अर्थशास्त्री डॉ हरिश्वर दयाल की नजरों में नयी सरकार के द्वारा प्रस्तुत किया गया बजट क्रांतिकारी नहीं है. उनका मानना है कि जिस तरह का जनादेश राजग को प्राप्त हुआ था उस तरह का बजट उसकी सरकार द्वारा नहीं तैयार किया गया है. बजट को और अधिक मजबूत होना चाहिए था. लेकिन वे मानते हैं कि इस बजट ने कम ही सही लेकिन प्रत्येक सेक्टरों को राशि का आवंटन किया है. विदेशी निवेश की नीति पर उनका विचार है कि जरूरी संसाधनों के संग्रहण के लिए यह जरूरी हो गया है. कृषि के क्षेत्र में विदेशी निवेश को यदि सही तरीके से मोबिलाइज किया जाये तो बेहतर परिणाम आने की संभावना हैं. पंचायतनामा के लिए उनसे शिकोह अलबदर ने वर्ष 2014 के बजट के संबंध में बात की. प्रस्तुत है मुख्य अंश :
नयी सरकार ने अपना बजट प्रस्तुत कर दिया है. इस बजट पर आपकी क्या राय है. क्या यह लोगों की उम्मीदों को पूरा कर पायेगा?
भाजपा सरकार द्वारा प्रस्तुत यह बजट महज लोगों को शांत करने वाला बजट है. यह खुश करने वाला बजट है. यह बात जरूर है कि जो पिछली सरकार थी और लोगों में जो असंतुष्टि व्याप्त थी उसे कम करने के लिए इस सरकार को कुछ ऐसा करना था जिससे लोग स्वीकार करें. लेकिन एक समस्या जो देश के सामने है वह महंगाई है. महंगाई जैसी समस्या अभी कम नहीं होगी. नयी सरकार महंगाई को नियंत्रण नहीं कर सकती है. ऐसी अभी कहीं से उम्मीद नहीं आ रही है. एक दूसरी लेकिन अहम बात आर्थिक स्थिति है. देश और पूरे विश्व की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. इराक संकट विश्व के सामने है. तेल के दामों में वृद्धि हुई है. यदि तेल पर यहां अनुदान बढ़ा दिया जाये तो दूसरी उपयोगी और रोजमर्रा के लिए जरूरी वस्तुओं के दामों में वृद्धि हो जायेगी. इंडस्ट्रियल सेक्टर की भी स्थिति खराब है. पिछले वित्तीय वर्ष में इसकी विकास दर कम रही है. हां यह बात जरूर है कि वर्ष 2008 से पहले यह ग्रोथ रेट नौ प्रतिशत रही थी. नौ प्रतिशत से ऊपर भी गयी है, लेकिन अभी स्थिति खराब है. यदि कृषि के क्षेत्र पर गौर किया जाये तो पहले कृषि के क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन किया गया है, लेकिन इस बार सूखा पड़ने की स्थिति है. तो यह माना जाये कि कृषि क्षेत्र में भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. इस बजट को हम क्रांतिकारी बजट नहीं कह सकते हैं. जिस तरह से सरकार को जनादेश मिला है उस हिसाब से बजट नहीं है. इसे साधारण बजट माना जायेगा. यह बजट इस मायने में अच्छा है कि कम ही सही लेकिन सभी क्षेत्रों को वित्तीय सहायता का प्रावधान किया गया है.
हां, यह बात भी है कि यह बजट मात्र आठ महीने के लिए ही लाया गया है. हम इसे इंडिकेटिव (परिचायक)बजट मान सकते हैं. लेकिन मैं एक बात फिर कहता हूं कि जिस प्रकार से सरकार को जनादेश मिला, ऐसी स्थिति में उसे एक मजबूत बजट लाना चाहिए था. लेकिन हम यह कह सकते हैं कि आने वाले समय में इससे बेहतर और मजबूत बजट प्रस्तुत किया जायेगा. आने वाले समय में नियमित वृद्धि होगी, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए.
इस बजट के विषय में लोगों में क्या प्रतिक्रिया देखी गयी है?
यह बजट लोगों की उम्मीदों को थोड़ा शांत करता है. इस बजट के विरोध में किसी प्रकार की कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया लोगों में नहीं देखी गयी है. विपक्षी दलों ने इस बजट को लेकर विरोध किया है, बजट की आलोचना की है, लेकिन जनता इसके विरुद्ध नहीं हैं. लोग नाराज नहीं हैं, जिस प्रकार की प्रतिक्रिया है उससे यह बात समझ में आती है. हम यदि रिसोर्स अलोकेशन (संसाधन के आवंटन) की बात करें तो यह साफ दिखेगा. बाजार ने भी बजट को सकारात्मक रूप में लिया है. उद्योग घराने भी इस बजट से संतुष्ट दिखते हैं. हर सेक्टर को बजट की ओर से राशि दी गयी है. लेकिन एक दूसरा पक्ष यह है कि इसका बहुत बड़ा असर नहीं दिखने वाला है.
