देश के विभिन्न हिस्सों को व्यापक डिजिटल नेटवर्क से जोड़ने की केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. प्रधानमंत्री ने इसकी घोषणा अपने पहले स्वतंत्रता दिवस संबोधन में की थी. तकरीबन एक लाख तेरह हजार करोड़ रुपये की लागत के इस कार्यक्रम को 2019 तक कई चरणों में पूरा किया जायेगा. डिजिटल तकनीक और कंप्यूटरीकृत तंत्र प्रधानमंत्री की शासन-दृष्टि का महत्वपूर्ण आधार है.
दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह भारत में भी इंटरनेट व मोबाइल नेटवर्क का तेजी से विकास हो रहा है, लेकिन अभी भी सरकारी और आर्थिक गतिविधियों के लिए इनका उपयोग शहरों तक सीमित है तथा ग्रामीण क्षेत्रों और निम्न वर्गो तक इनकी पहुंच बहुत कम है. इस वृहत् परियोजना का उद्देश्य इस कमी को दूर करना है.
कार्यक्रम के द्वारा ढाई लाख ग्राम पंचायत ब्रॉडबैंड इंटरनेट से जोड़े जायेंगे और शिक्षण संस्थाओं व सार्वजनिक जगहों को वाइ-फाइ की सुविधा दी जायेगी. इस योजना के तहत टेलीकॉम से जुड़ी आवश्यक तकनीकों और वस्तुओं के देश के भीतर निर्माण को बढ़ावा देकर उनके आयात पर निर्भरता को शून्य के स्तर तक लाने का संकल्प किया गया है. सरकार की प्राथमिकता का संकेत इस बात से भी मिलता है कि कार्यक्रम की निगरानी के बनी महत्वपूर्ण मंत्रलयों के मंत्रियों व सचिवों की सदस्यतावाली समिति की अध्यक्षता स्वयं प्रधानमंत्री करेंगे.
कार्यक्रम से न सिर्फ आम लोगों की सरकारी व आर्थिक सुविधाओं तक पहुंच सुगम होगी, बल्कि इससे ढाई करोड़ से अधिक रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे. यह कार्यक्रम भारत की विकास यात्र के लिए बहुत ही अहम है, लेकिन सरकार को इस पर लगातार काम करते रहना होगा. पिछली सरकार ने 21,000 करोड़ रुपये के ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क बिछा कर ढाई लाख पंचायतों को जोड़ने की योजना शुरू की थी, लेकिन उसके कार्यान्वयन में तीन वर्ष से अधिक की देरी हो चुकी है. मोबाइल सेवा से अछूते लगभग 42,300 गांवों को 16,000 करोड़ के खर्च से 2017-18 तक नेटवर्क से जोड़ा जाना है. उम्मीद है कि सरकार पूरे उत्साह से योजना का काम आगे बढ़ायेगी और प्रधानमंत्री अपने ‘डिजिटल क्रांति’ के इरादे को पूरा करेंगे.