मुंबई : बकाये ऋण का भुगतान नहीं करने वालों पर रिजर्व बैंक ने नकेल कसते हुए कहा है कि अगर गारंटर अपने दायित्वों को पूरा नहीं करता है तो उसे भी दरादतन चूककर्ता माना जायेगा. एक बार इरादतन चूककर्ता का तमगा लगने पर व्यक्ति या फर्म संस्थागत ऋण का लाभ नहीं उठा सकता. ऐसा व्यक्ति निदेशक के पद पर भी नहीं बना रह सकता.
आरबीआई ने एक सर्कुलर जारी कर कहा, ”उस मामले में जब बकाए का भुगतान करने के लिए पर्याप्त साधन होने के बावजूद गारंटर ऋणदाता बैंकों की मांग पूरी करने से मना करता है तो ऐसे गारंटर को भी इरादतन चूककर्ता माना जाएगा.” हालांकि, यह सर्कुलर जारी होने के बाद से लागू होगा न कि सर्कुलर जारी होने से पहले के मामले में ली गई गारंटी पर. रिजर्व बैंक ने कहा, ”बैंक या वित्तीय संस्थान यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि इस स्थिति से गारंटी लेने वाले बाद के सभी गारंटरों को अवगत करा दिया जाये जिससे गारंटी लेते समय गारंटर पूरी तरह सचेत रहे.”
रिजर्व बैंक ने विस्तार से बताया कि जहां बैंक ने मूल कर्जदार द्वारा चूक करने की वजह से गारंटर पर दावा किया है, गारंटर की तत्काल देनदारी बनती है. गारंटर व्यक्ति भी हो सकता है या कंपनी हो सकती है. सर्कुलर में कहा गया है कि उन मामलों में जहां समूह के भीतर जानबूझकर चूक करने वाली इकाइयों की ओर से कंपनियों द्वारा गारंटी दी जाती है, तो ऐसे में बैंक अथवा वित्तीय संस्थानों द्वारा गारंटी दायित्व निभालने के लिये कहने पर दायित्व पूरा नहीं किया जाता है तो समूह की कंपनियों को इरादतन चूककर्ता माना जाना चाहिए.
किंगफिशर ऋण जैसे मामलों में बैंक ऋणों का जानबूझकर भुगतान नहीं करने के वालों से सख्ती से निपटने के लिए सरकार संसद के अगले सत्र में एक अलग विधेयक लाने की योजना बना रही है.
Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.