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मुखिया व जलसहिया ने बदली गांव में जल प्रबंधन की व्यवस्था

पानी की एक-एक बूंद अनमोल होती हैं और गोपालपुर पंचायत इसे बखूबी समझती है. पानी की हर बूंद को सहेजने की आदत यहां पनप रही है. नतीजा यह है कि आज यह पंचायत आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रही है. पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला प्रखंड में स्थित है गोपालपुर पंचायत. घाटशिला रेलवे स्टेशन से […]

पानी की एक-एक बूंद अनमोल होती हैं और गोपालपुर पंचायत इसे बखूबी समझती है. पानी की हर बूंद को सहेजने की आदत यहां पनप रही है. नतीजा यह है कि आज यह पंचायत आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रही है.

पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला प्रखंड में स्थित है गोपालपुर पंचायत. घाटशिला रेलवे स्टेशन से महज दो किमी की दूरी पर है है यह जगह. इस पंचायत का एकमात्र राजस्व गांव है गोपालपुर. 12 वार्ड हैं. कुल 6399 की आबादी है. इनमें पिछड़ी जाति के 1112, अनूसूचित जाति के 501 और अनुसूचित जाति के 364 लोग हैं. चार सरकारी प्राथमिक विद्यालय हैं. इसके अलावा निजी स्कूल भी हैं. हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड और अन्य नामी-गिरामी कंपनियों के प्लांट इस इलाके में हैं.

वार्ड सदस्य बाबूलाल हेंब्रम बताते हैं कि गोपालपुर में माइनिंग कंपनियों, रेल कर्मचारियों और व्यवसायी वर्ग की चहल-पहल बहुत अधिक है. इसलिए कभी हमारे यहां ग्रामीण समाज की झलक नहीं मिलेगी. बिजली बराबर यहां रहती है. गोपालपुर कई मायनों में समृद्ध पंचायतों में से है. यहां के समाज में कई स्तरों पर जागरूकता है. यही कारण है कि 2009 में शुरू हुई जलापूर्ति योजना आज चार सालों के अंदर ही दूसरी पंचायतों के लिए अनुकरणीय बन चुकी है. पंचायत के खाते में सात लाख रुपये आ चुके हैं.

सब मांगते थे पानी, पर जलकर में मनमानी

कनीय अभियंता प्रदीप कुमार मांझी कहते हैं पंचायत व्यवस्था के लागू हो जाने से बड़ी राहत मिली है. पानी का कनेक्शन भी पंचायतें दे रही है और जलकर भी कायदे से वसूल कर रही हैं. इस कार्य में यहां की मुखिया रीता मुंडा व जल सहिया सोमा आदित्य का अहम योगदान है.

गोपालपुर में पेयजल आपूर्ति योजना मई 2009 में आरंभ हुई थी. पूर्व में यहां घाटशिला जलापूर्ति योजना के जरिए पानी की आपूर्ति की जाती थी. पूर्व में वाटर कनेक्शन और जल कर की वसूली व्यवस्था पेयजल विभाग संभालता था. एक लाइसेंस होल्डर प्लंबर विभाग की ओर से रखा गया था, जो आज भी है. जिस किसी को पानी कनेक्शन चाहिए होता विभाग द्वारा निर्धारित एक फॉर्म प्लंबर से लेकर भरता और जरूरी कागजातों के साथ इसे प्लंबर के ही पास जमा कर देता. भरे हुए फॉर्म को उचित जांच-पड़ताल के बाद विभागीय एसडीओ को भेजा जाता. वहां से मिले निर्देशानुसार चयनित आवेदकों के पास प्लंबर जाता. पानी कनेक्शन करता और विभाग द्वारा निर्धारित सिक्यूरिटी मनी 310 रुपये वसूलता. पानी कनेक्शन में लगने वाले सामान और मजदूर का खर्च आवेदक ही वहन करता. दो-पांच दिन या अधिकतम एक सप्ताह के अंदर आवेदक का पानी कनेक्शन हो जाता था. कनेक्शन लगने वाले दिन या अगले दिन से पानी मिलना आरंभ हो जाता. मासिक शुल्क 50 रुपये निर्धारित था. तीन-तीन माह पर उपभोक्ताओं का बिल घाटशिला के सब-डिवीजन ऑफिस में भेजा जाता. उपभोक्ता वहीं बिल जमा करते.

