नयी दिल्ली: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि असहिष्णुता एवं हिंसा लोकतंत्र की मूल भावना के साथ धोखा है. उन्होंने ऐसे तत्वों को आडे हाथ लिया जो ‘‘भडकाउ जहरीले उद्गारों’’ में यकीन रखते हैं.
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कट्टरता की ओर इशारा किया और कहा कि पहले से कहीं ज्यादा उथल-पुथल भरे माहौल ने ‘‘हमारे धर्म और इससे आगे’’ कई खतरे पैदा किए हैं.
मुखर्जी ने कहा, ‘‘प्राचीन सभ्यता होने के बावजूद भारत आधुनिक सपनों से युक्त आधुनिक राष्ट्र है. असहिष्णुता एवं हिंसा लोकतंत्र की भावना के साथ धोखा है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘जो लोग उत्तेजित करने वाले भडकाउ उद्गारों में विश्वास करते हैं उन्हें न तो भारत के मूल्यों की और न ही इसकी वर्तमान राजनीतिक मन:स्थिति की समझ है. भारतवासी जानते हैं कि आर्थिक या सामाजिक, किसी भी तरह की प्रगति को शांति के बिना हासिल करना कठिन है.’’ राष्ट्रपति की ये टिप्पणियां देश में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में इजाफे के मद्देनजर काफी अहम हैं.
मुखर्जी ने मराठा शासक शिवाजी की ओर से औरंगजेब को लिखे पत्र का उल्लेख किया जो उन्होंने तब लिखा था जब औरंगजेब ने जजिया लगाया था। उन्होंने शहंजाह से कहा था कि शाहजहां, जहांगीर और अकबर भी यह कर लगा सकते थे ‘‘लेकिन उन्होंने अपने हृदय में कट्टरता को जगह नहीं दी क्योंकि उनका मानना था कि हर बडे अथवा छोटे इंसान को ईश्वर ने विभिन्न मतों और स्वभावों के नमूने के रुप में बनाया है.
उन्होंने कहा कि शिवाजी के 17वीं शताब्दी के इस पत्र में एक संदेश है जो सार्वभौमिक है. इसे वर्तमान समय में हमारे आचरण का मार्गदर्शन करने वाला जीवंत दस्तावेज बन जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘‘हम ऐसे समय में इस संदेश को भूलने का खतरा नहीं उठा सकते जब बढते हुए अशांत अंतरराष्ट्रीय परिवेश ने हमारे क्षेत्र और उससे बाहर खतरे पैदा कर दिये हैं, जिनमें से कुछ तो पूरी तरह दिखायी दे रहे हैं और कुछ अभूतपूर्व उथलपुथल के बीच धीरे धीरे बाहर आ रहे हैं.’’ राष्ट्रपति ने कहा कि एशिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में कट्टरपंथी लडाकों द्वारा धार्मिक विचारधारा पर आधारित भौगोलिक सत्ता कायम करने के लिए राष्ट्रों के नक्शों को दोबारा खींचने के प्रयास किये जा रहे हैं.
मुखर्जी ने कहा, ‘‘भारत इसके दुष्परिणामों को महसूस करेगा, खासकर इसलिए क्योंकि यह उन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है जो आतंकवाद के हर स्वरुप को खारिज करते हैं. भारत लोकतंत्र, संतुलन, अंतर एवं अत:धार्मिक समरसता की मिसाल है.’’
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हमें निश्चित तौर पर पूरी ताकत के साथ अपने धर्मनिरपेक्ष तानेबाने को बचाए रखना है. हमें अपनी सुरक्षा तथा विदेश नीतियों में कूटनीति की कोमलता के साथ ही फौलादी ताकत का समावेश करना होगा, इसके साथ ही समान विचारधारा वाले तथा ऐसे अन्य लोगों को भी उन भारी खतरों को पहचानने के लिए तैयार करना होगा जो उदासीनता के अंदर पनपते हैं.’’अच्छे प्रशासन का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि भारत को शासन में ऐसे रचनात्मक चिंतन की जरुरत है जो त्वरित गति से विकास में सहयोग दे तथा सामाजिक सौहार्द का भरोसा दिलाए. उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्र को पक्षपातपूर्ण उद्वेगों से उपर रखना होगा.
जनता सबसे पहले है.’’ राष्ट्रपति ने कहा कि किसी लोकतंत्र में अच्छे प्रशासन की शक्ति का प्रयोग राज्य की संस्थाओं के माध्यम से संविधान के ढांचे के तहत किया जाना होता है. उन्होंने कहा, ‘‘समय के बीतने तथा पारितंत्र में बदलाव के साथ कुछ विकृतियां भी सामने आती हैं जिससे कुछ संस्थाएं शिथिल पडने लगती हैं. जब कोई संस्था उस ढंग से कार्य नहीं करती जैसी उससे अपेक्षा होती है तो हस्तक्षेप की घटनाएं दिखाई देती हैं.’’राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘कुछ नई संस्थाओं की आवश्यकता हो सकती है परंतु इसका वास्तविक समाधान, प्रभावी सरकार के उद्देश्य को पूरा करने के लिए मौजूदा संस्थाओं को नया स्वरुप देने और उनका पुनरुद्धार करने में निहित है.’’