कुछ लोग अपने ऑफिस के साथियों से दोस्ती बना कर नहीं रख पाते. वे उनसे लड़ते हैं, झगड़ते हैं, बहस करते हैं. बात करना भले ही बंद कर दें, लेकिन पीठ पीछे उनकी बुराई जरूर करते हैं. वे एक कोने में बैठे रहते हैं और अपना काम करते जाते हैं. उन्हें लगता है कि मुङो कौन-सा इस कंपनी में जिंदगी भर काम करना है.
अच्छा अवसर आते ही मैं जॉब छोड़ दूंगा, लेकिन वे यही गलती कर जाते हैं. वे भूल जाते हैं कि दूसरी जॉब पाना इतना भी आसान नहीं होता. वर्तमान कंपनी में आपका व्यवहार कैसा है, इसका भी असर दूसरी जॉब पर पड़ता है.
सुधीर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उसकी ऑफिस में गिने-चुने लोगों से ही बनती थी. कभी वह साथियों से लड़ लेता था, तो कभी बॉस को ही उल्टा जवाब दे देता था. उसके स्वभाव की वजह से लोगों ने भी उसके साथ खराब व्यवहार करना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे उसे ऑफिस में अटपटा सा महसूस होने लगा. उसने नयी जॉब तलाशना शुरू कर दिया. उसने कई कंपनियों में अपना बायोडाटा भेजा. नयी कंपनी में साक्षात्कार लेने वाला सुधीर के काम और स्वभाव की जानकारी लेने के लिए उसकी वर्तमान कंपनी में काम करने वाले लोगों से फीडबैक लेते. वे जब भी किसी से सुधीर के बारे में पूछते, उन्हें सुधीर की बुराई ही सुनने को मिलती. कोई कहता, ‘वह बहुत बदतमीज है’, तो कोई कहता, ‘वह किसी से ठीक से बात नहीं करता. उसका कोई दोस्त ही नहीं है.’ हर तरफ से नेगेटिव फीडबैक मिलने की वजह से कंपनियां उसे जॉब में नहीं रखती.
जब सुधीर को इस बात का पता चला कि कंपनी के लोग गलत फीडबैक मार्केट में दे रहे हैं, तो उसने अपनी पर्सनालिटी और लोक व्यवहार में काम करना शुरू कर दिया. वह सभी से घुलने-मिलने लग गया. सभी को चाय पिलाने ले जाने लगा. कभी किसी की तारीफ न करने वाले सुधीर ने सभी के गुणों का बखान करना शुरू कर दिया. लोगों को आश्चर्य तो हुआ, लेकिन साथ ही खुशी भी हुई. धीरे-धीरे माहौल अच्छा होने लगा. अब लोग भी खुश हैं और सुधीर भी. अब खुद सुधीर को नौकरी छोड़ने की जरूरत महसूस नहीं होती.pk.managementguru@gmail.com