झारखंड की औद्योगिक नगरी और राजधानी को जोड़ने वाले एनएच 33 की हालत तमाम कवायदों के बावजूद बिगड़ती जा रही है. बंगाल, ओड़िशा और झारखंड को एकसाथ जोड़ने वाले इस हाइवे पर हालत यह है कि बहरागोड़ा के पास जहां यह बाकी दोनों राज्यों से जुड़ता है, सड़क नाम की चीज ही नहीं है.
बारिश के दिनों में रोजाना 10-12 किमी तक जाम आम बात है. रांची-बहरागोड़ा एनएच के चौड़ीकरण का काम चार वर्षो से जारी है. लेकिन रफ्तार बेहद मंद. चार सालों में चौड़ीकरण का काम सिर्फ कुछ किमी तक मिट्टी बिछाने तक सीमित रहा. इस बीच इसके मरम्मतीकरण भी करोड़ों खर्च हुए, लेकिन भारी वाहनों के आवागमन व मरम्मत की खराब गुणवत्ता से सड़क हल्की बारिश भी नहीं ङोल पाती.
लिहाजा, इससे पूरे क्षेत्र की औद्योगिक गति पर तो असर पड़ा ही, दुर्घटनाओं की रफ्तार भी तेजी से बढ़ी. जजर्र सड़क पर घायलों को समय पर और सुरक्षित अस्पताल पहुंचाना बड़ी चुनौती है. एनएच के चौड़ीकरण के दौरान इसके मरम्मत की जिम्मेदारी भी उसी एजेंसी को दी गयी, जिसे इसका चौड़ीकरण करना है. लेकिन फिर भी यह संभव नहीं हो पा रहा. केंद्र व राज्य सरकार के बीच मरम्मतीकरण को लेकर खींचतान होती रही है, जिसका खामियाजा आम लोगों को उठाना पड़ा है.
समय-समय पर विभिन्न राजनीतिक दलों ने इसे मुद्दा बनाने की कोशिश जरूर की, लेकिन कभी यह चुनावी एजेंडा नहीं बन सका. एक बार फिर झारखंड विधानसभा चुनाव होनेवाले हैं. देखना है कि क्या कोई दल दलदल में तब्दील हो चुके इस एनएच के मुद्दे को अपने एजेंडे में शामिल करता है या फिर यह सिर्फ जनता का अनकहा दर्द बन कर रह जायेगा. केंद्र ने करीब 227 किमी लंबे एनएच 33 के इस जोन को दुर्घटना बीमा लाभ के अंतर्गत रखने की घोषणा की है. जिसके तहत हर 25 किमी पर एंबुलेंस रहेगी, जो घायलों को अस्पताल पहुंचायेगी.
साथ ही घायलों के इलाज पर 25 हजार तक का खर्च होंगे. लेकिन इन घोषणाओं के पूर्व यह बेहद जरूरी है कि एनएच की हालत को बेहतर बनाया जाये. इसके चौड़ीकरण के काम में आ रही अड़चनों को दूर कर इसे रफ्तार दी जाये. काम की समय सीमा तय की जाये और उस दौरान एनएच के मरम्मतीकरण की जिम्मेदारी सुनिश्चित की जाये.