बीते कुछ दिनों से प्रभात खबर के पाठक मत कॉलम में बेरोजगार भाइयों की करु ण गाथा सुन कर काफी दुख हुआ. बेरोजगारी ऐसी आग है, जिसकी लौ में दिन-रात शिक्षित और अशिक्षित युवाओं को जलना पड़ रहा है.बीते कुछ वर्षो में जनसंख्या विस्फोट और आवश्यक रोजगार सृजन ना हो पाने से बेरोजगारी के सभी रूपों में अनियंत्रित वृद्धि हुई है. मसलन प्रच्छन्न, खुली, चक्रीय, मौसमी और शिक्षित बेरोजगारी. इन सब में शिक्षित बेरोजगारी किसी भी देश के लिए खतरनाक हो सकती है, क्योंकि यह भुक्तभोगी के मन में सरकार के प्रति आक्रोश को जगाकर असामाजिक कार्यो को करने को प्रेरित भी करता है.
आलम यह कि भारत दुनिया में सर्वाधिक बेरोजगार युवाओं का देश बन चुका है. प्रतिभासंपन्न युवाओं को देश में सम्मान ना मिल पाने से उनका पलायन विदेशों की ओर हो रहा है या स्वदेश-प्रेमी होने के कारण रोजगार के लिए वे दर-दर भटक रहे हैं. देश में आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के दौर से ही यह साबित करने के प्रपंची प्रयास हो रहे हैं कि तत्कालीन आर्थिक नीतियां देश में रोजगार की गंगा बहा रही हैं.
लेकिन देश में 6.30 फीसदी बेरोजगारी दर कुछ और ही नजारा पेश कर रही है. दरअसल इतनी बड़ी जनसंख्या को रोजगार उपलब्ध कराना सरकार के लिए भी सिरदर्द बना हुआ है. ऐसे में केवल सरकार पर आश्रित ना होकर स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाना फायदेमंद साबित हो सकता है. ऐसे में कंप्यूटर या मोबाइल फोन रिपेयरिंग आदि कुछ ऐसे रोजगार हैं, जिनके जरिये जीविका कमायी जा सकती है. इसके लिए एक या दो महीने का कोर्स करना होता है, जिस पर महज हजार-दो हजार का खर्च आता है. बाकी तो आपकी मेहनत पर निर्भर है.
सुधीर कुमार, बीएचयू, वाराणसी