पटना: अगले वर्ष तक देश से कालाजार को पूरी तरह समाप्त कर दिया जायेगा. मंगलवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन और मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की उपस्थिति में पटना घोषणापत्र जारी किया गया. इसमें कालाजार उन्मूलन की नयी रणनीति तैयार की गयी.
कालाजार के मरीजों का अब सिंगल डोज (सिर्फ एक खुराक) से इलाज होगा. पहले की तरह 28 दिनों तक मरीजों को इलाज के लिए डॉक्टरों के पास आने की आवश्यकता नहीं होगी. साथ ही कालाजार बुखार की जांच के लिए रीढ़ की हड्डी से खून निकालने की आवश्यकता भी नहीं होगी. नयी रणनीति के अनुसार मरीजों के थूक (बलगम) और पेशाब से ही कालाजार का पता लगाया जायेगा. इसकी किट सभी स्तर पर उपलब्ध करा दी जायेगी. कालाजार समाप्ति के लिए डॉ हर्षवर्धन और जीतन राम मांझी ने संयुक्त रूप से रोडमैप जारी किया.
देश से कालाजार उन्मूलन के लिए मंगलवार को मुख्यमंत्री सचिवालय स्थित ‘संवाद कक्ष’ में बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड व पश्चिम बंगाल के साथ पड़ोसी देश नेपाल के स्वास्थ्य विभाग के पदाधिकारियों की उच्चस्तरीय बैठक आयोजित की गयी थी. विषय था वर्ष 2015 तक देश से कालाजार उन्मूलन पर रणनीति तैयार करना. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि वह खुद कालाजार उन्मूलन अभियान की मॉनीटरिंग करें. चेचक व पोलियो को समाप्त किया गया है. अब इस बीमारी को भी समाप्त कर दिया जायेगा.
डीएम व एसपी गांवों में कालाजार पर भी रखेंगे ध्यान
मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि हाल ही हमने डीएम-एसपी के साथ बैठक कर उन्हें गांव में जाने को लेकर प्रेरित किया है. जब ये गांव में समय गुजारेंगे, तो उन्हें कालाजार पर भी ध्यान देने का निर्देश दिया जायेगा. उन्होंने कहा कि पोलियो उन्मूलन में आइसीडीएस, आशा व आंगनबाड़ी सेविकाओं की मदद ली गयी थी. इसका लाभ कालाजार नियंत्रण में भी मिलेगा.भारत सरकार व विशेषज्ञों द्वारा तैयार दिशानिर्देश का समयसीमा के अंदर पालन किया जायेगा. उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री आभार प्रकट किया और कहा कि राज्य सरकार कालाजार उन्मूलन के लिए तैयार है. वह इस दिशा में हर कदम उठायेगी.
केंद्र व राज्य के पदाधिकारी घेरते रहे एक-दूसरे को
बैठक में केंद्र सरकार व राज्य सरकार के पदाधिकारी एक-दूसरे पर सफलता-असफलता को लेकर घेरते रहे. केंद्र सरकार के स्वास्थ्य महानिदेशालय के महानिदेशक डॉ जगदीश प्रसाद ने जहां स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव दीपक कुमार को महज दो सुझावों पर दृढ़ता से अमल करने की नसीहत दी. पहला, कालाजार सहित जितने भी कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, उनके राज्य कार्यक्रम पदाधिकारियों का स्थानांतरण कम-से-कम तीन साल के बाद ही हो और दूसरा, जो भी राशि राज्य सरकार को भेजी जाती है, उसे सही समय पर जारी किया जाये. राशि का सदुपयोग कर उसका उपयोगिता प्रमाणपत्र केंद्र को भेजा जाये. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने कालाजार उन्मूलन के लिए 31 करोड़ रुपये दिये हैं. बिहार को इस वर्ष 21 करोड़ आवंटित किये गये हैं. अगर राज्य सरकार पूर्व की राशि खर्च नहीं करती है, तो महज राज्य को आठ करोड़ रुपये ही मिलेंगे. इससे बिहार को अधिक नुकसान होगा. दूसरी ओर राज्य सरकार के पदाधिकारियों ने कहा कि समय पर राशि जारी नहीं होने के कारण कार्यक्रम पूरी तरह से चौपट हो जाता है. इसके अलावा राज्य के कार्यक्रम पदाधिकारी ने इलाज के लिए दिशानिर्देश की मांग की, जिससे भ्रम की स्थिति न रहे.
माइक के कारण भद्द पिट गयी
मुख्यमंत्री सचिवालय के संवाद कक्ष में देश के विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधि उपस्थित थे. राष्ट्रीय स्तर का कार्यक्रम को संचालित करने के लिए पूरा साउंड सिस्टम ही ध्वस्त था. मुख्यमंत्री की मौजूदगी में यह सब हो रहा था. जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री संबोधित करनेवाले थे, तो उनके लिए तीन-चार माइक लाने की आवश्यकता पड़ी. इसके अलावा जब भी कोई अपनी बात रखना चाहता था, तो उसके पास का साउंड सिस्टम फेल ही पाया जाता था. कई वक्ताओं ने अपनी बात बिना माइक के ही रखी. संवाद कक्ष में साउंड सिस्टम की फुलप्रुव व्यवस्था नहीं होने के राज्य की भद्द पिट गयी.
क्या है सिंगल डोज
कालाजार उन्मूलन के लिए नयी सूई ईजाद की गयी है. इसका नाम है एंबिसोम. मेडिकल नाम है लिपोसोमल एंफोटेरिसिन-बी. इसकी दवा वायल में होती है. बाजार में इसकी कीमत है 80 डॉलर (करीब 4854 रुपये). विश्व स्वास्थ्य संगठन दो वर्षो तक भारत में इसकी आपूर्ति करेगा. इस दवा के रखरखाव के लिए कोल्डचेन की व्यवस्था की जायेगी. इसे आठ डिग्री सेंटीग्रेड से कम के तापमान पर रखना होगा. यह सूई नस में तीन-चार घंटे में दी जाती है. यह एक बार ही दी जाती है. अंतरराष्ट्रीय संस्थान एमएसएफ द्वारा आरएमआरआइ के निर्देश में वैशाली जिले के कालाजार मरीजों का इलाज किया जा रहा है.
पहले क्या होता था इलाज
पहले कालाजार नियंत्रण के लिए कई दवाओं का प्रयोग किया जाता रहा है. सबसे पहले प्राथमिक स्तर पर सोडियम एंटीमनी ग्लूकोनेट (एसएजी) का प्रयोग होता था. इस बीमारी की दूसरे चरण की दवा पेंटामिडिन थी. पेंटामिडिन को मधुमेह के कुप्रभाव के कारण बंद कर दिया गया. तीसरे चरण के इलाज में बिहार में एंफोटेरिसिन-बी नामक सूई दी जाती है. इसकी 15 सूई मेडिकल कॉलेज अस्पतालों या उच्चतर संस्थानों के विशेषज्ञों की देखरेख में दी जाती है. तृतीय स्तर के इलाज में यह सूई हर दूसरे दिन दी जाती थी यानी मरीज को 28 दिनों का समय लगता था.