रांची: झारखंड में चिकित्सा शिक्षा बदहाल है. गत 14 वर्षो में राज्य में कोई नया मेडिकल कॉलेज नहीं खुला है. जो हैं, उनका स्तर बनाये रखना भी सरकार के लिए मुश्किल है. हाल में बड़ी मुश्किल से इन कॉलेजों में सीटों की संख्या बढ़ी थी.
अब इसे भी बरकरार रखने से केंद्र ने मना कर दिया है. स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र सिंह के अनुसार इस संबंध में विभागीय सचिव की ओर से केंद्र को चिट्ठी लिखी गयी है. गत एक सप्ताह से यह मुद्दा स्वास्थ्य विभाग के लिए मुश्किल भरा मुद्दा माना जा रहा है. संयुक्त सचिव बीके मिश्र के अनुसार अभी कम की गयी 110 सीटें बचा लेना ही सबसे बड़ा काम है.
गौरतलब है कि शिक्षकों की संख्या तथा पठन-पाठन के अन्य उपलब्ध साधन के आधार पर मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) ने बढ़ी सीटों को बरकरार रखने से मना कर दिया है. रिक्त सीटों की सही संख्या का आंकड़ा नहीं होने से काउंसलिंग में भी विलंब हो रही है. एसटी सीटों के खाली रह जाने की संभावना के मद्देनजर विभाग की ओर से केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखनी है. राज्य में तीन डेंटल कॉलेज हैं. पर इनमें से सिर्फ एक (डेंटल कॉलेज, गढ़वा) को ही मान्यता मिली है. इस तरह नया राज्य बनने के बाद से अब तक मेडिकल शिक्षा की स्थिति बदहाल है.
क्या है शर्त
नर्सिग स्कूल का कैंपस कम से कम तीन एकड़ में होना चाहिए. कैंपस में ही प्राचार्य व अन्य स्टाफ का आवास होना भी आवश्यक है. छात्रओं के क्लिनिकल प्रशिक्षण के लिए कम से कम 50 बेड का अस्पताल व ग्रेड-ए नर्स के लिए 200 बेड (100 का दो तथा 50 का अधिकतम चार भी मान्य) का अस्पताल होने या ऐसे अस्पताल में प्रशिक्षण के लिए समझौता (टाइ-अप) होने की भी शर्त है. ये अस्पताल स्कूल से पांच किमी से अधिक दूर नहीं होने चाहिए.
राज्य में बिना मान्यता के चल रहे हैं पारा मेडिकल संस्थान
राज्य भर के पारा मेडिकल संस्थान बगैर मान्यता के चल रहे हैं. यहां तक कि सरकारी क्षेत्र के तीन संस्थानों (रिम्स, एमजीएम व पीएमसीएच) को भी ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआइसीटीइ) की मान्यता नहीं है. झारखंड सरकार को लिखे एआइसीटीइ के पत्र (दिनांक 9.5.08) के अनुसार मल्टी परपस हेल्थ वर्कर को छोड़ डिप्लोमा स्तरीय सभी तरह के तकनीकी कोर्स के लिए उसकी मान्यता जरूरी है. पूर्व निदेशक विज्ञान व प्रौद्योगिकी डॉ अरुण कुमार के अनुसार एआइसीटीइ मान्यता न होने से झारखंड के पारा मेडिकल विद्यार्थियों को देश के अन्य राज्यों में काम मिलने में परेशानी हो सकती है. भारत सरकार की सेवा में भी यहां के विद्यार्थियों को इनकार किया जा सकता है. विदेशों में भी काम करने के लिए एआइसीटीइ अप्रूवल जरूरी है.
नर्सिग स्कूलों में नियम-शर्तो का पालन नहीं
राज्य के ग्रामीण इलाके में नियमों की अनदेखी कर नर्सिग स्कूल लगातार खोले जा रहे हैं. सूत्रों के अनुसार एनएमएम व जीएनएम (ग्रेड-ए नर्स) का प्रशिक्षण शुरू करने से पहले राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेना होता है. एनओसी के लिए भारतीय परिचारिका परिषद (एनआइसी) ने कई मापदंड तय किये हैं. ग्रामीण इलाके में खुलने वाले नर्सिग स्कूलों में इनका पालन नहीं किया जाता.
क्या समस्या हुई
शिक्षकों की संख्या तथा पठन-पाठन के अन्य उपलब्ध साधन के आधार पर मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) ने बढ़ी सीटों को बरकरार रखने से मना कर दिया है. रिक्त सीटों की सही संख्या का आंकड़ा नहीं होने से काउंसलिंग में भी विलंब हो रही है.
पारा मेडिकल की मान्यता को छोड़ दें, तो पूरी मेडिकल शिक्षा में सबसे बड़ी कमी शिक्षकों व अन्य मानव संसाधन की है. यह पूरी हो जाये, तो मुख्य कमी पूरी हो जायेगी.
डॉ मंजु, प्रभारी चिकित्सा शिक्षा