मेदिनीनगर में फॉस्फेराइट तथा सिंहभूम में एपेटाइट का विशाल भंडार मिलने से झारखंड के किसानों की उर्वरक संबंधी जरूरत पूरी होने की संभावना जग गयी है. बताया जाता है कि मेदिनीनगर में 5-6 करोड़ टन फॉस्फेराइट तथा सिंहभूम में 17.8 करोड़ टन एपेटाइट का भंडार पाया गया है.
राज्य के खान एवं भू-तत्व विभाग ने इस भंडार से संबंधित रिपोर्ट भारतीय खान ब्यूरो को भेज दी है. ब्यूरो की आगे की कार्यवाही झारखंड सरकार के लिए आगे का मार्ग प्रशस्त करेगी. लेकिन, क्या इससे झारखंड में कोई बड़ा बदलाव दिखेगा? इसकी उम्मीद कम है.
दरअसल, जिस झारखंड में देश का 58 फीसदी अबरख, 30 फीसदी काइनाइट, 33 फीसदी तांबा, 33 फीसदी कोयला तथा 23 फीसदी लौह अयस्क है, उसे इस दशा में तो सर्वथा नहीं रहना चाहिए. देश की कुल खनिज संपदा का 40 प्रतिशत जिस झारखंड में है, उसे इन खनिज भंडारों की बदौलत मुल्क का सिरमौर होना चाहिए.
इसके विपरीत झारखंड को विशेष पैकेज और विशेष राज्य का दर्जा की लड़ाई लड़नी पड़ रही है. सच्चई यह है कि लड़ाई कम और राजनीति अधिक हो रही है. क्योंकि विकास की लड़ाई स्वस्थ राजनीति और प्रगतिशील वैचारिक वातावरण से संभव होती है और झारखंड की राजनीति में इस बात के लिए कभी कोई अवकाश नहीं रहा.
जिस राज्य के लिए विशेष पैकेज और विशेष राज्य का दर्जा की बात हो रही है, उस लक्ष्य को हासिल करने से पहले ही इसका श्रेय लेने की होड़ की राजनीति हो रही है. झारखंड अलग प्रदेश बनने के बाद यहां के विकास और भविष्य के लिए जो योजनाएं बननी चाहिए थीं और नेताओं में इसके लिए जो दृष्टि होनी चाहिए थी, दूर-दूर तक यहां इसकी झलक नहीं दिखती.
इसके विपरीत यहां के राजनीतिक वातावरण ने औद्योगिक विकास की उर्वर जमीन तक नहीं बनने दी. उपलब्ध संसाधन का महत्व समझने के साथ ही उसकी रक्षा और विकास की चिंता उपजती है. लेकिन जिस तरह से झारखंड के खनिज भंडारों की खुली लूट जारी है, कहीं न कहीं उसमें सत्ता प्रतिष्ठानों की प्रत्यक्ष-परोक्ष शिरकत से इनकार नहीं किया जा सकता है. इस चिंताजनक स्थिति को गंभीरता से समझा नहीं गया तो इसके विस्फोटक परिणाम से नहीं बचा जा सकता.