-एक परिवार से पांच-पांच वोटर भी जुड़े तो करीब 10 लाख वोटर मतदान करेंगे. कई सीटों की स्थिति तो ऐसी है कि जहां 90 फीसदी से अधिक कोयला कामगार रहते हैं. जीतते रहे हैं ट्रेड यूनियन नेता कोयलाकर्मियों के हक के लिए लड़नेवाले कई नेता झारखंड में विधानसभा चुनाव लड़ते और जीतते रहे हैं. इस बार भी कई नेता झारखंड विधानसभा के चुनाव में किस्मत अजामायेंगे. राज्य के वर्तमान वित्त मंत्री राजेंद्र सिंह भी ट्रेड यूनियन की राजनीति करते हैं. पूर्व मंत्री चंद्रशेखर दुबे भी ट्रेड यूनियन की राजनीति करते हैं. बाबूलाल मरांडी भी द झारखंड कोलियरी मजदूर यूनियन के अध्यक्ष हैं. इन लोगों के अतिरिक्त रामगढ़ से विधायक चंद्र प्रकाश चौधरी, पूर्व मंत्री लालचंद महतो, पूर्व विधायक रमेंद्र कुमार, जलेश्वर महतो, जगरनाथ महतो, ढुलू महतो, समरेश सिंह भी कोयलाकर्मियों के हक की लड़ाई लड़ते रहे हैं. संयुक्त बिहार के मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे भी ट्रेड यूनियन के आंदोलन के ही उपज थे. जो सीटें होंगी प्रभावित बेरमो, बड़कागांव, गिरिडीह, राजमहल, महगामा, धनबाद, रांची, रामगढ़, कांके, हजारीबाग, मांडू, निरसा, सिंदरी, डुमरी, झरिया, बोकारो, गोमिया, सिमरिया, विश्रामपुर, टुंडी, बाघमारा जो हैं मुद्दे विधि व्यवस्था : कोयला कंपनियों और राज्य के सुरक्षाकर्मियों में तालमेल की कमी के कारण कोयला क्षेत्र में विधि व्यवस्था की परेशानी होती है. आपस में संघर्ष की स्थिति भी बनती है. कोयला चोरी रोकने की लड़ाई भी होती है. पेयजल समस्या : इस क्षेत्र में पेयजल की जबरदस्त समस्या है. कोयला खनन क्षेत्र होने के कारण पीने का स्वच्छ पानी नहीं मिल पाता है. इससे बीमारी की समस्या रहती है. बिजली की समस्या : अधिसंख्य कोयला क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति की स्थिति ठीक नहीं है. कई इलाकों में डीवीसी से आपूर्ति होती है. मेंटेनेंस नहीं होने कारण बिजली की समस्या रहती है. प्रदूषण : इस क्षेत्र में प्रदूषण बड़ी समस्या है. यहां कोयला खनन से उड़नेवाले डस्ट पर नियंत्रण के उपाय नहीं किये जाते हैं. इससे कई प्रकार की बीमारियां होती है. इस पर राज्य सरकार ध्यान नहीं देती है. कोयला कंपनियों के अस्पतालों में इलाज होता है. इन अस्पतालों की स्थिति बहुत खराब है. ब्लास्टिंग से परेशानी : कोयला खनन के आसपास रहनेवाले लोगों को ब्लास्टिंग की परेशानी भी झेलनी पड़ती है. ब्लास्टिंग के कारण कई बार घरों में दरारें पड़ जाती हैं. राज्य से सहयोग नहीं : कई मुद्दों पर कोयलाकर्मियों या उनके परिजनों को राज्य से सहयोग नहीं मिलता है. कंपनी से किसी तरह का विवाद हो जाने पर स्थानीय सरकार सहयोग करने की स्थिति में नहीं होती है. इसमें नेता ही सहायक होते हैं. इस कारण चुनाव किसी का भी हो, कोयलाकर्मियों के मुद्दे को आवाज देने वाले ट्रेड यूनियनों के नेताओं की चुनाव में पूछ होती है. इस बार केंद्र सरकार ने जो कोल माइंस स्पेशल प्रोविजन ऑर्डिनेंस-2014 पारित किया है, उसका विरोध होगा. मुद्दा तो केंद्र का है, लेकिन इसका असर कोयला क्षेत्र में पड़ेगा. इसके तहत कोल ब्लॉक लेनेवाली निजी कंपनियां अब कोयला बेच भी सकती हैं. इससे कोल इंडिया को नुकसान होगा. आरपी सिंह, सीटू नेता कोयलाकर्मी विधानसभा चुनाव को प्रभावित करते हैं. राज्य का मुद्दा हो ना हो वे चुनाव में वैसे दलों को ही जितायेंगे, जो उनके हक की बात करेगा. राज्य सरकार से उनको बहुत मतलब नहीं है. लेकिन, चुनाव को लेकर रुचि होती है.सनत मुखर्जी, महासचिव, द झारखंड कोलियरी मजदूर यूनियन विधानसभा चुनाव में भी कोयलाकर्मियों की मांगों को गौण नहीं किया जा सकता है. कोयलाकर्मियों को बहलानेवाले नेताओं को इस बार सबक मिलेगा. कोयलाकर्मियों को पता होता है कि कब-कब उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ हुआ है. राजेश कुमार सिंह, हिंद मजदूर सभा
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करीब दो दर्जन सीटों को प्रभावित करेंगे कोयलाकर्मी
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