बिहार और झारखंड से गुजरने वाली ट्रेनों में हाल के दिनों में जिस तरह लूटपाट-हिंसा की घटनाएं हुई हैं, उसने यात्रियों के मन में खौफ पैदा किया है. नक्सलियों के साथ-साथ डकैतों ने भी सुरक्षा में सेंध लगा दी है. चलती ट्रेन में डकैती-हिंसा की घटनाओं से लगता है कि बिहार व झारखंड के लगभग सभी रेलवे रूट असुरक्षित हैं. गंभीर बात यह है कि हिंसा व लूटपाट की जितनी घटनाएं घटित हुई हैं, उन्हें अंजाम देनेवाले अपराधी मौके पर नहीं पकड़े गये.
हर बार एस्कॉर्ट पार्टी या तो सोती रही या फिर ट्रेन में थी ही नहीं. शनिवार की रात को भी ऐसा ही हुआ, जब महज आधा दर्जन अपराधियों ने गोरखपुर-रांची मौर्य एक्सप्रेस की महिला बोगी में डाका डाला और गोली मार कर दो यात्रियों की हत्या कर दी. मोकामा-झाझा-जसीडीह रेलखंड पर दस दिन में ट्रेन डकैती की यह दूसरी घटना है.
इसी रूट पर सात अगस्त को लाहाबन स्टेशन पर पूर्वाचल एक्सप्रेस में डकैती हुई थी. बिहार व झारखंड में एक माह में ट्रेन डकैती और दहशत पैदा करने की करीब आधा दर्जन घटनाएं हो चुकी हैं, लेकिन सुरक्षा कमियों को दूर करने में रेलवे पुलिस प्रशासन विफल रहा है. पटना से होकर रोज करीब 400 ट्रेनें गुजरती हैं. दूसरे रूट से भी सैकड़ों ट्रेनों का बिहार में परिचालन होता है. इन सब की सुरक्षा की जवाबदेही जीआरपी-आरपीएफ की है.
एक समय था, जब अक्सर ट्रेन डकैती होती थी. रेलवे रूट से जुड़ी कुछ जगहें तो इस वजह से बदनाम थीं. समय के साथ उसमें कमी आयी. ट्रेन डकैतों की जगह नक्सलियों ने ले लिया. उन्होंने ट्रेनों को निशाना बनाया. राज्य में करीब 238 रेलवे स्टेशन हैं. इनमें से एक चौथाई से अधिक नक्सल प्रभावित क्षेत्र में हैं. यहां नक्सली हमले और एस्कॉर्ट पार्टी से हथियार लूटने का डर हमेशा बना रहता है. इससे निबटने के आरपीएफ और जीआरपी के पास ठोस इंतजाम नहीं हैं. नक्सलग्रस्त क्षेत्रों से गुजरने वाली ट्रेनों की एस्कॉर्ट पार्टी की सारी चिंता यही रहती है कि उनके हथियार कैसे सुरक्षित रहें. जाहिर है, रेल सुरक्षा को लेकर ठोस उपाय करने होंगे. संवेदनशील रूटों की पहचान कर सुरक्षा के पुख्ता उपाय करने होंगे. अपराधी लूट करते रहें और सिपाही ट्रेन की एसी बोगी में सोये या दुबके रहें, यह स्थिति बरदाश्त के काबिल कतई नहीं है.