24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

परमाणु नीति पर नरेंद्र मोदी की नरमी

पाकिस्तान और मीडिया के प्रति अपने गैर-लचीले रुख के अलावा मोदी ने अपने कार्यकाल के पहले 100 दिनों में अच्छा काम किया है. उन्हें दुनियाभर में कई नये प्रशंसक मिले हैं और उनमें नरमी व निरंतरता के तत्व आये हैं. आम तौर पर यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल […]

पाकिस्तान और मीडिया के प्रति अपने गैर-लचीले रुख के अलावा मोदी ने अपने कार्यकाल के पहले 100 दिनों में अच्छा काम किया है. उन्हें दुनियाभर में कई नये प्रशंसक मिले हैं और उनमें नरमी व निरंतरता के तत्व आये हैं.

आम तौर पर यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल के पहले 100 दिनों में अच्छा काम किया है. उन्होंने वित्त मंत्रालय में निरंतरता कायम रखते हुए ऐसा बजट पेश किया, जिसे अधिकतर अर्थशास्त्री पिछली सरकार की नीतियों से अलग नहीं कर सकते हैं. भारत के पड़ोसियों की ओर उन्होंने हाथ बढ़ाया है और इस मामले में उनका प्रदर्शन उत्कृष्ट है. कुछ लोगों का तर्क है कि मोदी द्वारा किये गये बदलाव एक सीमा से बाहर नहीं जा सके हैं या उनमें अपेक्षित उग्र सुधारवाद नहीं है. मेरे विचार से यह कोई खराब बात नहीं है. चुनाव प्रचार के दौरान भले ही उन्होंने कुछ वायदे किये थे, पर यह अच्छा है कि उन्होंने उन वादों को पूरा नहीं किया.

लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में और चुनाव प्रचार के अनावश्यक हवाबाजियों के मामले में अकसर देखा जाता है कि उनकी हवा निकल जाती है तथा सत्तारूढ़ होने के बाद अधिक व्यावहारिक कदम उठाये जाते हैं. कुछ दिन पहले जापानी पत्रकारों से नरेंद्र मोदी ने कहा था- ‘इन मसलों पर राष्ट्रीय आम सहमति और निरंतरता की परंपरा है. मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि फिलहाल हम अपने परमाणु सिद्धांतों की समीक्षा की कोई पहल नहीं कर रहे हैं.’ आखिर मोदी ने इस मसले पर दुनिया को आश्वस्त करने के लिए ऐसे सावधानीपूर्ण शब्दों के चुनाव की जरूरत क्यों महसूस की? क्योंकि एक महत्वपूर्ण सामरिक मामले पर भारतीय जनता पार्टी द्वारा यह एक आकस्मिक बदलाव है.

मोदी ने अपने चुनाव घोषणा-पत्र में दावा किया था, ‘भाजपा का मानना है कि परमाणु कार्यक्रम पर अटल बिहारी वाजपेयी के शासन के दौरान मिले सामरिक लाभों को कांग्रेस ने खो दिया है.’ और इस कारण भाजपा ‘मौजूदा चुनौतियों के अनुरूप इसे प्रासंगिक बनाने के लिए भारत के परमाणु सिद्धांत का विस्तृत अध्ययन, संशोधन और अपडेट करेगी. घोषणा-पत्र में आगे कहा गया है कि ‘हमारा पहले भी जोर था और आज भी है कि 21वीं सदी में राष्ट्रीय हितों के अनुरूप नीतियों का निर्धारण हो. बिना किसी विदेशी दबाव के नागरिक व सैन्य उद्देश्योंके लिए द्वि-स्तरीय स्वतंत्र परमाणु कार्यक्रम का हम अनुसरण करेंगे, विशेषकर तब जब परमाणु ऊर्जा का भारत के ऊर्जा क्षेत्र में बड़ा योगदान है.’

अब उन्होंने यह कहा है कि कोई समीक्षा नहीं होगी और नीतियों की निरंतरता बनी रहेगी. या तो मोदी ने इस निरंतरता के बारे में अपने कार्यालय में सीखा, या फिर अपने घोषणा-पत्र की बातों को लेकर वे गंभीर नहीं थे. दूसरी बात सही लगती है, और घोषणा-पत्र में वैसा लिखा जाना अनावश्यक था, क्योंकि मतदाताओं के लिए यह कोई मसला नहीं था. इसे जानबूझ कर घोषणा-पत्र में डाला गया था ताकि पौरुष का प्रदर्शन किया जा सके और अपने अतिवादी समर्थकों को प्रसन्न किया जा सके, जो भारत के सामरिक विचारक समुदाय के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करते हैं. लेकिन यह अच्छा संकेत है कि उन्होंने इस मसले पर लचीलापन दिखाया है और जापान को आश्वस्त किया है कि भारत बिना सोचे-विचारे कोई गैर-जिम्मेदाराना परमाणविक हरकत नहीं करेगा.

