!!जयंत सिन्हा, सांसद, भाजपा!!
नरेंद्र मोदी सरकार ने आम बजट पेश करके देश के सामने विकास का रोडमैप रखा है. इस बजट पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता और विशेषज्ञ क्या सोचते हैं. ‘बजट के पीछे की राजनीति’ पर ‘प्रभात खबर’ की सीरीज की पेश है आज अंतिम कड़ी..
विपक्ष का आरोप है कि बजट दिशाहीन, आर्थिक दर्शन से दूर है. जबकि मैं कहना चाहता हूं कि विपक्षी सदस्यों को संसदीय प्रक्रियाओं और अर्थव्यवस्था को समझने का उनका नजरिया वक्तव्यों से जाहिर हो जाता है. हमारी सरकार ने बेहद मुश्किल आर्थिक हालात में बजट पेश किया है. बजट केवल 45 दिनों में तैयार किया गया है. बजट में मौजूदा आर्थिक चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए इसके समाधान की पूरी कोशिश की गयी है.
हमें ऐसी अर्थव्यवस्था को तैयार करना है, जो सालाना सतत 8-10 फीसदी का आर्थिक विकास दर हासिल कर सके.
यही भारत के लोगों की जरूरत और मांग है और हमें ऐसा करना होगा. हमे देशी और विदेशी निवेशकों और व्यापारियों की चिंताओं पर भी गौर कर उनकी समस्याओं का समाधान करने की दिशा में कदम उठाने होंगे.
हमें विषम आर्थिक हालात से निबटना है. मैं माननीय सदस्यों और व्यापारियों को यह कहना चाहता हूं कि हमें बजट में बेहतर करने की कोशिश की और टी-20 गेम नहीं खेला. यह कोई टी-20 का खेल नहीं है. विपक्षी सदस्य सोचते हैं कि विरासत में हमें जो समस्याएं मिली है, उसका समाधान कुछ ही महीनों में हमारी सरकार कर देगी. ऐसे काम नहीं होता है. अर्थव्यवस्था युद्धभूमि की तरह है.
यह हवाई जहाज है. विरासत में मिली समस्याओं और चुनौतियों को ठीक करने में लंबा वक्त लगता है. यह न तो टी-20 न ही एक दिवसीय खेल है. यह पांच दिवसीय टेस्ट मैच है और खेल अभी शुरू ही हुआ है. एक महत्वपूर्ण बात गौर करने वाली है कि वित्तीय वर्ष का एक तिहाई समय खत्म हो चुका है. बजट में विभिन्न मदों में जो आवंटन दिख रहा है उसमें इस बात का ख्याल रखा गया है कि एक तिहाई समय बीत चुका है. सरकारी मशीनरी को काम करने में समय लगता है, ऐसे में जो आवंटन किये गये हैं, वे सही और सटीक हैं. विपक्षी सदस्यों ने कई तथ्य पेश किये हैं.
मैं कहना चाहता हूं कि उन्होंने जो आंकड़े पेश किये हैं वे काफी रोचक है, लेकिन जो वे नहीं बताना चाहते वह काफी महत्वपूर्ण हैं. जो तथ्य वे नहीं बताना चाहते वह है जब 2004 में एनडीए सरकार की विदाई हुई तो विरासत में उन्हें अच्छी अर्थव्यवस्था मिली थी, लेकिन बदले में उन्होंने क्या दिया है? ये तथ्य सामने नहीं लाये गये हैं. उन्होंने ऐसी अर्थव्यवस्था दी है, जो वैश्विक स्तर पर प्रमुख अर्थव्यवस्था है, लेकिन उसका प्रदर्शन सबसे खराब है. जीडीपी का विकास दर 5 फीसदी से नीचे चला गया जो पिछले 25 सालों में सबसे खराब है.
लगातार दो वर्षो से विकास दर 5 फीसदी के नीचे रहा. भारत जैसी अर्थव्यवस्था जहां युवाओं की बड़ी संख्या है, वहां ऐसा विकास दर होना भ्रष्टाचार जैसा है. मेरा मानना है कि उन्हें इसकी जिम्मेवारी लेनी चाहिए. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्होंने इन तथ्यों को पेश नहीं किया. इसके अलावा वे महंगाई और बढ़ी कीमतों की बात कर रहे हैं. क्या वे जानते हैं कि पिछले पांच सालों से उपभोक्ता महंगाई जो समाज के गरीब तबकों को सबसे अधिक प्रभावित करती है, वह 8-10 फीसदी रही, जो विश्व की प्रमुख अन्य अर्थव्यवस्थाओं से अधिक है? यह वास्तव में शर्मनाक बात है. वे समग्रता की बात कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने देश के लोगों के लिए महंगाई का तोहफा दिया. उनके आर्थिक प्रदर्शन काफी निराश करने वाला रहा. अगर आप साल के जुलाई से सितंबर के बीच महंगाई को देखे तो फल और सब्जियों की कीमत क्या हो जाती है? यही समय है जब हम देखते हैं कि कीमतें काफी बढ़ जाती है, जो कि भारत के लोगों के लिए पूरी तरह असहनीय होती है.
