प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध झारखंड में सिर्फ औद्योगिक विकास की ही संभावना नहीं है, बल्कि कृषि क्षेत्र के विकास की भी अपार संभावनाएं मौजूद हैं. राज्य में सिंचाई के लिए पानी की अच्छी उपलब्धता है. कृषि योग्य भूमि और कामगारों की भी कमी नहीं है. ऐसे में अगर सरकार की नीतियां सही हों और उनका क्रियान्वयन सही तरीके से हो, तो कृषि क्षेत्र में यह काफी तरक्की कर सकता है.
वर्षो के संघर्ष के बाद बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बनने पर यहां के लोगों को उम्मीद थी कि राज्य का तेजी से विकास होगा. लेकिन, दुर्भाग्यवश कुछ ही वर्षो में लोगों की उम्मीदें धूमिल होने लगीं. झारखंड में पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं, परंतु अस्थिर सरकार और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार ही आज झारखंड की पहचान बन गये हैं.
राज्य निर्माण के बाद से ही झारखंड में गंठबंधन की सरकारें रही हैं. इन सरकारों में शामिल दलों में नीतियों को लेकर कभी सामंजस्य नहीं दिखा. शासन पर इसका नकारात्मक असर पड़ा और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला. अस्थिर सरकारों और भ्रष्टाचार के कारण राज्य का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया, जबकि वहां विकास के लिए सभी आवश्यक संसाधन पर्याप्त मात्र में मौजूद हैं.
प्राकृतिक संसाधनों के मामले में देश का सबसे समृद्ध राज्य होने के बावजूद आज झारखंड की गिनती सबसे पिछड़े राज्यों में होती है. झारखंड में सिर्फ औद्योगिक विकास की ही संभावना नहीं है, बल्कि कृषि क्षेत्र के विकास की भी अपार संभावनाएं मौजूद हैं. राज्य में सिंचाई के लिए पानी की अच्छी उपलब्धता है. कृषि योग्य भूमि और कामगारों की भी कमी नहीं है. ऐसे में अगर राज्य सरकार की नीतियां सही हों और उनका क्रियान्वयन सही तरीके से हो, तो कृषि क्षेत्र में झारखंड काफी तरक्की कर सकता है.
झारखंड में अपेक्षित विकास न हो पाने के लिए सिर्फ नक्सलवाद की समस्या को विकास में बाधक बता कर जिम्मेवारी से मुक्त हो जाना सही नहीं है. नक्सलवाद की समस्या तो छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में भी है. लेकिन बेहतर शासन के कारण यहां बेहतर विकास हो पाया है. नक्सलवाद की समस्या जहां कहीं भी है, सामाजिक और आर्थिक कारणों से है और इसका समाधान केंद्र और राज्य को मिल कर करना होगा.
झारखंड की सरकारों का चरित्र विकास की बजाय अपनी कुर्सी बचाने पर रहा है. इससे रोजमर्रा का शासन प्रभावित होता है. राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति अच्छी नहीं है. किसी भी राज्य में निवेश को आकर्षित करने के लिए कानून-व्यवस्था का दुरुस्त होना पहली शर्त होती है. इसके बाद इंफ्रास्ट्रर बेहतर होना जरूरी है. राज्य में सड़क और बिजली की स्थिति भी अच्छी नहीं है. ऐसे में प्राकृतिक संसाधनों के बावजूद यहां निवेश को आकर्षित नहीं किया जा सकता है.
सरकारी नीतियों में स्पष्टता के साथ और मजबूत नेतृत्व के जरिये ही कोई राज्य विकास के रास्ते पर आगे बढ़ सकता है. झारखंड का दुर्भाग्य रहा है कि गठन के बाद से ही वहां इन दोनों चीजों का घोर अभाव रहा है. राजनीतिक अस्थिरता से भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहरी हो गयी हैं. भ्रष्टाचार के कारण सरकार की योजनाओं का लाभ जमीनी स्तर पर नहीं पहुंच पाया है. आलम यह है कि वहां की सरकारें केंद्रीय योजनाओं का पैसा भी खर्च नहीं कर पाती हैं. इसका नुकसान राज्य की जनता को उठाना पड़ता है. विकास नहीं होने के कारण रोजगार के नये अवसर भी पैदा नहीं हो सके हैं और लोगों को काम की तलाश में अन्य राज्यों में पलायन करना पड़ता है. एक ओर राज्य में गरीबी और अशिक्षा है, तो वहीं दूसरी ओर लोगों को काम के लिए पलायन करना पड़ रहा है. गरीबी और पलायन राज्य की सबसे बड़ी समस्या बन गये हैं.
ध्यान देनेवाली बात यह भी है कि झारखंड में विकास के नाम पर हजारों करोड़ रुपये के समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये, लेकिन जमीनी स्तर पर इनका क्रियान्वयन नहीं हो पाया. अगर राज्य में स्थिर सरकार का गठन हो, तो इन्हीं संसाधनों की बदौलत झारखंड विकास की नयी कहानी लिख सकता है. खनिज संपदा के साथ ही राज्य के बड़े भू-भाग में जंगल हैं. इसका सही उपयोग कर औद्योगिक विकास के साथ ही आदिवासियों का जीवन स्तर में व्यापक पैमाने पर सुधार लाया जा सकता है. वन उत्पादों के लिए बेहतर बाजार उपलब्ध करा कर उनकी आमदनी में बढ़ोतरी की जा सकती है. झारखंड में जितना कोयला उपलब्ध है, अगर उससे बिजली के उत्पादन की ही कोशिश की गयी होती, तो राज्य बिजली बेच कर ही अरबों रुपये की कमाई कर सकता था. लेकिन, राजनीतिक दिशाहीनता और भ्रष्टाचार के कारण संसाधनों की लूट हुई और आज झारखंड एक असफल राज्य की श्रेणी में आ खड़ा हुआ है. हर स्तर पर भ्रष्टाचार के कारण लोगों का शासन व्यवस्था में भरोसा कम हुआ है. यह किसी भी नवोदित राज्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है.
उम्मीद है कि आगामी विधानसभा चुनाव में झारखंड की जनता एक स्थिर सरकार के लिए जनादेश देगी, ताकि राज्य का सही तरीके से और सही दिशा में विकास हो सके. स्थिर सरकारों के कारण ही आज छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड विकास के पैमाने पर झारखंड की तुलना में काफी आगे निकल गये हैं. अगर झारखंड के लोग जागरूक हो जायें, तो राजनीतिक दलों को भी अपना रवैया बदलना होगा और झारखंड एक विकसित राज्य बनने के रास्ते पर आगे बढ़ सकेगा.
(आलेख बातचीत पर आधारित)
मधुकर गुप्ता
पूर्व गृह सचिव