किरीबुरू : केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह 23 सितंबर को 10.45 बजे रांची पहुंचेंगे. यहां से वायु सेना के हेलीकॉप्टर से सारंडा के थलकोबाद में दोपहर 11:40 में पहुंचेंगे. चाईबासा के उपायुक्त अबुबक्कर सिद्दीक पी ने बताया कि गृह मंत्री सीआरपीएफ कैंप में जवानों के साथ बातचीत करेंगे. जवानों की समस्या जानेंगे. उग्रवाद से लड़ने के लिए जवानों को और क्या-क्या सुविधाएं सरकार को देनी चाहिए, इस पर भी बात करेंगे. इस दौरान थोलकोबाद के ग्रामीणों से भी गृह मंत्री वार्ता कर सकते हैं. इसके अलावा रांची में राजभवन में सीएम व राज्य के आला अधिकारियों के साथ बैठक करेंगे. दो घंटे तक चलनेवाली बैठक में राज्य में नक्सल समस्या व कानून व्यवस्था की समीक्षा करेंगे. शाम को दिल्ली लौट जायेंगे.
इधर किरीबुरू से मिली जानकारी के अनुसार केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के आगमन को लेकर जिला व पुलिस प्रशासन के साथ सीआरपीएफ की अधिकारियों ने सोमवार को बैठक की. थलकोबाद स्थित हेलीपैड पर हेलीकॉप्टर लैंडिंग का मॉक ड्रिल किया गया. इसके साथ ही पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों ने थलकोबाद एवं आसपास के क्षेत्रों में जांच अभियान चलाया. पूरे क्षेत्र की जबरदस्त मोरचाबंदी कर दी गयी है. किरीबुरू-बड़ाजामदा मुख्य मार्ग पर सीआरपीएफ व आइआरबी जवानों की गश्त के बीच पुलिस के आला अधिकारी किरीबुरू के रास्ते सारंडा के थलकोबाद गये.
विकास की हकीकत देखेंगे राजनाथ
किरीबुरू : केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह का 23 सितंबर को नक्सल प्रभावित सारंडा के थलकोबाद में संभावित दौरे को लेकर जिला व पुलिस प्रशासन के साथ सीआरपीएफ ने भी सुरक्षा उपायों की समीक्षा की. हालांकि गृहमंत्री के संभावित दौरे को लेकर अधिकारी अभी मुंह नहीं खोल रहे लेकिन थलकोबाद स्थित हेलीपैड पर सोमवार की दोपहर हेलीकॉप्टर लैडिंग का मॉक ड्रिल किया गया.
इसके साथ ही पुलिस और सीआरपीएफ ने थलकोबाद एवं आस-पास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर जांच अभियान चलाया. पूरे क्षेत्र की जबरदस्त मोरचाबंदी कर दी गयी है. किरीबुरू-बड़ाजामदा मुख्य मार्ग पर सीआरपीएफ व आइआरबी जवानों की गश्त के बीच पुलिस के आला अधिकारी किरीबुरू के रास्ते सारंडा के थलकोबाद गये. तैयारी पूरी तरह गोपनीय रखी जा रही है.
यह भी अब तक स्पष्ट नहीं हो सकता है कि केद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के सारंडा दौरा का लक्ष्य क्या है. इससे पूर्व यूपीए सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश अनेकों बार सारंडा तो आये लेकिन नक्सलियों की राजधानी कहे जाने वाले थलकोबाद में उनके कदम कभी नहीं पड़े. गृहमंत्री के दौरे के बाबत यह माना जा रहा है कि सारंडा में पूर्व की सरकार द्वारा लगभग 250 करोड़ रुपये विकास की हकीकत राजनाथ सिंह टटोल सकते है. सारंडा में बनायी जा रही सड़कें व अन्य विकास कार्यों की गुणवत्ता व धीमी गति पर पहले ही सवाल उठते रहे है. दूसरी तरफ सारंडा में लगातार जारी बारिश भी गृह मंत्री के दौरे में बाधा बनसकती है.
