बरसात का मौसम आ चुका है. यह गरमी से राहत का समय जरूर है, लेकिन मौसम का यही बदलाव बीमार भी बना सकता है. इसमें जहां सर्दी-खांसी, जुकाम, डायरिया आदि रोग जकड़ते हैं, वहीं बैक्टीरिया व फंगल इन्फेक्शन चर्म रोग को बढ़ावा देते हैं. इस मौसम में क्या बरतें एहतियात और विभिन्न रोगों में क्या हैं निदान के उपाय, बता रहे हैं दिल्ली व पटना के प्रमुख डॉक्टर.
बरसात में कई प्रकार के बैक्टीरिया, वायरस और फंगस सक्रिय हो जाते हैं. इसके कारण कई प्रकार के त्वचा रोग होने की आशंका बढ़ जाती है. इस मौसम में सबसे अधिक देखने के लिए मिलता है टीलिया (दिनाय) या रिंगवॉर्म. ये गोल-गोल और छोटे-छोटे होते हैं. यह रोग फंगस के कारण होता है. गीली तवचा इसे बढ़ाने का कार्य करती है. इसके बढ़ने का मुख्य कारण इस मौसम में आद्र्रता और अधिक तापमान है. रोग के होने के स्थान के आधार पर यह कई प्रकार का होता है- त्नटीलिया क्यूरिस : यह आमतौर पर जोड़ों के बीच की त्वचा में होता है त्नटीलिया मैनम हाथों में होता है त्नपैरों में टीलिया पेडिस त्नमुंह में टीलिया फेसाइ त्ननाखून में टीलिया अंगुम त्नअन्य जगहों पर होने पर इसे टीलिया कार्पोरिस कहते हैं. इसके फैलने का मुख्य कारण बरसात में कपड़े का ठीक से नहीं सूखना है. जोड़ों के बीच की त्वचा में बैक्टीरियल इन्फेक्शन से भी यह हो सकता है. यह संक्रामक रोग है और तेजी से फैलता है.
बचाव : सूती और ढीला कपड़ा पहनें एवं एंटी फंगल पाउडर का इस्तेमाल करें. बरसात में ही एक अन्य प्रकार का रोग होता है, जो पानी के संपर्क में अधिक रहने से होता है. यह पैरों और हाथों की उंगलियों के बीच में होता है. इसे कैंडीडियल इंटरट्राइगो कहते हैं. इसमें उंगलियों के बीच में तेज खुजली होती है.
स्कैविज : इसके होने का मुख्य कारण बरसात में कई दिनों तक कपड़े नहीं धोना है. यह इचमाइट के कारण होता है. इसमें पूरे शरीर पर दाने निकलते हैं. उंगली के बीच में भी दाने निकलते हैं. इसे बरसाती फोड़ा-फुंसी भी कहते हैं. इसमें रात के समय तेज खुजली होती है.
बचाव : गरम पानी में कपड़ा थोड़ी देर तक फूला कर उसे धोना चाहिए. 5 } परमेथ्रीन का क्रीम गले से पैर तक लगाना चाहिए. यह नवजात शिशु और गर्भवती महिलाएं भी लगा सकती हैं. इस रोग में घर के सभी सदस्यों का उपचार एक साथ होना चाहिए. एक भी व्यक्ति छूटने पर यह रोग सभी में फैल सकता है.
डॉ क्रांति
असिस्टेंट प्रोफेसर, एचओडी स्किन एंड वीडी डिपार्टमेंट, आइजीआइएमएस, पटना
सामान्य रोग
दूषित पानी से वायरल डायरिया
एक दिन में तीन बार से अधिक पतला शौच हो, तो उसे डायरिया कहते हैं. आमतौर पर यह एक हफ्ते में ठीक हो जाता है. यदि यह अधिक समय तक रहे, तो क्रॉनिक डायरिया कहलाता है. पीड़ित मरीज के शरीर में दस्त होने की वजह से सोडियम क्लोराइड (नमक) और पानी की मात्र कम हो जाती है. यह मुख्य रूप से बच्चों में होता है. समय रहते इसे काबू न किया जाये, तो यह जानलेवा भी हो सकता है. स्वस्थ शरीर के खून में सोडियम की मात्र 140 मिग्रा प्रति लीटर और क्लोराइड की मात्र 100 मिग्रा प्रति लीटर होती है. जब मरीज के शरीर में सोडियम का लेवल 120 से नीचे चला जाता है, तब मरीज कोमा में भी जा सकता है और उसकी मौत भी हो सकती है. आमतौर पर ट्रीटमेंट किये जाने से डायरिया 3 से 7 दिनों के बीच समाप्त होता है. बरसात के मौसम में वायरल डायरिया का प्रकोप ज्यादा देखने को मिलता है. यह दूषित पानी के सेवन से होता है. यह रोटावायरस और नोरोवायरस नामक वायरल इन्फेक्शन से फैलता है.
ये हैं डायरिया के लक्षण-
उल्टी-दस्त होना त्नशरीर के हर हिस्से में दर्द होना
कमजोरी महसूस करना त्नबुखार आना