जिनिवा : संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर इस साल हल्की ही रहेगी और उसने लोगों के वेतन बढाने का आह्वान किया है कि मांग और निवेश बढाया जा सके. उसकी राय में इसी रास्ते से सही मायने में आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकेगा. संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन (अंकटाड) ने चेतावनी दी है, ‘वैश्विक आर्थिक एवं वित्तीय संकट के छह साल बाद भी अभी वैश्विक अर्थव्यवस्था मजबूत वृद्धि की राह पर नहीं लौटी है.’
अंकटाड की एक प्रमुख रपट व्यापार एवं विकास 2014 के मुताबिक वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर इस साल 2.5 से 3.0 प्रतिशत के बीच रहेगी जो 2012 एवं 2013 में दर्ज 2.3 प्रतिशत की वृद्धि दर से अधिक होगी. रपट में कहा गया कि विकासशील देशों में वृद्धि दर इस साल 4.7 प्रतिशत हरने की उम्मीद उम्मीद है जो पिछले साल दर्ज 4.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज से अधिक है. इधर विकसित देशों की वृद्धि दर 1.8 प्रतिशत होगी जो पिछले साल दर्ज 1.3 प्रतिशत की वृद्धि दर से अधिक होगी.
इस रपट में सहयोग करने वाले ऐल्फ्रेडो कैलगानो ने चेतावनी दी कि वैसे ही संकेत दिख रहे हैं जो 2007 में वित्तीय संकट से पहले दिख रहे थे. उन्होंने एएफपी से कहा ‘शेयर बाजारों का उछलना, आसानी से ऋण और वित्तीय क्षेत्रों का मूल रूप से विनिमयन के दायरे से बाहर बने रहना. उल्टे आर्थिक विसमता बढने का मुद्दा अभी नहीं सुलझाया जा सका है.’ अंकटाड के विशेषज्ञ ने आगाह किया कि समस्या यह है कि वैश्विक सुधार कमजोर है जबकि इसे समर्थन प्रदान करने वाली नीतियां न सिर्फ अपर्याप्त हैं बल्कि अस्थिर भी हैं.
इस रपट में विशेष तौर पर विकसित देशों में खर्च कम करने और वेतन कटौती की पहल की आलोचना की गयी है जो यह मानकर किया गया कि इससे हालात में सुधार होगा. रपट में कहा गया कि इससे घरेलू मांग में कमी ही आयी. रपट में कहा गया कि सतत सुधार के इच्छुक देशों इसकी बजाय वेतन बढातरी और आय के ज्यादा समान वितरण पर ध्यान देना चाहिए. कैलगानो ने कहा ‘सुधार की प्रक्रिया मांग से जुडी होनी चाहिए.’