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कांग्रेस में जान फूंकने के लिए मोहन भागवत वाली भूमिका अदा कर पायेंगी सोनिया?

।। राहुल सिंह ।। नयी दिल्‍ली : सफलता से हजार खूबियां जुड़ी होती हैं और असफलता से हजार दोष. यही हाल आजकी भाजपा व कांग्रेस का है. आज जो कांग्रेस की स्थिति है, वही स्थिति (या उससे थोड़ी बेहतर) 2009 में भाजपा की थी. 2009 में कांग्रेस के हाथों बुरी तरह हारने वाली भाजपा में […]

।। राहुल सिंह ।।

नयी दिल्‍ली : सफलता से हजार खूबियां जुड़ी होती हैं और असफलता से हजार दोष. यही हाल आजकी भाजपा व कांग्रेस का है. आज जो कांग्रेस की स्थिति है, वही स्थिति (या उससे थोड़ी बेहतर) 2009 में भाजपा की थी. 2009 में कांग्रेस के हाथों बुरी तरह हारने वाली भाजपा में कलह चरम पर था.
पार्टी का हर छोटा-बड़ा नेता स्वतंत्र रूप से बयानबाजी कर रहा था. तब पार्टी अध्यक्ष रहे राजनाथ सिंह को अपने नेताओं से अपील करनी पड़ी थी कि मीडिया में वे जिस तरह बातें कर रहे हैं, वह उचित नहीं है, उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि पार्टी का अस्तित्व है, तभी मीडिया उन्हें पूछ रहा है. अगर पार्टी का अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा, तो मीडिया भी उन्हें नहीं पूछेगा.
2009 में भाजपा की जोरदार शिकस्त के बाद उसके पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने परंपरा से हट कर दिल्ली के झंडेवालान स्थित कार्यालय में अपनी बहुचर्चित प्रेस कान्फ्रेंस की थी और कहा था कि भाजपा राख से भी उठ खड़ी होगी. उस समय उन्होंने दिल्ली के चर्चित चार नेताओं के गुट डी – 4 को भी निशाने पर लिया और युवा को पार्टी नेतृत्व सौंपने का संकेत दिया था. उस समय डी – 4 का मतलब था – सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, वेंकैया नायडू और अनंत कुमार.
भागवत ने अपने कहे के अनुसार नितिन गडकरी को पार्टी का नेतृत्व सौंपा और डी-4 की राजनीतिक लामबंदी को खत्म कर दिया. पांच वर्ष बाद 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब भाजपा प्रबल बहुमत से सरकार में आयी तो भागवत की भाजपा के राख से भी उठ खड़े होनी का दावा सच साबित हो गया.
पांच साल बाद भाजपा के हाथों बुरी तरह हारने वाली कांग्रेस का यही हाल है. कांग्रेस का प्रथम परिवार नेहरू -गांधी परिवार की ओर से इस तरह की अपील किये जाने की परंपरा नहीं रही है. लेकिन नेहरू-गांधी परिवार की ओर से यह काम पार्टी के दूसरे नेता करते हैं. ऐसे में पार्टी महासचिवजनार्दन द्विवेदी ने पार्टी नेताओं से संयम बरतने की अपील की है.
उल्लेखनीय है कि हाल में टीम राहुल का हिस्सा माने जाने वाले 14 सचिवों ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को राहुल गांधी के नेतृत्व क्षमता पर कुछ नहीं बोलने की अपील की थी. इस पर जनार्दन द्विवेदी ने उन नेताओं को सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं बोलने की नसीहत देकर चुप करा दिया है. लेकिनइस कवायद के बावजूद कांग्रेस के अंदर खेमेबाजी चरम पर है. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के निशाने पर राहुल गांधी के सलाहकार भी हैं.
पार्टी के शीर्ष नेताओं का एक वर्ग चाहता है कि सोनिया गांधी आगे आयें और एक बार फिर वे पूरी तरह से नेतृत्व संभाल लें. दरअसल, सोनिया गांधी पिछले लोकसभा चुनाव के समय से ही अपने अधिकारों व दायित्वों का तेजी से स्थानांतरण राहुल गांधी को कर रही थीं.
राहुल को कांग्रेस का उपाध्यक्ष बना कर उन्होंने उन्हें पार्टी का कार्यकारी प्रमुख बना दिया. लेकिन राहुल उम्मीदों के अनुसार परिणाम नहीं दे सके. ऐसे में पार्टी नेताओं की नजर एक बार सोनिया गांधी की ओर है, जिन्होंने 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के बाद सुस्त व गुटों में बंटी कांग्रेस में एक नयी ऊर्जा फूंक दी. कांग्रेस नेता सोनिया गांधी से दोबारा यही परिणाम देने की उम्मीद कर रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सोनिया इस बार ऐसा कर पायेंगी.

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