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मिलीभगत से होती रही है अनाज की कालाबाजारी!

जिले में अनाज माफियाओं का एक बड़ा रैकेट काम कर रहा है. जो सरकारी खजानों को चूना लगा कर खुद मालामाल हो रहे. आये दिन एफसीआइ में रखे जानेवाले अनाजों की कालाबाजारी की बात सुनने को मिलती ही रही है. मगर जब उनकी कारगुजारी हद पार कर जाती और पकड़े जाते हैं तब कुछ समय […]

जिले में अनाज माफियाओं का एक बड़ा रैकेट काम कर रहा है. जो सरकारी खजानों को चूना लगा कर खुद मालामाल हो रहे. आये दिन एफसीआइ में रखे जानेवाले अनाजों की कालाबाजारी की बात सुनने को मिलती ही रही है. मगर जब उनकी कारगुजारी हद पार कर जाती और पकड़े जाते हैं तब कुछ समय के लिए जिला प्रशासन चौकस हो जाता है. दिन बीतता भी नहीं, पुन: इन बिचौलियों का खेल खुल्लम- खुल्ला शुरू हो जाता है. वहीं इन कालाबाजारियों को शह देने में कोई और नहीं बल्कि सरकारी हाकिम ही होते हैं.

गत दिन पूर्व ही काको बाजार में एफसीआइ का पकड़ा गया 400 बोरा चावल तो महज एक बानगी है. हम बात करें काको प्रकरण का ही तो उक्त मामले में आठ लोगों पर थाने में प्राथमिकी दर्ज हुई है, जिसमें दो प्रखंडों के हाकिम भी शामिल हैं. मोदनगंज और घोसी के एमओ, घोसी एफसीआइ के गोदाम मैनेजर, ट्रांसपोर्टर एवं दो राइस मिल मालिकों की संलिप्तता सामने आयी है. ऐसे पुलिस अभी उक्त मामले की सूक्ष्मता से जांच भी कर रही ताकि कोई निदरेष इसकी जद में न आ सकें. कौन है बिचौलिया, किसकी चलती है माफियागिरी ये तो अभी परदे के पीछे की बात है.
खैर शायद इस बार अनाज माफियाओं का चेहरा भी पुलिस बेनकाब करने में लगी है. नायाब तरीके से अनाज माफियाओं द्वारा कालाबाजारी का ये खेल खेला जाता रहा है. एफसीआइ के अनाजों की कालाबाजारी के अपने अलग टिप्स हैं. गोदाम के बोरे को उलट कर उसमें अनाज भरते हैं और उसे ठिकाना लगाते हैं ताकि किसी को शक भी न हो पाये ये अनाज एफसीआइ के हैं. मगर इस बार पुलिस ने बाजाब्ता चावलों के बोरे को खोल कर अनाज बाहर निकाला और बोरे की पलटी की तो माफियाओं का कारनामा पकड़ में आ गया. उक्त उलटे गये बोरे एफसीआइ के ही निकले पुलिस ने प्रमाण के तौर पर इसकी वीडियो रिकॉर्डिग भी की है ताकि पुलिस जांच पर कोई उंगली न उठे.
पूर्व में भी अनाजों की कई बड़ी खेपे पुलिस द्वारा पकड़ी जाती थी, तो यही हाकिम जो इस बार खुद फंस गये हैं. उनके द्वारा इन अनाजों को किसान का अनाज करार देकर उन गाड़ियों को छुड़वाया जाता था. क्योंकि पहले जब पुलिस ऐसे वाहनों को पकड़ती थी, तो इसकी जांच प्रखंड के एमओ से कराने का प्रतिवेदन दिया जाता था और एमओ साहब ऐसे मामलों को चुटकी बजाते ही निबटा डालते थे. मगर इस दफा दावं कुछ उलटा ही पड़ गया है. पुलिस ने इस दफा एमओ साहब को भी अभियुक्त बना दिया है, जिनकी मिलीभगत से ये खेल खेला जाता था. पुलिस सबूतों को इकट्ठा करने में जुटी है. इन प्रमाणों के बाद भी अभियुक्त बने लोग इस बार कौन-सा दावं खेलेंगे शायद पुलिस भी उस दावं का इंतजार कर रही.

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