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पोस्टमार्टम का पोस्टमार्टम

।। सुभाष चंद्र कुशवाहा ।। स्वतंत्र पत्रकार सुविधारहित पोस्टमार्टम घरों में मृतक शरीर के किसी महत्वपूर्ण हिस्से को सुरक्षित रखने का सवाल ही पैदा नहीं होता. गंदगी, कर्मचारियों की कमी और चीर-फाड़ के औजारों की समुचित व्यवस्था के अभाव में सब कुछ अंदाज और अनुमान के आधार पर किया जाता है. फरीदा परवीन द्वारा दायर […]

।। सुभाष चंद्र कुशवाहा ।।

स्वतंत्र पत्रकार

सुविधारहित पोस्टमार्टम घरों में मृतक शरीर के किसी महत्वपूर्ण हिस्से को सुरक्षित रखने का सवाल ही पैदा नहीं होता. गंदगी, कर्मचारियों की कमी और चीर-फाड़ के औजारों की समुचित व्यवस्था के अभाव में सब कुछ अंदाज और अनुमान के आधार पर किया जाता है.

फरीदा परवीन द्वारा दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए पटना हाइकोर्ट ने अभी हाल ही में राज्य सरकार को प्रदेश के 38 जिला अस्पतालों में पोस्टमार्टम घर बनाने के निर्देश दिये हैं. फरीदा ने जमुई इलाके में खुले में पोस्टमार्टम किये जाने, शवों को चिड़ियां और कुत्‍तों द्वारा नोचे जाने तथा आसपास की आबादी को हो रही परेशानियों के कारण याचिका दायर की थी.

पश्चिम बंगाल में एशियन ह्यूमन राइट्स (एएचआरसी) ने वर्ष 2005 में बसीरहट और श्रीरामपुर सरकारी अस्पताल, हुगली में पोस्टमार्टम घरों की दुर्दशा, फ्रीज, खिड़की-दरवाजों के अभाव में शवों की सुरक्षा पर सवाल उठाया था.

न्यायिक साक्ष्य के रूप में पोस्टमार्टम (शव विच्छेदन) रिपोर्ट का महत्व होने के नाते, उसकी गुणवत्ता की समीक्षा आवश्यक हो जाती है. यह आपराधिक मामलों का एक महत्वपूर्ण सबूत है. पोस्टमार्टम करते समय बरती गयी लापरवाही, न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करती है.

इसके लचर और अस्पष्ट रिपोर्ट से दंड का स्वरूप बदल जाता है. पोस्टमार्टम का महत्व, मृत्यु का कारण जानने, तथ्य और साक्ष्य को जुटाने, मृत्यु का समय, मृत्यु के संबंध में तथ्य और परिस्थितियों का संबंध तथा दोषियों की पहचान करने में महत्वपूर्ण है. ऐसे में सही प्रक्रियाओं के तहत पोस्टमार्टम किया जाना बहुत जरूरी है.

खेद है कि फौजदारी मामलों की इस महत्वपूर्ण कडी को बेहद लापरवाही से निबटाया जा रहा है. यही कारण है कि कई बार जांच एजेंसियां, दोबारा पोस्टमार्टम की मांग करती हैं. बीमारू राज्यों में पोस्टमार्टम की गुणवत्ता और भी खराब है.

अभी लखनऊ के मोहनलाल गंज बलात्कार मामले में पीड़िता की दोनों किडनियों के होने की रिपोर्ट दे दी गयी, जबकि उसने पहले ही एक किडनी अपने पति को दान कर दी थी. जब मामला हाइप्रोफाइल होता है, तो पोस्टमार्टम पैनल बना दिया जाता है. शेष मामलों में मात्र एमबीबीएस. स्तर का डॉक्टर ही पोस्टमार्टम कर आख्या दे देता है.

