प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में खेती की तरक्की को तकनीक से जोड़ते हुए मंगलवार को कृषि वैज्ञानिकों के सामने लैब (प्रयोगशाला) से लैंड (खेत) तक के मुहावरे पर जोर दिया था.लेकिन, एक अर्थ में देखें तो, प्रधानमंत्री का यह मुहावरा अगले ही दिन पस्त पड़ता नजर आया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच और भारतीय किसान संघ की आपत्ति पर वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने आश्वस्त किया है कि अणुवांशिक रूप से प्रवर्धित यानी जेनेटिकली मोडीफाइड (जीएम) फसलों के जमीनी परीक्षण का फैसला फिलहाल स्थगित कर दिया गया है.
जावडेकर के लिए यह फैसला कुछ तीखा ही रहा होगा, क्योंकि इस मसले से संबंधित फैसलों के लिए गठित जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमिटी ने 17 जुलाई को ही 13 जीएम फसलों के परीक्षण पर हामी भरी थी. इस बैठक में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के वरिष्ठ सदस्य भी शामिल थे.
अब मंत्रालय को इस फैसले पर बस मुहर लगाने की देर थी. वैसे, जावडेकर का आश्वासन भाजपा के चुनावी घोषणापत्र के अनुकूल है, जिसमें कहा गया था कि जमीन की गुणवत्ता और उत्पादन के लिहाज से जीएम फसलों के असर का पूर्ण वैज्ञानिक मूल्यांकन किये बिना उनकी खेती की अनुमति नहीं दी जायेगी.
मुश्किल यह है कि वैज्ञानिक जीएम फसलों के असर को लेकर एकमत नहीं हैं और जीएम फसलों के बीज-व्यवसाय से जुड़ी कंपनियों के हित फैसलों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं. सरकारी फैसले के इन कंपनियों पर पड़नेवाले असर को इस बात से समझा जा सकता है कि इधर जीएम फसलों के परीक्षण पर स्थगन की खबर आयी और उधर शेयर बाजार में मोंसेंटो के शेयर गिरने लगे.
इन्हीं वजहों से यूपीए सरकार भी इस पर फैसला लेने में असमंजस की स्थिति में थी. जीएम फसलों के भविष्य को लेकर बीज कंपनियों, नागरिक संगठनों और सरकार के बीच चल रही रस्साकशी करीब 15 वर्ष पुरानी है.
वन एवं पर्यावरण मंत्री का जीएम फसलों के परीक्षण पर फिलहाल रोक का आश्वासन इस रस्साकशी का एक मुकाम भर है, मंजिल नहीं. हां, भाजपा ने इस मामले में अपने घोषणापत्र के रुख का अनुसरण करके जनता की इच्छा का सम्मान करने की कोशिश की है.