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चीन भारत की विदेश नीति में बदलाव के लिए अपनाता है दबाव की रणनीति
पूर्व राजनयिक रंजीत सिंह काल्हा की किताब का दावा नयी दिल्ली : ‘चीन भारत के साथ सीमा विवाद को सुलझाने को तैयार है’, ऐसा एक पुस्तक में कहा गया है. पुस्तक के अनुसार भारत दुनिया के प्रति उसके नजरिए को माने और खींची हुई चीनी रेखा के भीतर रहने पर राजी हो जाए तो सीमा […]
पूर्व राजनयिक रंजीत सिंह काल्हा की किताब का दावा
नयी दिल्ली : ‘चीन भारत के साथ सीमा विवाद को सुलझाने को तैयार है’, ऐसा एक पुस्तक में कहा गया है. पुस्तक के अनुसार भारत दुनिया के प्रति उसके नजरिए को माने और खींची हुई चीनी रेखा के भीतर रहने पर राजी हो जाए तो सीमा विवाद का मुद्दा सुलझ सकता है.
पूर्व राजनयिक रंजीत सिंह काल्हा की किताब इंडो-चाइना बाउंड्री इश्यूज : क्वेस्ट फॉर सेटलमेंट में कहा गया है कि चीन सीमा विवाद का इस्तेमाल भारत को विदेश नीति में ऐसे बदलाव के लिए मजबूर करने की कोशिश के तहत करता है जिसका इस विवाद से कोई लेना-देना ही नहीं है. विदेश मंत्रालय में सचिव रह चुके काल्हा ने 1985 से 1988 तक बाउंड्री सब-ग्रुप में भारत की वार्ता टीम की अगुवाई की थी.
‘पेंटागन प्रेस’ द्वारा प्रकाशित इस किताब में कहा गया है कि चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से घुसपैठ के खतरों का इस्तेमाल दमनात्मक कूटनीति के लिए किया है ताकि वह अपने तरीके से फैसलों को प्रभावित कर सके. यही प्रमुख वजह है कि चीन इस समस्या का जल्द समाधान नहीं चाहता.
किताब के लेखक का मानना है कि भारत-चीन सीमा विवाद का समाधान सिर्फ तकनीकी मामला नहीं है बल्कि यह एक राजनीतिक और सामरिक मुद्दा है जिसके परिणामों का असर इन दोनों देशों पर ही नहीं बल्कि उससे भी आगे होगा. यदि यह विवाद सिर्फ तकनीकी मामला होता तो इसे बहुत पहले ही सुलझा लिया गया होता.
किताब में कहा गया है कि नीतिगत बदलाव इस आकलन के बाद होते हैं कि किसी बदलाव से फायदा होगा या फिर इससे नुकसान होगा. कोई भी नीतिगत फैसला यूं ही नहीं लिया जाता. लेखक के मुताबिक, ‘‘दूसरे शब्दों में, सीमा विवाद का समाधान तभी संभव है जब भारत चीन की ओर से खींची गई रेखा के दायरे में रहे. काल्हा ने कहा कि तिब्बत के बाबत भारत की मंशा को लेकर चीन का संदेह अब भी बना हुआ है क्योंकि जब भी भारत-चीन संयुक्त बयान का उल्लेख होता है, चीन जोर देता है कि इसमें एक वाक्य यह भी होना चाहिए कि ‘तिब्बत चीन का हिस्सा है’.
लेखक का कहना है कि यह तथ्य है कि दोनों देशों के बीच सामरिक स्तर पर अविश्वास की स्थिति बनी हुई है और यह स्थिति दूर होने के भी कोई संकेत नहीं हैं. लिहाजा, चीन पाकिस्तान को सक्रिय सहायता देकर भारत को दक्षिण एशिया तक सीमित रखने और सीमा पर एलएसी पार से घुसपैठ जारी रखकर भारत को सामरिक रुप से असंतुलित रखने की अपनी नीति पर कायम रहेगा.
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