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आपकी यादों की घटाओं को बरसने का मौका तब मिलता है, जब वे फेसबुक जैसे पहाड़ों से टकराती हैं. आपकी याद्दाश्त, पसंद, नापसंद सबका मतलब है. आप सिर्फ व्यक्त करते रहिए. उसे सजाने-संवारने एवं सप्लाई करनेवाला कारोबार बाकी काम खुद ही कर लेगा. सोशल मीडिया पर इन दिनों किताबों पर चर्चा हो रही है. किताब […]

आपकी यादों की घटाओं को बरसने का मौका तब मिलता है, जब वे फेसबुक जैसे पहाड़ों से टकराती हैं. आपकी याद्दाश्त, पसंद, नापसंद सबका मतलब है. आप सिर्फ व्यक्त करते रहिए. उसे सजाने-संवारने एवं सप्लाई करनेवाला कारोबार बाकी काम खुद ही कर लेगा.

सोशल मीडिया पर इन दिनों किताबों पर चर्चा हो रही है. किताब माने किताब. इसे कुछ लोग ‘मेरी पसंदीदा दस किताबें’ शीर्षक देकर अपनी राय दे रहे हैं या ले रहे हैं. अगस्त के आखिरी दो हफ्तों में फेसबुक ने अपनी ओर से एक सर्वे किया था, जिसमें उसने एक लाख 30 हजार सैंपल अपडेट्स की मदद से यह जानने की कोशिश की थी कि लोगों की दस सबसे पसंदीदा किताबें कौन सी हैं. इसके सहारे फेसबुक ने सौ किताबों की सूची तैयार की. इस सूची को बनाने के पहले उसने जवाब देनेवालों से कहा कि ज्यादा देर सोचे या ज्यादा गहराई में जाये बगैर तुरत-फुरत में जवाब दो. उद्देश्य यह जानना था कि लोगों के मन में कौन सी किताब बैठी है. जरूरी नहीं कि वह महान साहित्यिक रचना हो या कोई महत्वपूर्ण दार्शनिक ग्रंथ. इस सर्वे में शामिल सबसे ज्यादा लोग अमेरिकी थे 63.7 फीसदी, दूसरे स्थान पर भारतीय थे 9.3 फीसदी और तीसरे स्थान पर यूके के थे 6.3 फीसदी.

फेसबुक डेटा साइंस पेज पर हाल में इस सर्वे का परिणाम प्रकाशित किया गया है. सबसे ऊपर है हैरी पॉटर सीरीज, दूसरे पर है हार्पर ली की टु किल अ मॉकिंग बर्ड, तीसरे पर जेआर टॉल्कीन की द लॉर्ड ऑफ द रिंग्स, चौथे पर द हॉबिट, पांचवें पर प्राइड एंड प्रिज्युडिस, छठे पर पवित्र बाइबिल और सातवें पर लोकप्रिय कॉमेडी शो पर आधारित द हिच हाइकर्स गाइड टु द गैलेक्सी है. भारत के खासतौर से हिंदी के पाठकों की दिलचस्पी इस सूची में नहीं होगी. अलबत्ता यह जानना रोचक होगा कि सौ की सूची में भी चेतन भगत का नाम नहीं है. भारत से इसमें शामिल ज्यादातर लोग शायद अंगरेजी पढ़नेवाले ही थे, पर लगता है कि पसंद बताते वक्त वे भी अमेरिकी पाठकों की समझ पर चलते हैं.

बहरहाल इस सर्वे के बहाने दो बातों पर बात की जा सकती है. पहली बात किताबों के बाबत और दूसरी बात राय बनाने से जुड़ी है. फेसबुक खुद को विज्ञापन का महत्वपूर्ण प्लेटफॉर्म बनाने की दिशा में लगातार काम कर रहा है. वह इसके लिए कई तरह के सर्वे कर रहा है. यह जानने की कोशिश कर रहा है कि क्या लोग स्टेटस अपडेट के सहारे किसी राय के व्यावसायिक दोहन में मददगार हो सकते हैं या नहीं? यदि हो सकते हैं तो किस तरीके से. पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भारत की कुछ कंपनियों ने सोशल मीडिया के मार्फत राजनीतिक राय बनाने का काम किया. यह बात समझ में आती, उसके पहले ही राय बनने लगी.

