-राहुल सिंह-
नयी दिल्ली : पूर्व आइएएस अधिकारी व दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग के पास विभिन्न विरोधी पक्षों के बीच संतुलन साधते हुए अपनी स्थिति को मजबूत बनाये रखने का अद्भुत कौशल है. उन्होंने भाजपा, कांग्रेस व आम आदमी पार्टी जैसे अलग-अलग राजनीतिक धड़ों के बीच संतुलन साधा है. भले ही अब दिल्ली में भाजपा के सरकार बनाने की आमंत्रित करने के लिए राष्ट्रपति से अनुमति मांगने पर आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल उनकी आलोचना कर रहे हों, लेकिन पहले उन्होंने कई मौकों पर उप राज्यपाल की तारीफ की है.
दिल्ली के कोलंबा स्कूल में पढ़े-लिखे और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के स्टिफंस कॉलेज से स्नातक इस शख्स को ऊर्जा सुरक्षा में विशेषज्ञता हासिल है. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एमए करने के बाद विकासशील देशों में सामाजिक नीति व विकासशील देशों के लिए योजना विषय में लंदन के स्कूल ऑफ इकनोमिक्स से भी एमए किया.
उसके बाद वे सिविल सेवा में गये. 1973 बैच के मध्यप्रदेश कैडर के आइएएस अधिकारी जंग की कांग्रेस से करीबी संबंध रहे हैं. वे कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के निजी सचिव भी रह चुके हैं. इस्पाल मंत्रलय में निदेशक व पेट्रोलियम मंत्रलय में उन्हें संयुक्त सचिव के रूप में काम करने का भी अनुभव है. इस पद पर रहते हुए उन्होंने सरकार व रिलायंस के बीच कुछ महत्वपूर्ण करार में अहम भूमिका निभायी थी.
साथ ही एशियन डेवलपमेंट बैंक के लिए ऊर्जा सुरक्षा विषय पर उन्होंने काम किया है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में इसी विषय के वे विजिटिंग फैलो के रूप में काम कर चुके हैं.2008 में जब वे भारत लौटे तो दिग्गजों को पीछे छोड़ जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के कुलपति बने. वे विभिन्न अखबारों के लिए कॉलम भी लिखते रहे हैं. नौ जुलाई 2013 को दिल्ली के उप राज्यपाल का पद संभालने वाले नजीब जंग भारत सरकार के द्वारा गठित कई महत्वपूर्ण समितियों के सदस्य भी रहे हैं.
जंग जब 2009 में जामिया के कुलपति बने थे, तो उन्होंने उस समय दो मजबूत प्रतिद्वंद्वियों को पीछे छोड़ कर यह सीट पायी थी. एक तो तत्कालीन वीसी मुजीरुल हसन थे और दूसरे बिहार में तैनात आइएएस अफसर अफजल अमानुल्लाह थे. हसन तो उस समय जामिया के कुलपति ही थे, जिन्हें उस समय सरकार एक और कार्यकाल देने के लिए तैयार नहीं हुई थी. तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल हसन को ही दूसरी पारी देना चाहते थे, लेकिन हसन पर लगे कुछ गंभीर आरोपों के खिलाफ 23 सांसदों ने उनके खिलाफ मोर्चा संभाल लिया और जंग कुलपति बन गये.
अब जब कांग्रेस के बुरे दिन चल रहे हैं और भाजपा के अच्छे दिन आ गये हैं, तो जंग भी बदली परिस्थितियों के बीच संतुलन बना रहे हैं. संभवत: उनके संतुलन का ही कौशल है कि जब कांग्रेस के द्वारा नियुक्त राज्यपालों के लिए भाजपा ने ऐसी परिस्थितियां बना दी कि एक-एक कर वे खुद अपना पद छोड़ने लगे, तब भी जंग मजबूती से अपनी कुर्सी पर डटे हैं. संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप ही उन्होंने भाजपा के दिल्ली में सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने की अनुमति राष्ट्रपति से मांग ली है. इससे यह संकेत मिलता है कि भले ही दिल्ली की मौजूदा विधानसभा में कोई सरकार बने न बने, लेकिन जंग के अगले लगभग चार साल के कार्यकाल पर कोई संकट नहीं मंडराने वाला है.