नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय द्वारा अपने मंत्रालय के खिलाफ कुंभकर्ण जैसी नींद में होने संबंधी टिप्पणी किए जाने के कुछ दिन बाद पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने आज कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा ‘‘अचानक की गयी टिप्पणियां’’ सरकार को ‘‘कभी कभी आहत’’ करती हैं. जावडेकर संसदीय कार्य राज्य मंत्री भी हैं. उन्होंने कहा कि यह कुछ हद तक ‘‘अफसोसजनक’’ था जब उच्चतम न्यायालय ने नेता प्रतिपक्ष मुद्दे पर सरकार से सवाल किया.
उन्होंने जोर दिया कि देश के लोगों से जुडी समस्याओं के हल के लिए लोकतंत्र के तीन स्तंभों न्यायापालिका, कार्यपालिका और विधायिका को संतुलित तरीके से काम करना चाहिए. जावडेकर राष्ट्रीय हरित अधिकरण के चौथे स्थापना दिवस समारोहों को संबोधित कर रहे थे. इस कार्यक्रम में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश रंजन गोगोई मुख्य अतिथि थे.
गंगा नदी की सफाई से जुडे विभिन्न मुद्दों के हल के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का जिक्र करते हुए जावडेकर ने कहा, ‘‘ कभी कभी अचानक ही टिप्पणी कर दी जाती है और इस बारे में न्यायपालिका को सोचना है. कभी कभी यह अनावश्यक रुप से आहत करती है. परसों मैंने सुना कि कुंभकर्ण हो गया.
कुंभकर्ण कहां हो गया ?’ उच्चतम न्यायालय ने दो सप्ताह पहले कुंभकर्ण जैसी नींद में सोने के लिए पर्यावरण मंत्रालय को ङिाडकी लगायी थी और स्पष्ट किया था कि उत्तराखंड में उस समय तक भागीरथी नदी पर नई पनबिजली परियोजनाओं की स्थापना के लिए अनुमति नहीं दी जाएगी जब तक कि केंद्र विस्तृत पर्यावरण और पारिस्थितिकी प्रभाव रिपोर्ट पेश नहीं करता.
विपक्ष के नेता के मुद्दे पर जावडेकर ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष के दर्जे के लिए दावा करने के लिये लोकसभा में 55 सांसदों की जरुरत है. उन्होंने कहा, ‘‘यह फैसला लोगों को करना है कि वे दलों को कितने सांसद देते हैं. अगर लोगों ने नहीं दिये हैं, तो हम क्या कर सकते हैं.’’जावडेकर ने कहा, ‘‘सातवीं लोकसभा में कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं थे लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। अगर समाचार पत्र लिखते हैं या कोई व्यक्ति पूछता है तो मैं समझ सकता हूं. लेकिन जब आप इस बारे में न्यायपालिका से सुनते हैं तो आप कुछ निराश होते हैं.’’
उन्होंने कहा, ‘‘ न्यायपालिका, कार्यपालिका और संसद तीन स्तंभ हैं (लोकतंत्र के). तीनों एक दूसरे से स्वतंत्र हैं. सभी तीनों का कर्तव्य पूरी तरह से परिभाषित है और अगर वे सही तरीके से काम करते हैं. हम देश के साथ न्याय करेंगे और उस दिशा में, मैं सभी मौजूदा तंत्रों के साथ सहयोग का वादा कर सकता हूं.’’इन मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करने के पहले जावडेकर ने कहा कि उन्होंने न्यायमूर्ति गोगोई से पूछा था कि क्या वह यह टिप्पणी कर सकते हैं क्योंकि वह आश्वस्त होना चाहते थे कि यह अदालत की अवमानना नहीं होगी। कार्यक्रम में मौजूद लोगों में बडी संख्या विधि छात्रों की थी.