हम भी ऐसे हालात में आये जब प्याज की कीमतें 80-100 रुपये हो गयी. लेकिन हमने इस बढ़ती कीमत को सख्त और निर्णायक कदमों से रोकने में सफल रहे और आज प्याज की कीमतें 25-30 रुपये किलो है. यही अच्छे दिन का मतलब है. मैं इस बात की कल्पना नहीं कर सकता हूं कि वे कैसे अपने किये कार्यो को गर्व के साथ सही ठहरा रहे हैं. हमें इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि यूपीए ने कैसी मौद्रिक और वित्तीय नीतियां अपनायी. हम ऐसी स्थिति में पहुंच गये, जहां ब्याज दरें नकारात्मक हो गयी. लोग भारत में निवेश करने और बैंकों में पैसा रखने का भरोसा खो चुके. घरेलू बचत दर 33 फीसदी से घटकर 30 फीसदी हो गया. लोग सोने के जरिये अपना बचत करने लगे. सोने का आयात बढ़ गया, जिससे चालू बचत घाटा 4.7 फीसदी और रुपये के मुकाबले डॉलर की कीमत 68-70 रुपये हो गयी. लोगों का भारत में भरोसा पूरी तरह खत्म हो गया और इसके कारण भरोसे का संकट खड़ा हो गया. भारत की आबादी के बीच संकट आ गया और वे निवेश करने से कतराने लगे. यही संकट विदेशी निवेशकों के मन में भी था.
भरोसे के संकट के कारण ही विपक्ष के माननीय सदस्य आज वहां बैठे हैं और इसी के कारण उनकी संख्या भी सिमट गयी. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भारत के लोगों ने उनके आर्थिक प्रबंधन के प्रति भरोसा खो दिया. बजट में हमने इसे बहाल करने की कोशिश की है. मैं देशी और विदेशी उद्योगपतियों से संपर्क में रहता हूं और दावे के साथ कह सकता हूं कि हमारा प्राथमिक और पहला उद्देश्य इस बजट के जरिये पूरा हुआ है और यह है भारत सरकार और उसके आर्थिक प्रबंधन के प्रति भरोसा बहाल करना. हमने इसे हासिल कर लिया है. बजट में दो महत्वपूर्ण मुद्दे रोजगार और निवेश चक्र को बहाल करने का रोडमैप है. ये दोनों आर्थिक विकास को बढ़ाने में काफी महत्वपूर्ण रोल निभाते हैं.
विपक्ष का आरोप है कि हमारी कोई आर्थिक विचारधारा नहीं है. हमारी विचारधारा उनसे बिल्कुल अलग है. वित्त मंत्री ने कहा कि उनकी विचारधारा माइंडलेस पॉपुलिज्म है. मनरेगा की बात करते हैं. जिन विशेषज्ञों ने मनरेगा की जांच की है, उसमें काफी लिकेज की बात सामने आयी है. कर्ज माफ करने जैसे फैसलों से राजस्व घाटा बढ़ा. माइंडलेस पॉपुलिज्म का एक और उदाहरण है आधार योजना. ये डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की बात करते रहे. इनके पास पांच साल का वक्त था आधार का क्या हुआ? न विधेयक पारित हुआ और न ही वह क्रियान्वित हुआ. यह उनकी कौन से गेम चैंजिंग योजना थी? यह माइंडलेस पॉपुलिज्म था, जिसका क्रियान्वयन नहीं हुआ. हमारी विचारधार है, जनता को साधन मुहैया कराना.
हम जनता को साधन देंगे, खोखले अधिकार नहीं. इन साधनों के द्वारा जनता अपने संघर्ष, महेनत से विकास करेगी, संपत्ति बढ़ायेगी, परिवार को समृद्ध करेगी. यह हमारी विचारधारा है. बजट को देखकर आप कह सकते हैं कि हमलोगों ने इस विचारधारा को पूरी तरह से क्रियान्वित किया है. अगर आपकी नींव की ईट हिल रही है, अगर नींव स्थायी नहीं है तो आप निर्माण क्या करेगे. जब मैं हजारीबाग गया तो वहां की जनता ने कहा कि आप लोगों ने तो महंगाई में कमाल कर दिया है. महंगाई को काबू में करने के लिए लोग काफी खुश हैं. अब लोग कहते हैं कि रोजगार दिलाइए. हमारे युवा बच्चे बेकार हो रहे हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए बजट में रोजगार के लिए बहुत अहम और अच्छी योजनाएं लायी गयी है.
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