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क्या केजरीवाल फिर अटकायेंगे दिल्ली में सरकार गठन की राह में रोड़ा?

II राहुल सिंह II नयी दिल्‍ली : आम आदमी पार्टी के अगुवा अरविंद केजरीवाल शनिवार को राष्ट्रपति से मिल कर दिल्ली में सरकार गठन की हो रही कवायद पर अपना पक्ष रखेंगे. जाहिर है वे अपने चिर-परिचित शैली में कहेंगे कि दिल्ली में करोड़ों में विधायक की खरीद-बिक्री हो रही है. दिल्ली का मुख्यमंत्री पद […]

II राहुल सिंह II

नयी दिल्‍ली : आम आदमी पार्टी के अगुवा अरविंद केजरीवाल शनिवार को राष्ट्रपति से मिल कर दिल्ली में सरकार गठन की हो रही कवायद पर अपना पक्ष रखेंगे. जाहिर है वे अपने चिर-परिचित शैली में कहेंगे कि दिल्ली में करोड़ों में विधायक की खरीद-बिक्री हो रही है. दिल्ली का मुख्यमंत्री पद छोड़ खुद की जिम्मेवारी से भागने वाले और सबकी जिम्मेवारी का आकलन करने वाले केजरीवाल ने आज अपनी मंशा भी साफ कर दी है.

केजरीवाल ने कहा कि अगर भाजपा उन्हें खरीदना चाहे तो मना नहीं करें, बल्कि हां में हां मिलाते रहें और रिकार्डिग कर ले. ताकि मामले की सच्चई जनता के सामने आ सके. केजरीवाल ने इस तरह का स्टिंग करने का बयान पहले भी दिया था. अब सवाल यह उठता है कि जिस राजनीतिक पार्टी के बारे में कोई विरोधी दल का नेता सार्वजनिक रूप से ऐसा कह रहा हो तो वह क्यों इस तरह के झमेले में पड़ना चाहेगी? हां, अगर कोई स्वाभाविक रूप से राजनीतिक शर्तो पर आना चाहेगा तो फिर वह इसके लिए तैयार हो सकती है. व्यावहारिक राजनीति में ऐसी पहल भी की जाती है.

भाजपा के वरिष्ठ नेता की हैसियत से केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इस बीच एलान कर दिया है कि उनकी पार्टी जोड़-तोड़ कर व खरीद-फरोख्त कर सरकार नहीं बनायेगी. राजनाथ ने संकेत किया कि बिना किसी विवाद की स्थिति उत्पन्न हुए सरकार बन सकी तो ठीक है, नहीं तो चुनाव में जाने का विकल्प खुला है.

उधर, संविधान के जानकार एसके शर्मा ने आज एक निजी न्यूज चैनल से बातचीत में कहा एनसीटी एक्ट के तहत उपराज्यपाल को यह अधिकार है कि वह विधानसभा की बैठक बुलायें और सदन को अपना नेता चुनने को कहें. ऐसे में यह सदन पर निर्भर होगा कि वह कौन-सा रास्ता अख्तियार करता है. 70 सदस्यों वाली दिल्ली विधानसभा में फिलहाल 67 विधायक हैं. ऐसे में सरकार बनाने 34 विधायकों की जरूरत है.

भाजपा के पास अपने सहयोगियों सहित 29 विधायक हैं, यानी बहुमत से पांच कम. यानी सदन में अगर सभी विधायक मतदान प्रक्रिया में भाग लेते हैं, तो भाजपा को पांच और विधायकों के सहयोग की जरूरत पड़ेगी, जो कांग्रेस या आम आदमी पार्टी से ही पूरी हो सकती है. दूसरी सूरत यह हो सकती है कि राज्य की राजनीतिक अनिश्चिता को दूर करने के उद्देश्य से कांग्रेस के आठ विधायक सदन से वाकआउट कर जायें, तो ऐसे में 59 विधायक बचेंगे और मतदान में भाजपा आसानी से जीत जायेगी.

भाजपा का प्लान बी है तैयार

भाजपा ने अपना प्लान बी दिल्ली के लिए तैयार कर रखा हैं. अगर उपराज्यपाल की पहल पर व राष्ट्रपति के मार्गदर्शन पर राज्य में सरकार नहीं बन पाती है, तो पार्टी चुनाव का रास्ता अख्तियार करेगी. इस मामले में अंतिम फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के आपसी विचार-विमर्श और उसके बाद संसदीय बोर्ड की बैठक में होगा. 11 सितंबर को पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक तय है, जिसमें दिल्ली प्रमुख मुद्दा है, हालांकि उसमें चुनावी राज्यों महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड व जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर भी उसमें चर्चा होगी. क्योंकि फिलहाल शाह अभी चुनावी राज्यों का दौरा कर रहे हैं और वहां की स्थिति का जायजा लेने के बाद अपने दौरे का जायजा संसदीय बोर्ड की बैठक में भी स्वाभाविक रूप से रखेंगे.

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