पाकिस्तान के कारण जापानी स्पष्टीकरण लेने के लिए उद्यत थे, लेकिन इस पर भी मोदी का रुख संतुलित था. उन्होंने कहा, ‘भारत को शिमला समझौते और लाहौर घोषणा द्वारा तय दायरे में किसी भी द्विपक्षीय मसले पर बातचीत करने में कोई संकोच नहीं है, इसलिए हमें निराशा हुई कि पाकिस्तान ने इन प्रयासों का तमाशा बनाते हुए विदेश सचिव स्तर की वार्ता से ठीक पहले नयी दिल्ली में जम्मू-कश्मीर के अलगाववादियों से बातचीत की.’ मोदी ने आगे कहा कि ‘किसी भी अर्थपूर्ण द्विपक्षीय वार्ता के लिए निश्चित रूप से ऐसे वातावरण की आवश्यकता होती है, जो आतंकवाद और हिंसा से मुक्त हो.’

एक टीवी बहस में, जिसमें मैं भी हिस्सा ले रहा था, भाजपा के प्रवक्ता एमजे अकबर ने इस मसले पर बात को आगे बढ़ाते हुए यह दावा किया कि नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी के कारण पाकिस्तान के साथ वार्ता रद्द की गयी (जबकि हकीकत में गोलाबारी वार्ता के रद्द होने के बाद शुरू हुई). दरअसल, भाजपा ऐसे देश के साथ बातचीत करना ही नहीं चाहती है, जिसे वह दुश्मन मानती है और किसी बहाने बातचीत रद्द कर उसे खुशी ही है. मेरे विचारों से रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व प्रमुख की भी सहमति है, उनके मुताबिक, ‘नियंत्रण रेखा को हम हद से अधिक उछालते रहते हैं. नियंत्रण रेखा पर बहुत कुछ होता रहता है, जिसकी जानकारी किसी को नहीं होती. हमेशा वहां एक हमारी कहानी होती है और एक उनकी, जिनमें कोई मेल नहीं होता. जब आप घुसपैठ की बात करेंगे, तो सेना, अर्धसैनिक बलों, राज्य पुलिस और इंटेलिजेंस ब्यूरो की संख्या हमेशा अलग होती है. इसलिए हमें सिर्फ इस पर ही बात नहीं करनी चाहिए. सवाल तो यह है कि अगर नियंत्रण रेखा पर अधिक मौतें हुई हैं, तो इसका मतलब यह है कि दोनों तरफ से गतिविधियों में तेजी आयी है. लेकिन यह कह पाना कठिन है कि यह हरकत किस तरफ से की गयी. दोनों पक्ष एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं.’

नरेंद्र मोदी की कुछ और पुरानी आदतें अभी नहीं गयी हैं. इनमें मीडिया को लेकर उनकी घृणा भी एक है. यह सही है कि मीडिया द्वारा उन पर अकसर हमला किया जाता है. पर राहुल गांधी से लेकर अरविंद केजरीवाल, मायावती, मुलायम सिंह आदि तक सबको मीडिया की आलोचना ङोलनी पड़ती है. लेकिन मोदी इसे व्यक्तिगत रूप से ले लेते हैं. जापान के सम्राट अकिहितो से मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि ‘मैं उनके लिए उपहार के रूप में गीता ले आया था. मुङो नहीं पता है कि इसके बाद भारत में क्या होगा. इस पर टीवी बहस भी हो सकती है. हमारे सेकुलर मित्र यह पूछते हुए तूफान खड़ा कर सकते हैं कि मोदी अपने को समझता क्या है? वह गीता लेकर गया है, जिसका अर्थ है कि उसने इसे भी सांप्रदायिक बना दिया. बहरहाल, उन्हें (मीडिया को) भी जीवित रहना है और अगर मैं नहीं रहूंगा, तो उनकी रोजी-रोटी कैसे मिलेगी?’

यह एक गैर-जरूरी बयान था. भारत में किसी को भी अकिहितो को उनके द्वारा गीता दिये जाने पर आपत्ति नहीं थी, और मोदी द्वारा अपनी हर आलोचना के पीछे कोई निहित स्वार्थ देखना बिल्कुल गलत है.

पाकिस्तान और मीडिया के प्रति अपने गैर-लचीले रुख के अलावा मोदी ने अपने कार्यकाल के पहले 100 दिनों में अच्छा काम किया है. उन्हें दुनियाभर में कई नये प्रशंसक मिले हैं और उनमें नरमी व निरंतरता के तत्व आये हैं, जिसका बाजार ने उत्साहपूर्वक अभिनंदन किया है.

आकार पटेल

वरिष्ठ पत्रकार

aakar.patel@me.com

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें