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मुच्छड़ बूढ़ा सुपरहीरो अब कौन बनाएगा!

राजेश प्रियदर्शी डिजिटल एडिटर, बीबीसी हिंदी प्रा01, ये हिंदी दस्तख़त शाहरुख़ ख़ान की राone जैसी कथित क्रिएटिविटी से 40 साल पहले किए गए थे. टीवी के बिना बड़े हुए बच्चे प्राण का एक कॉमिक बुक पढ़ने के बाद, सौ कॉमिक्स अपने मन में बनाते थे, कार्टून चैनलों पर घंटों डोरेमोन देखने वाले बच्चों से ऐसी […]

प्रा01, ये हिंदी दस्तख़त शाहरुख़ ख़ान की राone जैसी कथित क्रिएटिविटी से 40 साल पहले किए गए थे.

टीवी के बिना बड़े हुए बच्चे प्राण का एक कॉमिक बुक पढ़ने के बाद, सौ कॉमिक्स अपने मन में बनाते थे, कार्टून चैनलों पर घंटों डोरेमोन देखने वाले बच्चों से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती.

एक ठेठ देसी मुच्छड़ बूढ़े को बच्चे ‘सुपर हीरो’ मान सकते थे, यह 1970-80 के मासूम दौर में ही मुमकिन था, जब सुपरमैन, आयरनमैन और स्पाइडरमैन जैसे हीरो के विलायती साँचे छोटे शहरों के बच्चों के दिमाग़ में नहीं धँसे थे.

एक कॉमिक न जाने कितने नन्हे हाथों, कितनी जोड़ी बेहद उत्सुक निगाहों से गुज़रता था.

प्राण के कॉमिक्स हमारी दुनिया में करेंसी नोट की हैसियत रखते थे जिनके बदले कभी पतंग, कभी लट्टू और कभी कंचे भी हासिल किए जा सकते थे.

फैंटम को उसी दौर में हिंदी वाले ग़रीब बच्चों के बीच वेताल बनाकर लाया गया था, उस दौर के बच्चे किसी भी कॉमिक बुक की ऊँगली पकड़कर कल्पना की दुनिया में जा सकते थे, वेताल की दुनिया में भी जाते थे मगर वहाँ एक परायापन था.

प्राण के कॉमिक्स में चाचा-चाची का झगड़ा होता था, चाची साबू को कोई घरेलू काम पकड़ा देती थी, हम अपने बेवकूफ़ दोस्तों को बिल्लू के मूर्ख साथी की तर्ज़ पर गब्दू बुला सकते थे, प्राण के कार्टून पराए नहीं थे.

चाचा चौधरी का दिमाग़ कंप्यूटर से तेज़ चलता था, मुझे याद है कि चार-पाँच साल की उम्र में मैंने सोचा था कि कंप्यूटर कोई सुपरफ़ास्ट कार जैसी चीज़ होती होगी, तब टीवी नहीं था, कंप्यूटर कल्पनालोक की चीज़ थी.

प्राण पाकिस्तानी पंजाब के कसूर में पैदा हुए, शरणार्थी परिवार के बच्चे थे, उन्होंने हिंदी पट्टी के करोड़ों बच्चों को कल्पना के पंख दिए. वो कितने कामयाब थे इसकी गवाही देने के लिए मेरी पीढ़ी लाखों लोग आगे आएँगे.

मगर कामयाबी से बढ़कर, प्राण ने हिंदीभाषी बच्चों के कोमल मन और छोटे से दिमाग़ के लिए जो खालिस देसी आविष्कार किया उसका पूरा क्रेडिट उनको शायद नहीं मिला.

प्राण अब चाचा चौधरी, साबू, चाची, बिल्लू और पिंकी को अनाथ बनाकर चले गए हैं. तीस-चालीस पार कर चुके करोड़ों बच्चों की तरफ़ से प्राण के प्रति गहरा आभार प्रकट करना एक ज़रूरी काम लग रहा है.

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