नयी दिल्ली: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आईआईटी में भविष्य में होने वाले शोध का उपयोग देश की टेक्नोलॉजी की आवश्यकताओं को पूरा करने पर जोर देते हुए आज सवाल किया कि अन्य देशों के उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता के बावजूद हमें अभी भी रक्षा संबंधी उपकरणों से लेकर भारतीय मुद्रा छापने के कागज तक की टेक्नोलॉजी आयात क्यों करनी पड रही है. राष्ट्रपति भवन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) के अध्यक्षों, बोर्ड ऑफ गवर्नेस और निदेशकों के एक दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए उन्होंने यह सवाल किया.
मुखर्जी ने कहा, अब तक हम उद्योग तथा शिक्षा जगत के बीच आपसी संपर्कों पर ध्यान देते आए हैं, लेकिन अब हमें सरकार और शिक्षा जगत के बीच संपर्क पर भी ध्यान देना होगा. उन्होंने कहा, ‘आईआईटी परिषद को इस बात पर जोर देना चाहिए कि कैसे आईआईटी सरकार की टेक्नोलॉजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्रोत बनेंगे और ‘मेक इन इंडिया’ तथा ‘मेड इन इंडिया’ की दृष्टि का वाहक बनें.’ बडी संख्या में शिक्षकों की कमी की समस्या आवश्यक रुप से दूर करने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि आईआईटी में रिक्त पदों की स्थिति 10 प्रतिशत से लेकर 52 प्रतिशत तक है और 16 आईआईटी में कुल रिक्त पदों का प्रतिशत 37 है.
उन्होंने कहा कि रैंकिंग प्रक्रिया को महत्व दिए जाने की जरुरत है, क्योंकि यह प्रक्रिया वास्तविक नियंत्रण तथा विश्व के नक्शे पर संस्थान की स्थिति के बारे में आत्म चिंतन करने का अवसर देती है.राष्ट्रपति ने कहा कि आईआईटी के पूर्ववर्ती छात्रों को शासन व्यवस्था में शामिल किया जाना चाहिए, ताकि उनकी दक्षता, वैश्विक पहुंच तथा सक्रियता की क्षमता का उपयोग हो सके. उन्होंने आईआईटी परिषद से ऐसा ढांचा विकसित करने को कहा जिससे इन संस्थानों की व्यवस्था में पूर्ववर्ती विद्यार्थियों की भागीदारी हो सके.
उन्होंने आईआईटी जैसे इंजीनियरिंग संस्थानों से कहा कि वे विज्ञान, टेक्नोलॉजी तथा नवाचार की नीति को सफल बनाने की दिशा में काम करें. मुखर्जी ने यह भी कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों के नवोन्मेष क्लबों तथा एनआईटी तथा आईआईटी के बीच शोध और विकास को बढावा देने के लिए मजबूत संपर्क कायम हो.उन्होंने कहा आने वाले सालों में जन-सांख्यिकी लाभ भारत की सबसे बडी ताकत होगा. यह हमें कौशलपूर्ण मानव शक्ति दुनिया को उपलब्ध कराने का अवसर देगा. इसके लिए हमें 2022 तक 50 करोड लोगों को कौशन संपन्न बनाने के लक्ष्य को पूरा करना होगा.
आईआईटी को राष्ट्र के ज्ञान का नेता बताते हुए राष्ट्रपति ने उनसे यह पता लगाने को कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता को कैसे सुधारा जा सकता है. उन्होंने कहा यह पता लगाने की भी आत्मिक आवश्यकता है कि उच्च शिक्षा संस्थानों के सुशासन को कौन पीछे धकेल रहा है. उन्होंने कहा, अगर हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों को विश्व के श्रेष्ठ संस्थानों से मुकाबला करना है तो इन संस्थानों का कार्य व्यवहार विश्व के श्रेष्ठ संस्थानों के बराबर होना चाहिए.
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