* सारंडा में हलचल
सारंडा वन प्रमंडल क्षेत्र में स्थित बंद पड़ी लौह-अयस्क खदानों को अविलंब नहीं खोला गया तो सारंडा जंगल के अस्तित्व को बचा पाना राज्य व केंद्र सरकार तथा वन विभाग के लिए आसान नहीं होगा. लगभग 850 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले सारंडा में लगभग 200 वर्ग किमी क्षेत्र में पहले से खनन कार्य होता रहा है. इन 200 वर्ग किमी क्षेत्र में 65 फीसदी क्षेत्र स्टील ऑथोरिटी ऑफ इंडिया (सेल) को लीज में मिली है. जहां की खदानों में स्थायी, अस्थायी हजारों कामगार कार्यरत थे. 35 फीसदी हिस्सों में प्राइवेट खदान हैं. जिसमें ज्यादातर बंद हो चुके हैं. जहां सारंडा के हजारों कार्यरत थे, जो बेरोजगार हैं. इसके अलावा लगभग 443 वर्ग किमी क्षेत्र में लगभग 19 नयी खदानों को खोलने का प्रस्ताव था.
सवाल यह है कि सारंडा के 200 वर्ग किमी क्षेत्र में पहले से स्थित पुरानी खदानों में प्राय: बंद होने से हजारों बेरोजगार हो गये हैं. जिनके सामने भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गयी है. इन हजारों में सैकड़ों ऐसे हैं, जो पेट भरने की खातिर पुन: सारंडा जंगल की कीमती लकडि़यों को काट कर माफियाओं के हाथों बेचने के कार्य में जुट गये हैं. सारंडा के जानकारों का मानना है कि आज प्रतिदिन सारंडा से लगभग 350-400 हरे पेड़ों को काट कर झारखंड-ओडि़शा क्षेत्रों में बेचा जा रहा है. यह तस्करी सैडल के रास्ते बड़बिल, जराईकेला-मनोहरपुर के रास्ते, ओडि़शा के बिसरा व रोवाम आदि के रास्ते प्रतिदिन हो रही है. क्षेत्र के सैकड़ों छोटे-बड़े होटलों, घरों आदि में जलावन के रूप में सारंडा की लकडि़यां इस्तेमाल के लिए बेची जा रही है.
* वनों की सुरक्षा बनी चुनौती
सीमित वन कर्मियों व संसाधनों के सहारे वनों की सुरक्षा करना वन विभाग के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रही है. दूसरी तरफ वन विभाग द्वारा गठित वन सुरक्षा समिति का कंट्रोल ग्रामीणों पर नहीं रहा.वन रक्षा समिति के लोग उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. यह भी सत्य है कि क्षेत्र के खदान प्रबंधन प्रति वर्ष वन महोत्सव या अन्य अवसरों पर पौधरोपण कर जंगल विस्तार का कार्य करते रहे हैं. जबकि पिछले 10-15 वर्षों में खदान प्रबंधनों ने पेड़ नहीं कटवाये, फिर भी जंगल सिमट रहे हैं. साथ ही पिछले 2-3 माह के दौरान इसका ग्राफ बढ़ा है.
* विपत्ति में ग्रामीणों के काम आया है जंगल
सारंडा के ग्रामीण अथवा बेरोजगार इस बात को भूल रहे हैं या इतिहास इसका साक्षी रहा है कि जब-जब देश में भारी अकाल आया है, लोगों के सामने अनाज व भुखमरी की समस्या उत्पन्न हुई है तो लोगों को इन्हीं जंगल ने फल, कंदमूल, वनोत्पाद देकर भूखे मरने से बचाया है. खदान नहीं भी रहे सिर्फ सारंडा जंगल बचा रहे तो सारंडा के ग्रामीण विकट परिस्थिति में भी भूखे नहीं मर पायेंगे.