अपने आपको जो हम धोखा दिया करते हैं, मैं उस बारे में बातचीत करना चाहूंगा, अर्थात् उन भ्रमों के बारे में जिनमें कि मन लिप्त रहता है तथा जिन्हें वह खुद पर और दूसरों पर आरोपित करता रहता है. यह बड़ा गंभीर विषय है, विशेषकर इस प्रकार की स्थिति में, जिसका सामना विश्व कर रहा है. स्वयं के साथ धोखाधड़ी की इस सारी समस्या को समझने के लिए हमें उसे केवल शाब्दिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि आंतरिक एवं आधारभूत रूप से, गहराई से समझना होगा.
हम शब्दों तथा प्रति-शब्दों से बड़ी आसानी से संतुष्ट हो जाते हैं. हम दुनियादारी वाले हैं और इस नाते हम केवल इतनी ही आशा कर सकते हैं कि कोई न कोई रास्ता तो निकल ही आयेगा. हम देखते हैं कि युद्ध की व्याख्या से युद्ध नहीं रुकता. ऐसे असंख्य इतिहासकार, धर्मशास्त्री और धार्मिक लोग हैं, जो इसकी व्याख्या कर रहे हैं कि युद्ध क्यों और कैसे होते हैं, परंतु युद्ध फिर भी जारी हैं और शायद पहले से अधिक विध्वंसकारी रूप में.
हममें से जो वास्तव में इस समस्या को लेकर गंभीर हैं, उन्हें शब्दों से परे जाना होगा और अपने ही भीतर एक मौलिक क्रांति की खोज करनी होगी. केवल यही एक उपाय है, जिससे मानवता का स्थायी एवं मौलिक रूप से उद्धार हो सकता है. इसी प्रकार, जब हम इस तरह के आत्मछलावे पर चर्चा कर रहे हैं, तो मेरे विचार से हमें सतही व्याख्याओं व उनके उत्तरों से सावधान रहना चाहिए. इसके साथ ही आत्मछल की इस समस्या को हमें अपने दैनिक जीवन में देखते चलने की भी जरूरत है.
।। जे कृष्णमूर्ति ।।