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कोयला क्षेत्र तेजी से बढ़ने को तैयार

नयी दिल्ली : कोयला तथा बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने कोयला खदानों के आवंटन मामले में सुप्रीम कोर्ट फैसले का स्वागत किया. कहा कि अनिश्चितता दूर हुई है. अंतिम फैसला आने के साथ ही सरकार तेजी से कदम उठाने को तैयार है. कहा, ‘वर्षो से जारी समस्या का पटाक्षेप हुआ. अर्थव्यवस्था अनिश्चितता से निकल कर […]

नयी दिल्ली : कोयला तथा बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने कोयला खदानों के आवंटन मामले में सुप्रीम कोर्ट फैसले का स्वागत किया. कहा कि अनिश्चितता दूर हुई है. अंतिम फैसला आने के साथ ही सरकार तेजी से कदम उठाने को तैयार है.

कहा, ‘वर्षो से जारी समस्या का पटाक्षेप हुआ. अर्थव्यवस्था अनिश्चितता से निकल कर तेजी से आगे बढ़ सकती है.’ गोयल ने कहा कि नीति में कानून की स्पष्टता अच्छी अर्थव्यवस्था के लिए ‘हॉलमार्क’ है. निवेशक इसे पसंद करेंगे. लंबे समय के बाद कोयला क्षेत्र आगे बढ़ने के लिए पूरी तरह तैयार है.

जांच समिति का कानूनी आधार नहीं : पारख

पूर्व कोयला सचिव पीसी पारख ने कहा है कि खदान आवंटन के लिए बनी जांच समिति का कानूनी आधार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट 1993-2010 के दौरान हुए खान आवंटनों को रद्द करता है, तो अर्थव्यवस्था पर ‘गंभीर’ प्रभाव होगा. पारख ऐसी ही एक समिति के अध्यक्ष थे.

उन्होंने पहले भी इस मुद्दे को उठाते हुए खान राष्ट्रीयकरण कानून में संशोधन का सुझाव दिया था, ताकि उचित व पारदर्शी बोली प्रक्रिया लायी जा सके. सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई, 2009 में निजी बिजली कंपनियों के घरेलू इस्तेमाल के लिए खनन प्रस्तावों पर विचार के लिए समिति बनायी थी.

‘बोली’ पर सरकार का निर्णय मनमाना नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि खदान आवंटन में सालों तक प्रतिस्पर्धात्मक बोली प्रक्रिया का पालन नहीं करने के सरकार के फैसले को मनमाना या अनुचित नहीं माना जा सकता, जिसमें न्यायिक हस्तक्षेप की जरूरत है.

शीर्ष कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि प्राकृतिक संसाधनों के दूसरे तरीकों से आवंटन बोली प्रक्रिया की तुलना करके इसके लाभों का आकलन करना कोर्ट का काम नहीं है. चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा की अध्यक्षतावाली खंडपीठ ने सरकार में विभिन्न स्तरों पर लिखी गयी टिप्पणी और मंत्रणाओं के अवलोकन के बाद कहा कि कई राज्य सरकारों के सख्त विरोध सहित कई कारणों से बोली प्रक्रिया शुरू करने में आठ साल लग गये. कोर्ट ने कहा कि देश के हालात के कारण पहले नीलामी या बोली का तरीका नहीं अपनाया जा सका.

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