इन दिनों एक शब्द प्रचलित हो रहा है मीम (एमइएमइ). यह एक अवधारणा है व्यक्तियों के मार्फत किसी समुदाय, संस्कृति और समाज में राय कायम करना, सबके मन में किसी बात को बिठाना. सौ किताबें, पांच फोन, दस टीवी, बीस फिल्में.. ऐसा कुछ भी हो सकता है. आपके पास एक पोस्टकार्ड आता है कि फलां बाबा के आशीर्वाद से फलां को इतना फायदा हुआ. फिर पत्र में नीचे लिखा होगा कि इसकी पचास प्रतियां अपने पचास दोस्तों के पास भेजिए, दो दिन के भीतर आपको खुशखबरी सुनने को मिलेगी. कुछ पत्र-लेखक आपके भय का दोहन करने के लिए यह भी लिख देते हैं कि फलां लोगों ने प्रतियां नहीं भेजी, तो किस तरह रसातल में पहुंच गये. आधुनिक संदर्भो में ‘मीम’ शब्द का इस्तेमाल 1976 में रिचर्ड डॉकिंस ने अपनी किताब ‘द सेल्फिश जीन’ में किया था. डॉकिंस ने लिखा कि जैविक उद्विकास (इवॉल्यूशन) किसी खास रसायन की उपस्थिति के कारण न होकर अपनी प्रतियां तैयार करने और उनके संचरण की सामथ्र्य के कारण हुआ. किसी धारणा की प्रतियां तैयार करते जाइए, उसका अस्तित्व बना रहेगा, बल्कि विकास होता जायेगा. वैचारिक प्रतियां तैयार करने की इस प्रक्रिया के कारण सैकड़ों नये विचार तैयार हो रहे हैं. क्या आपने कभी सोचा है कि वह पहला पोस्टकार्ड कब लिखा गया होगा?

हम जानना चाहते हैं, इसीलिए जानते हैं. प्राचीन ग्रीक शब्द मीमीमा से बना मीम अब इंटरनेट की सवारी से कुछ और नये मतलब तैयार कर रहा है. इसे इंटरनेट-मीम कहा जा रहा है. तसवीरों, हाइपर लिंकों, वीडियो फिल्मों, हैशटैग वगैरह के मार्फत किसी वस्तु, अवधारणा को लेकर राय कायम की जा रही है. अपने दीर्घ अर्थ में विवेचन पीछे जा रहा है, क्योंकि हमारे पास विवेचन के लिए समय नहीं बचा. हम कम से कम वक्त में राय बनाना या बिगाड़ना चाहते हैं. राय बिगाड़ना भी एक प्रकार की राय बनाना है. मसलन किसी वस्तु, उत्पाद, व्यक्ति या संस्था की छवि बिगाड़ना भी राय बनानेवाला काम है. फेसबुक पर पसंदीदा फोटो के शेयर पर गौर करें. सुबह आपने जो फोटो लगाया था, संभव है शाम तक उसे लाखों लोग शेयर कर चुके हों. जब आप अपनी पसंद की पुस्तक की सूची बनाते हैं, तब अपने मित्रों को टैग भी करते हैं. इससे मित्रों की राय भी बनती है. संभव है वे दो-एक किताबें और जोड़ते हों. तमाम ऐसी किताबें याद आती हैं, जो किसी को याद नहीं. कई स्टेटस पर आप लिखा पाते हैं कि इसे शेयर करने पर फेसबुक की ओर से फलां को एक डॉलर दिया जायेगा. आप खुद दान करने के बजाय फेसबुक को दान की मुद्रा में पाते हैं, तो उस स्टेटस पर कृपा कर देते हैं.

बहरहाल किताबों पर वापस आयें. दिल्ली के पुस्तक मेले में जायें, तो सबसे ज्यादा भीड़ खान-पान की जगह पर मिलेगी. पुस्तक मेले के साथ फूड-कोर्ट न हो तो शायद आधी भीड़ भी न आये. हॉल में सबसे ज्यादा भीड़ जहां उमड़ी दिखाई दे, वहां समझ लीजिए कि या तो नये किस्म की सस्ती स्टेशनरी है या कोई मैजिक शो. फेसबुक ने कहा, जल्दी से जो याद आये उसका नाम लिख दो. सबसे ज्यादा लोगों को हैरी पॉटर का नाम याद आया. हैरी पॉटर जब शुरू में आया था, तब उसे कुछ समय लगा, पर अब उसे लोकप्रिय बनानेवाली चेन कायम हो चुकी है. फेसबुक पर बुक बकेट चैलेंज बाकी काम पूरा कर रहा है.

हमें इब्ने सफी बीए, प्रेम प्रकाश, प्यारे लाल आवारा, सुरेंद्र मोहन पाठक, रानू, शेखर, कर्नल रंजीत, ओम प्रकाश शर्मा, चेतन भगत, अमीश त्रिपाठी, अश्विन संघवी, शोभा डे, चंपक, चंदामामा, मनमोहन, बालक से लेकर राजा भैया तक याद आ रहे हैं. आपकी इन यादों की घटाओं को बरसने का मौका तब मिलता है, जब वे फेसबुक जैसे पहाड़ों से टकराती हैं. आपकी याद्दाश्त, आपकी शिकायतें, आपकी पसंद, आपकी नापसंद सबका मतलब है. आप सिर्फ व्यक्त करते रहिए. उसे सजाने-संवारने, पैक करने और सप्लाई करनेवाला कारोबार बाकी सारे काम खुद ही कर लेगा. आपके दस पसंदीदा फिल्मी गीत कौन से हैं? याद है तो लिख दीजिए और दस दोस्तों के नाम टैग कर दीजिए!

प्रमोद जोशी

वरिष्ठ पत्रकार

pjoshi23@gmail.com

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