नयी दिल्ली : मंत्रियों को अपनी पसंद से निजी सचिव रखने के अधिकार से वंचित करने के बाद पीएमओ गृहमंत्री के अधिकारों पर कैंची चलाने के मूड में है. वर्तमान स्थिति में गृहमंत्री एक तरह से रबर स्टांप बन गये हैं, जो प्रधानमंत्री द्वारा खींची गयी रेखा के प्रारूप पर अपनी कलम चलाते हैं.
सूत्रों का कहना है किमंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति का कहना है कि अब गृहमंत्री से सहमति लेना बाद में किया जाने वाला काम बनकर रह गया है. इस परिदृश्य में अब नियुक्ति प्रक्रिया कुछ तरह की है, इस्टेबलिस्मेंट ऑफिसर किसी प्रस्ताव को कैबिनेट सेक्रेटरी के पास भेजते हैं और वे प्रधानमंत्री की अनुमति उस प्रस्ताव पर लेते हैं. जबकि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग प्रधानमंत्री के अनुमोदन के बाद नियुक्ति के आदेश जारी करता है.
यह पहले और अब की स्थिति में चिह्नित किया जाने वाल अंतर है. पहले सभी अधिकारियों संयुक्त सचिव सहित की नियुक्ति के प्रस्ताव को गृहमंत्री स्वीकृति प्रदान करते थे उसके बाद वह प्रधानमंत्री के पास अनुमोदन के लिए जाता था. लेकिन नयी व्यवस्था में गृहमंत्री के पास करने के लिए कुछ बचता ही नहीं है, क्योंकि नियुक्ति समिति प्रस्ताव को पहले प्रधानमंत्री के पास भेज देती है.
इस नयी व्यवस्था में कैबिनेट सेक्रेटरी और इस्टेबलिस्टमेंट ऑफिसर की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण हो गयी है. हालांकि इस नयी व्यवस्था के बारे में बात करने से हर अधिकारी बच रहे हैं, लेकिन यह सच है. पिछले एक महीने से इस नयी व्यवस्था में काम हो रहा है. इस नयी व्यवस्था से गृहमंत्री के अधिकारों का क्षरण हुआ है, इसमें कोई दोराय नहीं है.ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि क्या नरेंद्र मोदी के शासनकाल में पीएमओ तानाशाह बन जायेगा?