सवाल उठता है कि आखिर हत्या या मृत्यु कारणों की पड़ताल करने के लिए जरूरी पोस्टमार्टम प्रक्रिया को गंभीरता से क्यों नहीं लिया जाता. इसका उत्तर जिन पोस्टमार्टम घरों में पोस्टमार्टम किया जाता है, उन्हें देख कर दिया जा सकता है. देश के ज्यादातर पोस्टमार्टम घरों की दशा अत्यंत दयनीय है.

उत्तर प्रदेश के 65 पोस्टमार्टम घरों में से केजीएमयू के अलावा किसी भी पोस्टमार्टम घर में फ्रीज या एक्सरे की सुविधा नहीं है.

सुविधा रहित पोस्टमार्टम घरों में मृतक शरीर के किसी महत्वपूर्ण हिस्से को सुरक्षित रखने का सवाल ही पैदा नहीं होता. गंदगी, कर्मचारियों की कमी और चीर-फाड़ के औजारों की समुचित व्यवस्था के अभाव में सब कुछ अंदाज और अनुमान के आधार पर किया जाता है.

लाश की लंबाई, वजन आदि भी अंदाज और अनुमान के आधार पर मापा जाता है. पोस्टमार्टम घर, जिला मुख्यालयों या कहीं-कहीं तो निकटतम जिला मुख्यालयों पर होते हैं. इस कारण पोस्टमार्टम प्रक्रिया पूरी होने में समय लगता है और दाह संस्कार करने के इंतजार में परिजनों पर एक-एक पल भारी गुजरता है. यह इंतजार, डॉक्टर न होने पर और लंबा हो जाता है.

यह कहानी ओड़िशा जैसे अविकसित राज्य और गुड़गांव जैसे विकसित शहर में समान है. ओड़िशा के तमाम पोस्टमार्टम घरों में दरवाजे तक नहीं हैं. लाशों को कुत्‍तों द्वारा नोचने का खतरा बना रहता है. गुड़गांव में जहां प्रतिवर्ष लगभग 1,400 मामले पोस्टमार्टम के आते हैं और दैनिक रूप से 6 से 15 तक का पोस्टमार्टम करना पड़ता है, वहां भी केवल जिला अस्पताल के एक हॉल में पोस्टमार्टम करने की सुविधा है.

एक मात्र तैनात डॉक्टर जब साक्ष्य हेतु न्यायालय में चला जाता है, तो पोस्टमार्टम का मामला लटक जाता है. वहां केवल 12 लाशों को रेफ्रिजरेटर में रखने की क्षमता है. कई बार रेफ्रिजरेटर में न रखे जाने पर लाशें सड़ने लगती हैं और खुले में ही पोस्टमार्टम कर दिया जाता है.

झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के पोस्टमार्टम घरों में भी सुविधा नहीं. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पुलिस अभिरक्षा में हुई मौतों के पोस्टमार्टम मामले में निर्देश दिया था कि पोस्टमार्टम किये जाते समय वीडियोग्राफी की सुविधा होनी चाहिए. देश के 21 राज्यों ने उसके इस सुझाव पर सहमति दे दी है, लेकिन अभी भी 4 राज्यों ने विचार नहीं किया है.

प्रत्येक पोस्टमार्टम गृह में शरीर भंडारण की पर्याप्त सुविधा होनी चाहिए तथा शवपरीक्षण हेतु डॉक्टर और फोरेंसिक लैब, टेक्नीशियन, कंप्यूटर, इमेंजिंग कक्ष, शौचालय तथा बैठने की जगह आदि होनी ही चाहिए. अंगुलियों की रेखाओं को सुरक्षित ढंग से रखने के लिए फोरेंसिक लैबों का होना बहुत जरूरी है.

अब देखना यह है कि न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े पोस्टमार्टम जैसे जरूरी कार्य के लिए सरकारें कब ध्यान देती हैं तथा पोस्टमार्टम घरों को कब तक आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण करती हैं.

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