रांची : राज्य सरकार विद्यार्थियों को समय पर किताबें उपलब्ध कराने में विफल रही है. करोड़ों खर्च के बावजूद नि:शुल्क किताब वितरण की प्रक्रिया पटरी पर नहीं आ सकी है. सरकारें बदलती रहीं पर हालात नहीं बदले. झारखंड में जब से बच्चों को नि:शुल्क किताबें दी जा रही हैं, तब से अब तक मात्र दो वर्ष ही बच्चों को सत्र शुरू होने के साथ किताबें मिल पायीं थी. शिक्षा विभाग के पास किताब वितरण का कोई रोड मैप नहीं है. किताब वितरण से अधिक समय टेंडर फाइनल करने में ही बीत जाता है. वर्ष 2012-13 में टेंडर फाइनल करने में लगभग नौ माह लग गये, जबकि वर्ष 2014-15 में टेंडर फाइनल करने में लगभग छह माह का समय गुजर गया.
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समय पर किताब देने में सरकार फेल
रांची : राज्य सरकार विद्यार्थियों को समय पर किताबें उपलब्ध कराने में विफल रही है. करोड़ों खर्च के बावजूद नि:शुल्क किताब वितरण की प्रक्रिया पटरी पर नहीं आ सकी है. सरकारें बदलती रहीं पर हालात नहीं बदले. झारखंड में जब से बच्चों को नि:शुल्क किताबें दी जा रही हैं, तब से अब तक मात्र दो […]
राज्य में शैक्षणिक सत्र अप्रैल से शुरू होता जबकि अप्रैल तक टेंडर ही फाइनल नहीं हो पता. अप्रैल में बच्चों को किताबें देनी है, यह जानते हुए भी विभाग किताब वितरण की प्रक्रिया में कोई सक्रियता नहीं दिखाता. समय पर किताब नहीं मिलने के लिए आज तक किसी अधिकारी पर कोई कार्रवाई भी नहीं हुई. राज्य में बच्चों को अप्रैल की जगह सितंबर व अक्तूबर में किताबें दी जाती हैं. इस वर्ष भी अभी तक सभी कक्षाओं में शत-प्रतिशत बच्चों को किताबें नहीं मिल पायी हैं.
टेंडर में खूब होता खेल : वर्ष 2012-13 में किताब छपायी के खर्च में विद्यार्थी की संख्या बढ़े बिना रिकार्ड बढ़ोतरी हुई. वर्ष 2012-13 में तीन बार टेंडर रद किया गया. छह बार टेंडर फाइनल करने की तिथि बढ़ायी गयी. पहले टेंडर में पेपर मिल की क्षमता प्रति वर्ष पांच हजार मीट्रिक टन थी, जबकि दूसरे टेंडर में इसे घटा कर तीन हजार कर दिया गया. तीसरे टेंडर में प्रकाशक के लिए सरकारी किताबें छापने की शर्त पूरा करना अनिवार्य कर दिया गया.
टेंडर रद्द हुआ तो बढ़ गयी राशि : वर्ष 2012-13 में किताबें आपूर्ति करने के लिए मांगी गयी पहली निविदा में जिन प्रकाशकों ने हिस्सा लिया था, वहीं प्रकाशक तीसरे टेंडर में भी थे. कुछ महीनों में उन्हीं प्रकाशकों के पैकेज दरों में बढ़ोतरी हो गयी. पहले टेंडर में प्रकाशक लगभग 60 करोड़ में किताब छापने को तैयार थे, वहीं तीसरे टेंडर में यह बढ़कर 79 करोड़ हो गया.
वर्ष 2014-15 में टेंडर में हुआ बदलाव : वर्ष 2014-15 में भी टेंडर की शर्त में बदलाव किया गया. टेंडर की शर्त में किये गये बदलाव के अनुरूप पहले टेंडर में पेपर मिल की कागज उत्पादन की क्षमता 150 मीट्रिक टन प्रतिदिन था. जिसे बढ़ाकर 300 मीट्रिक टन प्रति दिन कर दिया गया. इसके अलावा पूर्व में जारी टेंडर की शर्त के अनुसार टेस्ट बुक का कवर पेपर 170 जीएसएम, वजिर्न वाइट पल्प बोर्ड का रखा गया था.
बाद में इसे बदल कर 170 जीएसएम बंबू वुड /वजिर्न वाइट प्लप बोर्ड कर दिया गया. पहले जारी टेंडर में वार्षिक एक्साइज क्लीयरेंस सर्टिफिकेट वजिर्न पल्प पेपर के आधार पर देना था. बाद में इसे बंबू/वुड वजिर्न पल्प पेपर कर दिया गया. पेपर का स्पिेसिफिकेशन 70 जीएसएम वाइट क्रीभ वोभ पेपर था. जिसे बाद में वाइट मैपलिथो और क्रीभ वोभ पेपर कर दिया गया.
भारत सरकार ने भुगतान पर लगायी रोक : वर्ष 2013-14 में भी किताब के टेंडर में गड़बड़ी की शिकायत भारत सरकार को मिली. वर्ष 2013-14 में किताब के टेंडर राशि में लगभग 29 करोड़ की बढ़ोतरी हो गयी. टेंडर में गड़बड़ी की शिकायत के बाद भारत सरकार ने राशि भुगतान पर रोक लगा दी.
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