।। तरुण विजय ।।
राज्यसभा सांसद, भाजपा
तकनीक के मौजूदा युग में किसी देश के लिए साइबर सुरक्षा उतनी ही जरूरी है जितनी सरहद की सुरक्षा. इस विषय में किसी भी प्रकार का लचीला रुख न अपनाते हुए एक सर्वदलीय सहमति के साथ कठोर कानून बनाये जाने की आवश्यकता है.भारत दो परमाणु शक्तियों से घिरा है, जिनके साथ उसके संबंध युद्ध की छाया से घिरे रहते हैं. देश के आंतरिक हालात भी इसलामी आतंकवाद, माओवादी और नक्सलवाली हिंसा तथा उत्तर-पूर्वाचल के विद्रोही संगठनों के कारण प्राय: अशांत रहते हैं.
ऐसे संवेदनशील वातावरण में भी भारत साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में बहुत पीछे है तथा अपने नागरिकों की निजता की रक्षा करने में नितांत उपेक्षा के व्यवहार वाला देश है. यदि आपसे यह कहा जाये कि देश के शीर्षस्थ नेताओं से लेकर सामान्य नागरिक तक की इ-मेल, वित्तीय स्थिति और व्यक्तिगत खर्च का हिसाब-किताब, बातचीत और संदेश कोई देख रहा है, सुन रहा है, तो आप कैसा महसूस करेंगे?
जीमेल, याहू, सोशल मीडिया पर फेसबुक तथा ट्विटर और मास्टर कार्ड, वीसा जैसे क्रेडिट और डेबिट कार्ड के जरिये होनेवाला समस्त व्यवहार इन कंपनियों के अमेरिकी मालिकों के पास उनके विराट डाटा बैंक में एकत्र रहता है. हम सबकी बहुत सी महत्वपूर्ण और गोपनीय सूचनाएं हमारे कंप्यूटरों पर और खासकर हम जिस मेल व्यवस्था का इस्तेमाल करते हैं, उसके डाटा बैंक में लगातार इकट्ठा होता रहता है.
व्यस्तता और लापरवाही तथा साइबर सुरक्षा तकनीक की जानकारी नहीं होने के कारण अकसर इस बात की चिंता नहीं की जाती कि अपने व्यक्तिगत डाटा को किसी दूसरे व्यक्ति/ साइबर कंपनी के हाथ में न आने देने के लिए क्या उपाय किये जायें. नतीजा यह निकलता है कि हम सबका पूरा निजी सूचना संसार सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध हो सकता है और कोई भी साइबर कंपनी उसका हमारी इजाजत के बिना जायज-नाजायज इस्तेमाल कर सकती है.
पिछले एक वर्ष से मैंने अमेरिकी कंपनी गूगल द्वारा भारत के मानचित्र कानूनों और सुरक्षा कानूनों के उल्लंघन का मुद्दा उठाया है. गूगल ने अपने नक्शों की साइट पर भारत के संवेदनशील रक्षा स्थान, सीमावर्ती वायुसेना स्टेशन, भूमिगत बंकर, फाइटर हेलीकॉप्टर, मालवाहक सैनिक विमान, बम डिपो आदि को पूरे नामोल्लेख के साथ दिखाये.
इसके लिए अनिवार्य रूप से रक्षा मंत्रलय की जो इजाजत लेनी होती है, वह भी नहीं ली गयी. जब मैंने संसद में यह मुद्दा उठाया था, तब तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने आश्वासन दिया था कि इसकी पूरी जांच करायी जायेगी.
इस बीच भारत के महसर्वेक्षक (सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया) स्वर्ण सुब्बाराव ने सरकार से इजाजत लेकर गूगल द्वारा भारतीय कानून के उल्लंघन के विरुद्ध नयी दिल्ली के आरके पुरम थाने में आपराधिक प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआइआर) दर्ज करवा दी. यह घटना बड़ी बात थी.
गूगल ने कई प्रकार से राजनीतिक और पीआरओ के घटिया तरीके अपनाते हुए प्रभाव डालने की कोशिश की, लेकिन हमने भारतीय कानून की सर्वोच्चता कायम रखनेवाला अभियान जारी रखा. दिल्ली पुलिस के तत्कालीन आयुक्त नीरज कुमार ने इसमें गंभीरता से रुचि लेकर मदद की और मामला सीबीआइ जांच के लिए भेज दिया.
