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नरेंद्र मोदी सरकार के सौ दिन

मात्र सौ दिनों में न तो गरीबी खत्म हो सकती है और न ही बेरोजगारी की स्थिति अचानक बदल सकती है. लेकिन सरकार के फैसलों में झलकती मंशा और उसकी सही दिशा देश को पटरी पर लाने का काम कर सकती है. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार के सौ दिन पूरे होने के […]

मात्र सौ दिनों में न तो गरीबी खत्म हो सकती है और न ही बेरोजगारी की स्थिति अचानक बदल सकती है. लेकिन सरकार के फैसलों में झलकती मंशा और उसकी सही दिशा देश को पटरी पर लाने का काम कर सकती है.

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार के सौ दिन पूरे होने के बाद उसके रिपोर्ट कार्ड की समीक्षा देश में चल रही है. स्वाभाविक तौर पर मात्र सौ दिनों में किसी सरकार की उपलब्धियों की समीक्षा नहीं की जा सकती, लेकिन सरकार की मंशा और कार्य की दिशा पता लगायी जा सकती है. जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, उस वक्त देश की अर्थव्यवस्था अत्यंत बिगड़ी हुई थी. आर्थिक कुप्रबंधन के चलते राजकोषीय घाटा और विदेशी भुगतान घाटा दोनों अर्थव्यवस्था की बिगड़ी हालत को बयान कर रहे थे. जाहिर है, अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की जिम्मेवारी नयी सरकार की ही थी.

मोदी सरकार के पिछले सौ दिनों के कार्यकाल के दौरान उपलब्धियों का कोई पैमाना यदि है, तो वह है सरकार की प्रकट मंशा. उस नाते सरकार ने अपने कार्यकाल के पहले चरण में ही एक ऐतिहासिक फैसला लिया कि किसी भी व्यक्ति के प्रमाण-पत्रों की या अन्य दस्तावेजों को वह स्वयं प्रमाणित (अटेस्ट) कर सकता है. किसी अधिकारी द्वारा अटेस्ट कराने की अनिवार्यता के कारण लोगों को भारी परेशानी से गुजरना पड़ता था. सरकार का यह निर्णय उसे जनहित के मामले में एक अलग पहचान देता है और जिसमें सरकार को भी कुछ खर्च नहीं करना था.

देश में वित्तीय समावेशन की जरूरत है, गरीब आदमी को बैंकों के साथ जोड़ना चाहिए, ऐसी बातें पहले की सरकारें भी करती रही हैं. इसके लिए कई कमेटियों ने अपनी रपटें भी दी हैं. लेकिन शून्य जमा राशि से एक दिन में 1.85 करोड़ लोगों के नये बैंक खाते खोलने, उन्हें छह महीने बाद ही सही 5,000 रुपये के ओवर ड्राफ्ट सुविधा के साथ एक लाख रुपये के दुर्घटना बीमा देने का काम इसी सौ दिन की सरकार ने किया है.

हालांकि वित्त मंत्री अरुण जेटली अपने बजट में कोई करिश्मा नहीं दिखा पाये, लेकिन मैन्युफैक्चरिंग को गति देने और सरकारी खर्च को काबू रखने का संकेत बजट से अवश्य मिला. प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त को अपने भाषण में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने की सरकारी की मंशा व योजना की कार्यनीति देश के सामने रखी. विदेशी कंपनियों को ‘मेक इन इंडिया’ के आह्वान के साथ भारतीय कंपनियों को उच्च स्तरीय उत्पाद बनाने के लिए भी प्रोत्साहन देने की बात की. सांसदों को अपनी सांसद निधि का उपयोग विद्यालयों में शौचालय बनाने और बड़ी कंपनियों को अपना सामाजिक सरोकार निभाने का आह्वान भी मोदी ने ही किया.

आम तौर पर आर्थिक अखबार हों या आर्थिक विश्लेषक, हमारे देश के आर्थिक जगत के लोग किसी भी सरकार की सफलता-असफलता को शेयर बाजार से आंका करते हैं. जबसे नरेंद्र मोदी की सरकार ने कार्यभार संभाला है, तबसे मुंबई शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक 24,700 से बढ़ते-बढ़ते 27,000 अंकों के स्तर तक पहुंच चुका है. आर्थिक विश्लेषक मानते हैं कि मोदी सरकार के फैसलों के कारण अर्थव्यवस्था, जो गिरावट की ओर जा रही थी, पुन: उठाव ले सकती है. व्यापार और व्यवसाय के प्रति सरकार की संवेदनशीलता शायद इसका कारण है. देखने में आ रहा है कि बीते कुछ समय में मैन्युफैरिंग समेत अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों का विकास पहले से बेहतर हो रहा है.

मैन्युफैरिंग की घटती वृद्धि दर, इन्फ्रास्ट्रर में निवेश न हो पाना, बिजली का उत्पादन न बढ़ पाना आदि भी देश में आर्थिक विकास में रुकावट डालते रहे हैं. सरकार के हाल ही के फैसलों से इन समस्याओं से धीरे-धीरे निजात मिलने की आस अर्थव्यवस्था में नजर आने लगी है.

गौरतलब है कि देश में महंगाई का एक बड़ा कारण राजकोषीय घाटा और उसके कारण बढ़ती करेंसी की मात्र तो है ही, रुपये का घटता मूल्य भी महंगाई में इजाफा करता रहा है. रुपये में गिरावट का मुख्य कारण भुगतान शेष का घाटा रहता है, उसके संदर्भ में देखने में आया है कि भुगतान घाटा पहले से काफी कम हो गया है. निर्यातों में भी वृद्घि हो रही है, जिससे रुपये के मूल्य में सुधार के अच्छे संकेत मिलते हैं.

जाहिर है कि मात्र सौ दिनों में न तो गरीबों की हालत में कोई विशेष सुधार दिखाई दे सकता है और न ही बेरोजगारी की स्थिति अचानक बदल सकती है. लेकिन, सरकार के फैसलों में झलकती मंशा और उसकी सही दिशा देश को पटरी पर लाने का काम कर सकती है. इस नाते मोदी सरकार के पहले सौ दिन आशा के अनुरूप कहे जा सकते हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि देश का विकास देश के संसाधनों के आधार पर ही हो सकता है. देश में कौशल के विकास के लिए इस सरकार ने योजना बनायी है, लेकिन अभी देखना यह होगा कि क्या मोदी सरकार भी पिछली सरकारों की तरह देश के विकास के लिए विदेशी पूंजी को ही एकमेव रास्ता मानती है या देश के विकास में देश के संसाधनों और देश के लोगों की प्रतिभा और कौशल पर विश्वास रखते हुए विकास का रोडमैप तैयार करती है.

डॉ अश्विनी महाजन

एसोसिएट प्रोफेसर,

दिल्ली विश्वविद्यालय

ashwanimahajan @rediffmail.com

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