नयी दिल्ली : अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल के उतार-चढ़ाव पर नजर रखने के लिए अब राजनीति की तरह किताबों के जरिये सुझाव दिये जा रहे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि कच्चे तेल के बाजार में तेज उतार-चढ़ाव के जोखिमों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय तेल वायदा बाजार पर नजर रखने को एक अलग प्रकोष्ठ बनाया जाना चाहिए.
कच्चे तेल के भाव और अंतरराष्ट्रीय तेल वायदा बाजार के रुझानों पर पेट्रोल : आसान है कीमत गिराना शीर्षक से मिथिलेश झा ने एक पुस्तक लिखी है. बातचीत में उन्होंने कहा कि हमें देश में कच्चे तेल के भारी आयात बिल को देखते हुए विश्व बाजार का पूर्वानुमान लगाने पर ध्यान देना चाहिए. इसके अध्ययन के लिए संस्थान बनायें, अलग विभाग बनायें, कुछ भी करें, एक रक्षा कवच बनाया जाना चाहिए.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन दिनों कच्चे तेल का दाम 100 डॉलर से नीचे 90 से 95 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में चल रहा है. झा के अनुसार, 92 डॉलर का दाम यदि है और यह उछलता है, तो 95 तक जा सकता है, लेकिन यदि 88 डॉलर को तोड़ता है, तो 70 डॉलर प्रति बैरल तक गिर सकता है. भारत कच्चे तेल की कुल जरूरत का 80 प्रतिशत तक आयात करता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2013-14 में पेट्रोलियम पदार्थों की मांग 16.20 करोड़ टन के दायरे में रहने का अनुमान था, जबकि इससे पिछले वर्ष यह 15.54 करोड टन रही. वर्ष 2016-17 तक इसकी मांग बढ़ कर 18.62 करोड़ टन तक पहुंचने का अनुमान है.
तेल विपणन कंपनी इंडियन ऑयल कार्पोरेशन के पूर्व अध्यक्ष आरएस बुटोला ने कहा कि कंपनियों के स्वास्थ्य के लिए हमें अपने रिफाइनरी मार्जिन को बेहतर रखने की जरूरत है. कच्चे तेल की खरीदारी से लेकर उसके रिफाइनरी में पहुंचने, प्रसंस्करण होने और रिफाइनरी से निकलते समय तक मूल्य के उतार-चढ़ाव से रिफाइनरी मार्जिन को बचाने, उसे ऊंचा रखने की जरूरत को ध्यान में रखा जाना चाहिए. इसके लिए एक समिति बनायी जानी चाहिए.
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