इस बीच मैंने गृह मंत्री, गृह सचिव और प्रधानमंत्री को भी पत्र लिख कर इस संबंध में कड़ी कार्रवाई का अनुरोध किया. विडंबना यह है कि जिस विषय पर तुरंत कठोर कार्रवाई कर भारतीय कानून की मर्यादा स्थापित करनी चाहिए थी, उस पर लगातार ढीला रवैया अपनाया जाता रहा. आशा करनी चाहिए कि नयी सरकार अब गूगल को कठघरे में खड़ा करते हुए उसे भारतीय कानून मानने पर बाध्य करेगी.
भारत ही एक ऐसा देश है, जहां साधारण नागरिकों की निजता किसी भी सरकार की चिंता का विषय नहीं रही है. यहां कोई भी निजता कानून या प्राइवेसी लॉ नहीं है और इस कारण भयादोहन (ब्लैकमेल) तथा राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ का मैदान खुला रहता है. पाठकों को यह जानकारी होगी कि मुंबई हमले (26/11) की योजना बनाते वक्त डेविड हेडली ने गूगल अर्थ से नक्शे लेकर सहायता प्राप्त की थी.
जहां तक गाड़ियों और सामान्य सूचना के लिए शहर और मार्गो के नक्शे प्राप्त करने की बात है, तो वह एक नागरिक सहायता का विषय है, जिस पर प्रतिबंध की जरूरत नहीं है. लेकिन यह काम भारतीय सर्वेक्षण विभाग को क्यों नहीं दिया जा सकता?
विश्व के सर्वश्रेष्ठ सर्वेक्षण संस्थानों में देहरादून स्थित इस विभाग का स्थान है. लेकिन, केंद्र सरकार को जिस गति और परिमाण में इस संस्थान को आर्थिक सहायता देकर इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर की नक्शा कंपनियों के साथ अग्रणी पंक्ति में खड़ा करना चाहिए था, ऐसा नहीं किया गया.
बजट और वित्तीय आवंटन के अभाव में भारतीय सर्वेक्षण संस्थान गूगल, याहू या अन्य उन अंतरराष्ट्रीय नक्शा कंपनियों का कैसे मुकाबला कर सकता है, जो करोड़ों-अरबों की संख्या में भारत का सूक्ष्मतम डाटा एकत्र कर विदेश ले जाती हैं.
पड़ोसी देश चीन ने इस संबंध में कठोरतापूर्वक कानून बना कर गूगल को अपने देश के नक्शों और इमेल से लगभग बाहर कर दिया है. वहां याहू और हॉटमेल जैसी इमेल व्यवस्था के बजाय चीन की अपनी स्वदेशी कंपनियां स्थापित हो गयी हैं तथा क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के लिए भी चीन के नागरिक चीनी कार्ड इस्तेमाल करते हैं, मास्टर, वीसा या कोई अन्य अमेरिकी कार्ड नहीं.
मुझे विश्वास है कि नरेंद्र मोदी की सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करेगी और न केवल भारत में अमेरिकी कंपनियों को भारतीय कानून का पालन करने के लिए बाध्य करेगी, बल्कि गूगल को भारत से इकट्ठा किया हुआ अपना सारा डाटा भारत सरकार के अंतर्गत सर्वेक्षण विभाग को देने का आदेश देगी.
वर्तमान में राजनाथ सिंह बहुत महत्वपूर्ण भूमिका में हैं और वे गूगल ही नहीं, बल्कि भारतीय बाजार में इस्तेमाल होनेवाले क्रेडिट और डेबिट कार्डो के जरिये नागरिकों के वित्तीय व्यवहार का जो भी डाटा एकत्र किया जाता है, वह भारत में ही कैसे जमा हो तथा अमेरिका के डाटा बैंकों में न जाये, इसकी व्यवस्था के विषय में नयी पहल कर सकते हैं.
तकनीक के मौजूदा युग में किसी देश के लिए साइबर सुरक्षा उतनी ही जरूरी है जितनी सरहद की सुरक्षा. इस विषय में किसी भी प्रकार का लचीला रुख न अपनाते हुए एक सर्वदलीय सहमति के साथ कठोर कानून बनाये जाने की आवश्यकता है. आशा करनी चाहिए कि सरकार इस संबंध में जरूरी पहल करेगी.