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मत करिए चीन का अंधानुकरण

एनडीए सरकार को समझना चाहिए कि जिस तीव्र विकास की ओर वह भाग रही है, उसका अंतिम लक्ष्य समाज की उन्नति है. भूमि अधिग्रहण के कुछ प्रावधानों को खत्म करने के पीछे यही दिखता है कि सरकार को समाज से कुछ सरोकार नहीं है. यूपीए सरकार द्वारा लागू किये गये भूमि अधिग्रहण कानून में एनडीए […]

एनडीए सरकार को समझना चाहिए कि जिस तीव्र विकास की ओर वह भाग रही है, उसका अंतिम लक्ष्य समाज की उन्नति है. भूमि अधिग्रहण के कुछ प्रावधानों को खत्म करने के पीछे यही दिखता है कि सरकार को समाज से कुछ सरोकार नहीं है.
यूपीए सरकार द्वारा लागू किये गये भूमि अधिग्रहण कानून में एनडीए सरकार संशोधन करने के मूड में है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने गत माह राज्यों के राजस्व मंत्रियों से चर्चा के बाद एनडीए सरकार के इस मंतव्य को दोहराया था. किसान संगठनों अथवा बुद्धिजीवियों अथवा विपक्षी दलों से बात नहीं की थी. राजस्व मंत्रियों को भूमि अधिग्रहण करना होता है. अत: उनसे मात्र बात करना उसी तरह हुआ कि पुलिस कमिश्नर द्वारा सिपाहियों से परामर्श किया जाये.
वर्तमान कानून में 80 प्रतिशत प्रभावित किसानों की मंजूरी के बाद ही अधिग्रहण किया जा सकता है. इस प्रावधान को नरम बना कर अब केवल 51 प्रतिशत की सहमति बनाने पर विचार किया जा रहा है. जन सुनवाई तथा सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन रपट को समाप्त करने पर विचार किया जा रहा है. वर्तमान में कृषि भूमि के अधिग्रहण के लिए सरकार को प्रमाणपत्र देना होता है कि बंजर भूमि उपलब्ध नहीं है. इसे भी हटाने पर विचार किया जा रहा है.
संभवत: एनडीए सरकार को चीन का मॉडल दिखता है. भूमि अधिग्रहण आसान होने से वहां बड़े प्रोजेक्टों को लागू करना आसान है. चीन में कृषि भूमि पर किसानों का समलाती मालिकाना हक होता है. इस भूमि को पहले स्थानीय सरकार अधिग्रहित करती है. किसानों के साथ वार्ता करके भूमि का मूल्य तय किया जाता है. कम से कम बाजार भाव के बराबर मूल्य दिया जाता है. इसके बाद सरकार द्वारा भूमि की नीलामी की जाती है. भूमि को दस गुना मूल्य तक बेचा जाता है.
इस प्रक्रिया में स्थानीय सरकारें भारी लाभ कमाती हैं. इन सरकारों पर कम्यूनिस्ट पार्टी के अधिकारियों का वर्चस्व है. वे इस प्रक्रिया के विशेष लाभार्थी होते हैं. अधिग्रहण के विरोध में किसानों के पास कानूनी संरक्षण शून्यप्राय है. यह प्रक्रिया किसान विरोधी है. किसानों में भारी रोष व्याप्त है.
चीन की व्यवस्था के कुछ सार्थक पहलू भी हैं. कृषि भूमि के अधिग्रहण के लिए राज्य सरकार की अनुमति आवश्यक है. अधिग्रहित भूमि के बराबर बंजर भूमि पर कृषि करना अनिवार्य है. उद्देश्य है कि कृषि भूमि का अनावश्यक अधिग्रहण न हो. ऐसा ही प्रावधान हमारे कानून में भी है. सरकार को प्रमाणपत्र देना होता है कि बंजर भूमि उपलब्ध नहीं है. चीन में क्रेता द्वारा प्रोजेक्ट की फीजीबिलिटी रपट पेश की जाती है. यह हमारे कानून में सामाजिक प्रभाव आकलन के समकक्ष है. इससे प्रोजेक्ट के विस्तृत प्रभाव स्पष्ट होते हैं.
साथ ही चीन में अधिग्रहित भूमि की सरकार द्वारा नीलामी की जाती है. इससे लाभ सरकार को जाता है, न कि डेवलपर को. हमारे कानून में ऐसी व्यवस्था नहीं है. हमारे यहां किसान को ऊंचा मूल्य मिलता है. एनडीए सरकार को समझना चाहिए कि भारत में लोकतंत्र है. जनविरोधी कृत्यों का विरोध करने का चीन की निरीह जनता के पास कोई रास्ता नहीं है, लेकिन भारत में विपक्षी नेता ऐसे कृत्यों पर बवाल करेंगे. इसलिए चीन की जनविरोधी व्यवस्था को अपने देश में लागू करना एनडीए के लिए घातक होगा.
दो पहलू हैं. एक, अधिग्रहण में लगनेवाले समय का है. दूसरा, किसानों को दिये जानेवाली रकम का है. निश्चित रूप से अधिग्रहण में समय कम लगना चाहिए. समय अधिक लगने का मुख्य कारण सामाजिक प्रभाव आकलन करने की अनिवार्यता है. देश में तमाम बौद्धिक ठेकेदार हैं, जो इसको शीघ्र संपादित कर सकते हैं. अत: जरूरत इस आकलन में तेजी लाने की है, न कि इसे खत्म करने की. सरकार को समझना चाहिए कि जिस तीव्र विकास की ओर वह भाग रही है, उसका अंतिम लक्ष्य समाज की उन्नति है.
इस प्रावधान को खत्म करने के पीछे यही दिखता है कि सरकार को समाज से कुछ सरोकार नहीं है. इन प्रावधानों को हटाना इसी प्रकार हुआ कि दवा का असर दिखने में समय लगता है, अत: दवा बंद कर दी जाये और मरीज को मरने दिया जाये.
वास्तव में समय इसलिए भी ज्यादा लगता है कि क्रेता ऊंचे मूल्य नहीं देना चाहते हैं. जैसे 25 लाख रुपये एकड़ का मूल्य दें तो 80 प्रतिशत किसान शीघ्र सहमत हो सकते हैं, लेकिन 10 लाख रुपये पर समय लग जाता है. एक जलविद्युत डेवलपर ने बताया कि उन्होंने भूमि अधिग्रहण कानून का सहारा लिया ही नहीं, चूंकि वे प्रोजेक्ट को शीध्र पूरा करना चाहते थे. उन्होंने किसानों को मुंह मांगा दाम देकर सीधे भूूमि को खरीद लिया. अत: उचित मूल्य दिया जाये तो अधिग्रहण शीध्र हो सकता है.
भूमि अधिग्रहण कानून को नरम नहीं बनाना चाहिए. वास्तव में इसे और सख्त बनाने की जरूरत है. संसद की स्थायी समिति ने सुझाव दिया था कि जंगल संरक्षण कानून की तरह कृषि संरक्षण कानून बनाना चाहिए. केंद्र सरकार की अनुमति के बिना कृषि भूमि का अधिग्रहण नहीं करना चाहिए. इन सुझावों पर एनडीए सरकार को विचार करना चाहिए. तेज विकास की धुन में देश की जनता को गर्त में नहीं ढकेलना चाहिए.
डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री

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