।। डॉ हेम श्रीवास्तव ।।
दुर्गा शक्ति का स्त्रोत हैं. जन-जन में अजस्र शक्ति का संचार करनेवाली. उनकी शक्ति कभी चूकती नहीं, न ही क्षीण होती है. जहां दुर्गा का चिह्न् मात्र है वहीं ऊर्जा का भंडार है. मृतप्राय एवं शिथिल पड़े हुए लोगों को कर्मठता की राह दिखानेवाली ओजमय छाया दुर्गा ही हैं. तभी तो वह सभी देवताओं का सार संक्षेप है.
शक्ति के बिना कोई भी कठिन कार्य संभव नहीं. क्षीण से क्षीण व्यक्ति भी दुर्गा का स्मरण कर सकते हैं और बल के महासागर में डुबकी लगा सकते हैं. उनका ध्यान इस प्रकार से असंभव कार्य को भी संभव बना देता है. इस प्रकार से जिस कार्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती है, बलरूपा दुर्गा की मदद से उसे नतीजे तक पहुंचाया जा सकता है. वे अनन्य शक्तिरूपा है. दुर्गा का वास हर मनुष्य के अंदर है. आवश्यकता है बस उसे पहचानने की. जहां आत्मशक्ति है, वहीं दुर्गा के दर्शन हैं.
शारीरिक बल और कुछ नहीं, आत्मबल का प्रतिफल है. भीम से भीम व्यक्ति भी आत्मा से यदि कमजोर है, जो शारीरिक बल किसी काम का नहीं. आत्मशक्ति स्विच है, जो बाहुबल मशीन. यह स्विच ही दुर्गा है. समाज में कितने ही लोगों को हम देखते हैं जो लुटते-कुटते-पिसते रहते हैं, अपमान सहते रहते हैं. उनका जीवन पशुवट रहता है. कुछ तो दुख और अत्याचार को नियति मान कर अपनी उम्र बिता देते हैं, जबकि उन्हीं में से कुछ अपनी आत्म चेतना को मरने नहीं देते. वे मौत के साये में से एक नयी जिंदगी की तैयारी करते हैं. जटिल से जटिल परिस्थितियों में भी खुद को जगाये रखते हैं.
मौका मिलते ही उठ कर हुंकार भरते हैं और फिर इतिहास रच देते हैं. दुर्गा कभी छलती नहीं है. हम अपने अंदर छिपी दुर्गा को यदि पहचानते नहीं तो यह दोष हमारा है. श्रेयस्कर होगा कि हम देर न करें, आज ही उठें और अपने अंदर बसी दुर्गा को जगायें, फिर देखें कोई भी कार्य असंभव नहीं. वे साहस और स्फूर्ति की देवी हैं. एक साधारण से स्त्री-शरीर के ही दम पर बली से बली राक्षसों का वध कर देती हैं. वे तेजोमय हैं जिसमें भी तेज है, उसे वे पराक्रम प्रदान करती हैं. आलस्य का प्रतिकार करती हैं.
(लेखिका स्वतंत्र लेखन का कार्य करती हैं)