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जुबां पर ताला, आंखों में दहशत, सिर पर आफत

फोटो-नेट से संदर्भ : छोटकी कौडि़या कांड के बाद इलाके के ग्रामीणों की स्थिति प्रतिनिधि, पांडू : पलामू.पता नहीं अब आगे क्या होगा? रात गुजरी गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच. रात में एक संगठन के लोग चले गये, सुबह दूसरे संगठन के लोग आये. ग्रामीणों को ही शक और संदेह के दृष्टि से देख रहे […]

फोटो-नेट से संदर्भ : छोटकी कौडि़या कांड के बाद इलाके के ग्रामीणों की स्थिति प्रतिनिधि, पांडू : पलामू.पता नहीं अब आगे क्या होगा? रात गुजरी गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच. रात में एक संगठन के लोग चले गये, सुबह दूसरे संगठन के लोग आये. ग्रामीणों को ही शक और संदेह के दृष्टि से देख रहे हैं. ग्रामीण क्या करें. एक संगठन वाले आते हैं. कहते हैं कि पहले को पनाह न दो. दूसरे वाले पहले का विरोध कर चले जाते हैं. पर निहत्थे ग्रामीण के दरवाजे पर जब हथियारबंद दस्ता पहुंचता है, तो ओंठ बंद हो जाते हैं. आंखों में दहशत होता है. वह न चाह कर भी पनाह देते हैं. यह स्थिति है विश्रामपुर थाना क्षेत्र के घासीदाग पंचायत के छोटकी कौडि़या गांव की. शुक्रवार की रात यहां माओवादियों ने टीपीसी के 16 लोगों को ेमार गिराया. उसके बाद शनिवार को सुबह गांव में सन्नाटा था. ग्रामीण कुछ भी कहने को तैयार नहीं. कैसे हुआ, क्या हुआ, कुछ पूछने पर ग्रामीण कहते थे, हमलोगों को बीच में कहां फंसा रहे हैं. वैसे भी दहशतों के साये में ही रात गुजरती है बाबू. यदा-कदा संगठन के लोग पहुंचते हैं. कहते हैं कि रात यही गुजारेंगे. विरोध भी नहीं कर पाते. किसी भी समय सुरक्षा का माहौल नहीं. हमेशा असुरक्षा की स्थिति, पर दर्द किससे कहें. कोई सुननावाला हो, तब न. बस भगवान के भरोसे जिंदगी कटती है. हथियार सामने देख कर अच्छे-अच्छे की बोलती बंद होती है. हम तो गरीब हैं, कहेंगे भी तो क्या? मालूम हो कि छोटकी कौडि़या गांव पांडू से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर है. 50 घरों की बस्ती,आबादी 500 के करीब. शुरुआती दौर में यह माओवादियों के प्रभाव वाला क्षेत्र, जब संगठन में टूट हुई, तो टीपीसी ने भी पांव फैलाया, आवाजाही शुरू हुई. यही बात माओवादियों को खलती थी. इसलिए माओवादी इस फिराक में थे कि किसी दिन टीपीसी को घेरा जाये. शनिवार को सुबह गांव पहुंचने पर सन्नाटा दिखा. ट्रैक्टर पर टीपीसी वाले मारे गये साथियों के शव ले जा रहे थे. बताया जाता है कि शुक्रवार को गांव में राजेश व गिरेंद्र जी का दस्ता रुका था. इस घटना के बाद यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या माओवादियों ने एक बार फिर इस इलाके में मजबूती बना ली है. क्योंकि यह कहा जा रहा था कि टूट के बाद टीपीसी का वर्चस्व बढ़ा है. कौन मजबूत हुआ, कौन कमजोर. यह तो अलग बात है, लेकिन दर्द ग्रामीणों का है. उन्हें किसी के मजबूत व कमजोर होने से मतलब नहीं, बल्कि वह किसी तरह इस दहशत से मुक्ति चाहते हंै. खुली हवा में सांस लेने की इच्छा है. सवाल यह है कि वह दिन आखिर कब आयेंगे.

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