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सबसे ज्यादा ख़ुदकुशी बंगलौर में, पर क्यों

शकील अख़्तर बीबीसी उर्दू संवाददाता, बैंगलोर से भारत के हाईटैक शहर बैंगलौर में आत्महत्या करने वालों की संख्या देश भर में सबसे ज़्यादा है. प्रतिस्पर्धा और बाहर से आकर यहां काम कर रहे लोगों को किसी तरह की मानसिक, सामाजिक मदद न मिल पाना मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक़ इसकी बड़ी वजह है. इससे निपटने के लिए […]

भारत के हाईटैक शहर बैंगलौर में आत्महत्या करने वालों की संख्या देश भर में सबसे ज़्यादा है.

प्रतिस्पर्धा और बाहर से आकर यहां काम कर रहे लोगों को किसी तरह की मानसिक, सामाजिक मदद न मिल पाना मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक़ इसकी बड़ी वजह है.

इससे निपटने के लिए लोगों को इस बात का प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि वो इस तरह के संभावित मामलों को समझ पाएं ताकि उन्हें वक़्त रहते मदद दी जा सके.

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नवीन उन दो हज़ार से अधिक लोगों में शामिल है जो एक आंकड़े के तौर पर बैंगलोर में हर वर्ष आत्महत्या करते हैं. पिछले महीने एक दिन में ग्यारह लोगों ने आत्महत्या की.

इस आधुनिक नगर में रोज़ छह से ज़्यादा लोग अपनी जान लेते हैं, भारत के किसी भी बड़े शहर से अधिक.

मनोचिकित्सा वैज्ञानिक डॉक्टर सीआर चंद्रशेखर कहते हैं, "बैंगलौर में कंपीटिशन बहुत है. हर कोई तेज़ी से पैसा कमाना चाहता है. विफलता के लिए कोई जगह नहीं है. यहां पूरे देश से लाखों लोग काम करने आते हैं."

जटिल होता जीवन

रुख़साना हसन आत्महत्या का रुझान रखने वालों और आत्महत्या में विफल रहने वालों के लिए एक सहायता केंद्र चलाती हैं. वह कहती हैं, "तेजी से आगे बढ़ने की होड़ में जीवन बहुत जटिल हो गया है. किसी में संयम नहीं है. क़र्ज़ में डूबना, रिश्तों में दरार पड़ना और बीमारी आत्महत्याओं का कारण है."

ज़बरदस्त प्रतिस्पर्धा, सफल होने का ज़ुनून मानसिक तनाव का सबसे बड़ा कारण है. निमहांस हॉस्पीटल के मनोविज्ञान चिकित्सा विभाग के डॉक्टर सेंथल कुमार रेड्डी का कहना है कि बाहर से आने वालों को उस तरह का जज़्बाती और मानसिक सपोर्ट नहीं मिल पाता जिसकी तनाव के समय में ज़रुरत होती है.

वे कहते हैं, "यहां आत्महत्या करने वालों में अधिकतर अवसाद या मानसिक रोग के शिकार होते हैं. सही वक़्त पर मदद देकर उन्हें आत्महत्या से रोका जा सकता है."

बैंगलौर के युवाओं में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृति को देखते हुए निमहांस ने आत्महत्या का इरादा रखने वालों के बारे में भांपने और उन्हें आत्महत्या से रोकने के लिए शिक्षकों, छात्रों, सरकारी संगठनों और अन्य लोगों के लिए ‘गेटकीपर’ नाम से ट्रेनिंग देनी शुरू की है.

डॉक्टर रेड्डी के मुताबिक थोड़ी सी समझ और अवसाद पीड़ितों को सहारा देने मात्र से हज़ारों लोगों की ज़िंदगी बचाई जा सकती है.

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