भागलपुर : राष्ट्रीय मानवाधिकार प्रतिष्ठान की ओर से नेट उत्तीर्ण विद्यार्थियों के साथ सोमवार को बैठक हुई. बैठक में निर्णय लिया गया कि विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए सरकार की ओर से बनायी गयी नियमावली नेट उत्तीर्ण छात्रों के हित में नहीं है. लिहाजा वे हक के लिए हाइकोर्ट जायेंगे. नेट उत्तीर्ण सभी छात्र-छात्राओं को एकजुट होने की बैठक में अपील की गयी.
प्रतिष्ठान के राष्ट्रीय सचिव डॉ ज्योतिंद्र चौधरी ने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सचिव आरके चौहान ने एक जून 2009 को यह घोषणा की थी कि लेक्चरर के रूप में नियुक्ति के लिए नेट अनिवार्य है, लेकिन बिहार सरकार ने नेट जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा में उत्तीर्ण छात्रों को एक भी अधिमानता अंक नहीं दिया है, जो न्यायोचित नहीं है. अगर पीएचडी 2009 नेट उत्तीर्णता का विकल्प माना गया, तो नेट के लिए भी 10 अंक की अधिमानता मिलनी ही चाहिए.
विश्वविद्यालय, शिक्षण के अलावा शोध कार्यों के लिए भी देश के प्रति जिम्मेवार है, लेकिन शोध प्रकाशन पर कुछ भी अंक नहीं दिये गये हैं. यह तब किया गया, जबकि बिहार सरकार अपने विज्ञान व प्रावैधिकी विभाग के अंतर्गत इंजीनियरिंग कॉलेजों में सहायक प्राध्यापक पदों पर लोक सेवा आयोग के द्वारा होनेवाली नियुक्ति में पटना हाइकोर्ट के आदेश के बाद रिसर्च पेपर व कार्य अनुभव पर पांच-पांच अंक निर्धारित किया है. एक ही सरकार एक ही आयोग से समान पद के लिए दो अलग-अलग मानदंड कैसे निर्धारित कर सकती है.
डॉ चौधरी ने कहा कि बिहार में एक भी छात्र 2009 के रेगुलेशन से पीएचडी की उपाधि प्राप्त नहीं किये हैं. ऐसे में नियुक्ति में 2009 की शर्त लगाना यहां के आवेदकों के हित में नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि कुलाधिपति ने शिक्षक नियुक्ति के लिए जो नियमावली बनायी थी, उसमें नेट या पीएचडी पर 10 अंक और रिसर्च पेपर पर नौ अंक का प्रावधान है, लेकिन इसमें बदलाव करना ठीक नहीं है.
वह इसलिए भी कि देश के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भी नेट व रिसर्च पेपर पर अधिमानता अंक दिये जाते हैं. वर्तमान नियमावली में मैट्रिक से लेकर स्नातकोत्तर में प्राप्तांक पर निर्धारित अंक की प्रशंसा की. मौके पर डॉ विनीता, अंशु कुमार, समीर कुमार, अभिलेष कुमार, डॉ प्रभु रंजन, डॉ मीनाक्षी आदि मौजूद थे.