जिस तरह से राशि का आवंटन किया गया है वह अपर्याप्त है. लेकिन बजट ने अधिक से अधिक क्षेत्रों को छूने की कोशिश की गयी है. हां यह उम्मीद की जाती है कि अगले बजट में और अधिक राशि का प्रावधान किया जायेगा. लक्ष्य यह नहीं है कि ज्यादा आवंटन कर आर्थिक व्यवस्था को बेहतर बनाया जाये बल्कि लक्ष्य यह है कि शासन प्रणाली ऐसी हो कि लिकेजेज (अनियमितता व भ्रष्टाचार) को कम किया जा सके. जन वितरण प्रणाली की व्यवस्था को बेहतर बनाया जाये और ऐसा होता है तो लिकेजेज कम किया जा सकेगा और उसका सही रिजल्ट अवश्य मिलेगा. इस बजट में एक खास बात यह है कि नेशनल एडॉपटेशन फंड के तहत 100 करोड़ रुपये की राशि जलवायु परिवर्तन पर खर्च किये जाने को है. ये शुरुआत अच्छी है. ऐसा पहले नहीं हुआ, लेकिन इसका जो आवंटन है वह अपर्याप्त है. कृषि के क्षेत्र में रूरल क्रेडिट देने की बात है. ब्याज दर कम है. कृषि आधारभूत संरचना के विकास के लिए 500 करोड़ रुपये आवंटन का प्रावधान है. वहीं दूसरी ओर कृषि उपज को सुरक्षित रखने के लिए गोदामों की व्यवस्था के लिए 500 करोड़ रुपये के आवंटन का प्रावधान किया गया है.
मैं इस बजट को इंडिकेटिव (परिचायक) इसलिए कह रहा हूं कि यह एक दिशा दिखा रहा है. यह बताता है कि सरकार किस दिशा में काम करना चाह रही है. यह दिशा बहुत हद तक सार्थक है. इस बजट में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन को बढ़ाने की बात है. मनरेगा को जारी कर रहे हैं. परिसंपत्तियों पर ध्यान दिया जा रहा है. झारखंड और असम में कृषि क्षेत्र में अध्ययन और शोध के लिए संस्थान को स्थापित करने की बात कही गयी है. तेलंगाना और हरियाणा में बागवानी संस्थान की बात है. किसान टेलीविजन की बात कही गयी है. अगर बजट का विेषण किया जाये तो पाते हैं कि लगभग सभी क्षेत्रों में फंड दिया गया है.
भारत जैसे विकासशील देश में विदेशी निवेश कहां तक सही है, वहां जहां एक बड़ी जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे रह रही हो?
हमारे यहां संसाधन की कमी है. संसाधनों का संग्रहण काफी मुश्किल है. कर संग्रहण के लिए कोई कठोर कदम न तो सरकार उठाती है और ना ही जनता इसके लिए तैयार है. तो इसका दूसरा रास्ता पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप और विदेशी निवेश है जो जरूरी संसाधनों को जुटा सकने में पूर्ण रूप से सक्षम होगा. जब हम नयी आर्थिक व्यवस्था को स्वीकार कर रहे हैं तो ऐसी परिस्थिति में यह जरूरी हो जाता है कि हम उसके अनुरूप चलें. विदेशी निवेश का भी कृषि की आधारभूत संरचना के विकास अच्छा असर पड़ेगा.
एनडीए सरकार के इस बजट का किसानों को क्या लाभ मिल सकेगा?
कृषि के क्षेत्र में कॉरपोरेट घरानों ने निवेश किया है. भूमिहीन किसानों के समूह बना कर संयुक्त रूप से अलोकेशन (आवंटन) की बात कही गयी है, अगर ऐसा होता है तो यह काफी सराहनीय होगा. विदेशी निवेश से पहले ऐसा नहीं था कि किसानों की स्थिति बहुत अच्छी थी. कृषि के क्षेत्र में निर्धारित फंड को सही तरीके से मोबिलाइज किया जाये से समस्या नहीं आयेगी. यह कृषकों के लिए बेहतर होगा.
विदेशी निवेश से घरेलू उत्पादन पर कैसा असर पड़ेगा?
बाजार में जो उत्पाद को लेकर प्रतियोगिता है उसका कोई उपाय नहीं है. घरेलू उत्पाद को आगे बढ़ाया जा रहा है. ऐसा हो सकता है कि घरेलू उत्पाद को अधिक से अधिक प्रोत्साहित किया जाये. अब एक उदाहरण के रूप में इस बात को समङों. आज के समय में खादी और झारक्राफ्ट के अंतर्गत जो उत्पाद हैं, वे अंतराष्ट्रीय बाजारों में भी जाने जा रहे हैं. घरेलू उत्पाद के मामले में ऐसी संभावनाएं हमेशा बनी रहती है.
इस विषय में एक बात जानना जरूरी है कि सरकार की ओर से मूल्य के संतुलन के लिए सरकार ने 500 करोड़ के फंड का प्रावधान किया है. हम जानते हैं यहां जिस प्रकार कृषि की स्थिति है उससे किसान काफी प्रभावित होते हैं. उत्पाद के मूल्यों में उतार-चढ़ाव होता रहता है. इसलिए ऐसे फंड की व्यवस्था की गयी जिसके तहत किसानों के उत्पादित अनाजों के भंडारण के लिए गोदामों के बनाये जाने की बात कही गयी है. इससे भी मूल्य संतुलित होने की संभावना है. इसका सफलतापूर्वक कार्यान्वयन अच्छा परिणाम देगा.
गोदाम के साथ कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था की बात है. प्रोसेसिंग बिजनेस को बढ़ाने की बात कही गयी है. तो इन सब व्यवस्थाओं से ऐसी उम्मीद की जाती है कि किसानों को सही समय पर उनकी उपज का सही दाम मिल सके. हम उम्मीद करते हैं कि वर्ष 2015-16 का जो बजट आयेगा वह दीर्घकालिक और दूरदर्शी होगा.
डॉ हरिश्वर दयाल
निदेशक, इंस्टिटयूट फॉर ह्यूमेन डेवलपमेंट, इस्टर्न रिजनल सेंटर