श्री मांझी कहते हैं कि पानी कनेक्शन लेने में जितनी तत्परता उपभोक्ता की होती है, कुछेक को छोड़ अधिकतर जल कर देने में उतनी ही आनाकानी करते हैं. 2009 से 2012 के बीच तीन पंचायतों को मिला कर कुल 950 उपभोक्ताओं को पानी कनेक्शन मिल चुका था. वाटर कनेक्शन के बाद जल कर देने के मामले में नौबत यहां तक आ गयी थी कि प्राथमिकी भी दर्ज करानी पड़ी थी. दो परिवार तो ऐसे थे, जिनमें से एक का मामला हाईकोर्ट तक गया तो दूसरे को आठ माह जेल में बिताना पड़ा था. जल कर वसूली आदर्श स्थिति में नहीं थी.

गोपालपुर में 2011 से ही ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति कार्यरत है. कुल 14 सदस्य हैं समिति में. जल सहिया सोमा आदित्य कॉमर्स ग्रेजुएट हैं. उनके मुखिया जी और प्लंबर के पास पेयजल विभाग द्वारा जारी पानी कनेक्शन का फॉर्म हमेशा उपलब्ध रहता है. उनके अनुसार जिस किसी को पानी कनेक्शन चाहिए, फॉर्म भर कर नाम, पता, पहचान से संबंधित आवश्यक कागजातों के साथ हमारे पास अथवा प्लंबर, मुखिया के पास जमा करता है. कनीय अभियंता के माध्यम से वह विभाग के एसडीओ के पास जाता है. वहां से तय नामों को विभाग द्वारा निर्धारित प्लंबर के माध्यम से पानी कनेक्शन दे दिया जाता है. आवश्यक सामानों और मजदूरों का भुगतान लाभुक करता है.

पूर्व में निर्धारित 310 रुपये सिक्यूरिटी मनी के तौर पर लाभुक कनेक्शन के समय देता है जिसके लिए उसे एक रसीद दे दी जाती है. इसके बाद हर दो माह पर जल कर के तौर पर लाभुक 124 रुपये का भुगतान करता है. प्रतिमाह 62 रुपये का शुल्क तय है. मुखिया रीता मुंडा के घर में ही एक छोटा-सा कार्यालय अभी है, वहीं लाभुक आकर जल कर देते हैं. जलकर दिए जाने की सूचना ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति उपभोक्ता को भेजी जाती है, जिसमें यह सूचना होती है कि उन्हें दो माह का शुल्क या निर्धारित राशि और कितने तारीख को या कब तक दे देनी है. शुल्क जमा करने की तिथि एक-दो दिनों तक रखी जाती है. सुबह से लेकर दिन के दो बजे तक जलकर की राशि लाभुक जमा करने आते हैं. एकत्रित हुई राशि को उसी दिन समिति के बैंक खाते में जमा कर दिया जाता है. एक भी पैसा समिति या उसके सदस्य अपने पास नहीं रखते.

पंचायत ने लिए जिम्मा
पेयजल विभाग द्वारा पांच मार्च 2012 को घाटशिला जलापूर्ति योजना का हस्तांतरण ग्राम पंचायत को किया गया था. ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति को 496 उपभोक्ताओं की सूची दी गयी थी. तब से लेकर अबतक कुल 587 उपभोक्ता पेयजल आपूर्ति योजना का लाभ उठा रहे हैं. यानी 91 नये कनेक्शन ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति के माध्यम से लगे हैं. श्रीमती सोमा बताती हैं कि उपभोक्ताओं को पानी की आपूर्ति सुबह साढ़े पांच बजे से दस बजे तक की जाती है. विभागीय इंजीनियर, पलंबर पानी सप्लाई की व्यवस्था संभालते हैं. मोटर चलाने के लिए बिजली की जरूरत और बिजली बिल का सवाल भी हमारे सामने नहीं है. सवाल था कि जल कर की वसूली कैसे हो? अब भी कुल लाभुकों में तकरीबन 60 फीसदी ही ऐसे हैं, जो नियमित तौर पर जल कर भुगतान कर दिया करते हैं. पहले 30-40 फीसदी ही ऐसा करते थे. अंतत: ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति ही आगे बढ़ी. हमने अपने ग्रामीणों के साथ लगातार बातचीत की, समझाया. आदत विकसित की. नतीजा रंग लाया है. जो थोड़े-बहुत उपभोक्ता ससयम शुल्क का भुगतान नहीं कर रहे, अब उनमें भी सुधार आ रहा है. सोमा उत्साहित होते हुए बताती हैं अभी हर दो माह पर लाभुकों द्वारा किए जाने वाले जलकर भुगतान से 30 हजार से 50 हजार रुपये आ जाते हैं.

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