नयी दिल्ली : भाजपा के चार शीर्ष नेताओं के रूप में स्थापित हो चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, वित्तमंत्री अरुण जेटली व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के आपसी रिश्तों पर बार-बार सवाल उठते हैं. 2013 में मोदी के भाजपा चुनाव अभियान समिति के प्रमुख बनने व उसके बाद प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने से पूर्व इन चारों नेताओं को प्रधानमंत्री पद का दावेदार व पीएम मेटेरियल माना जाता रहा है.
यहां तक कि मोदी के पीएम उम्मीदवार बनने के बाद भी यह माना जा रहा था कि अगर एनडीए को स्पष्ट बहुमत नहीं आता है, तो उनकी जगह इन्हीं तीनों में से कोई एक प्रधानमंत्री बनेगा. पर, मोदी ने अपने दम पर पूरे चुनावी गणित बदल दिया और भाजपा को स्पष्ट बहुमत व एनडीए को प्रबल बहुमत के साथ सत्ता में लाने में कामयाबी हासिल की. कांग्रेस की तरह परिवारवादी नहीं होने के कारण चारों नेताओं को हमेशा राजनीतिक हलकों में एक-दूसरे का प्रतिस्पर्धी भी माना जाता रहा है.
मोदी-जेटली-स्वराज को जहां पार्टी के मुख्य संगठनकर्ता लालकृष्ण का आडवाणी करीबी माना जाता रहा, वहीं राजनाथ सिंह सिंह हमेशा एक अलग ध्रुव पर खड़े दिखे. पार्टी की कमान संभालने के बाद राजनाथ सिंह ने हमेशा दो रामबाण का उपयोग कर अपने प्रतिस्पर्धियों पर बढ़त हासिल की. वे हैं – एक पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसंघ की सलाह या निर्देश और दूसरा अटल बिहारी वाजपेयी की इच्छा या उनकी अनुमति. आडवाणी ने 2007 के उत्तरप्रदेश चुनाव में पार्टी की हार पर अप्रत्यक्ष रूप से राजनाथ के नेतृत्व कौशल पर ही सवाल उठाया था.
ऐसे सवाल उन्होंने कई दूसरे मौकों पर भी उठाया. लेकिन इन विरोधों के बावजूद वे मजबूती से डटे रहे व अपना राजनीतिक कद भी बढ़ाया. लेकिन राजनीति में तमाम सांगठनिक व रणनीतिक कौशल के साथ जनता को लुभाने वाले कौशल की भी आवश्यकता होती है. इसमें नरेंद्र मोदी ने बाकी ने बढ़त ले ली. जनता को लुभाने के कौशल में मोदी के आसपास कोई दूसरा नेता है, तो वह सुषमा स्वराज ही हैं. राजनाथ व जेटली भीड़ जुटाऊ राजनेता नहीं हैं. बहरहाल, अब भाजपा की राजनीति के शीर्ष पर मोदी स्थापित हो गये हैं, इसके बावजूद मोदी के साथ पार्टी के दूसरे नेताओं को रिश्तों पर अब भी लोगों की नजर रहती है.
हाल में राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह को कथित रूप से प्रधानमंत्री द्वारा डांटे जाने व भ्रष्टाचार का आरोप लगने संबंधी खबरें मीडिया में आने के बाद फिर एक बार सवाल उठा कि आखिर यह स्थिति क्यों उत्पन्न हुई. मीडिया में यह खबर आयी कि भले ही मोदी ने राजनाथ को नंबर दो कि हैसियत दे दी हो, लेकिन सरकार में नंबर दो की हैसियत के लिए अभी भी रस्साकशी है. जाहिर है यह रस्साकशी पार्टी के दूसरे शीर्ष नेताओं से होनी है.
शुक्रवार को जब राजनाथ मीडिया से अपने मंत्रालय के कामकाज पर बात कर रहे थे, तब भी पत्रकारों ने उनसे सवाल पूछा कि उनके पीएम से रिश्ते कैसे हैं. इस पर राजनाथ ने कहा कि उनके पीएम मोदी से रिश्ते बहुत अच्छे हैं. ध्यान रहे कि राजनाथ ने पहली बार अध्यक्ष की कमान संभालने के बाद मोदी को संसदीय बोर्ड से बाहर का रिश्ता दिखा दिया था और यह संकेत दिया कि वे भी बाकी मुख्यमंत्री की ही तरह हैं. जबकि 2013 में उन्हें पीएम उम्मीदवार बनाने में आडवाणी, सुषमा के विरोधों को उन्होंने नजरअंदाज कर दिया था.
पार्टी की अलग-अलग धुरी का एक होना पार्टी की आडवाणी-जोशी पीढ़ी को किनारे लगाने के लिए मोदी-राजनाथ-जेटली ने इस लोकसभा में आपसी मतभेदों को भुलाकर एक जुटता दिखायी. हालांकि मोदी-जेटली में हमेशा से बहुत मधुर रिश्ते रहे हैं, लेकिन राजनाथ व जेटली पार्टी की अलग-अलग धुरी रहे हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव में कुछ सीटों के टिकट वितरण को लेकर राजनाथ व जेटली के बीच मतभेद सतह पर उभर कर आ गया था.
आडवाणी की घोर समर्थक व खुद को पीएम मैटेरियल मानने वाली सुषमा ने 2014 के चुनाव में बहुत उत्साह नहीं दिखाया व एक हद तक मोदी-राजनाथ-जेटली से अलग-थलग ही नजर आयीं. हालांकि पार्टी को जीत मिलने के बाद ही मोदी-राजनाथ ने यह संकेत दे दिया कि सुषमा की उपेक्षा नहीं की जायेगी. अलबत्ता अमृतसर सीट से हारने के बाद जबजेटली मीडिया के सामने नहीं आ रहे थे, तो राजनाथ ही उनसे मिलने उनके घर पहुंचे और साफ किया कि जेटलीभले ही चुनाव हार गये हों, लेकिन पार्टी उनकी प्रतिभा व अनुभव का पूरा उपयोग करेगी.
यानी सरकार गठन सेपूर्व ही यह स्पष्ट था कि सत्ता शिखर पर यही चारों नेता होंगे. बहरहाल, भाजपा को मिली सत्ता के केंद्र में आजमोदी व उनके साथ राजनाथ-जेटली-सुषमा ही हैं, लेकिन इनके बीच पुरानी रस्साकशी के कारण आज भी सवाल उठखड़े होते हैं और शायद इसलिए राजनाथ को आज मीडिया को यह सफाई देनी पड़ी कि उनके पीएम मोदी से संबंधमधुर हैं.