संयुक्त राष्ट्र : संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में गरीबी, शिशु मृत्यु एवं मातृ मृत्यु की समस्या बरकरार है, हालांकि कई प्रमुख वैश्विक लक्ष्य हासिल किए गए हैं लेकिन 2015 की समयसीमा तक विषमताओं को खत्म करने के लिए सतत प्रयास की जरुरत है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कल सहस्राब्दि विकास लक्ष्य रिपोर्ट-2014 जारी की. इसमें कहा गया है कि गरीबी कम करने, स्वच्छ पेयजल के उन्नत स्रोतों तक पहुंच बढ़ाने, झुग्गी बस्तियों में रहने वालों की जिंदगी में सुधार करने और प्राथमिक विद्यालयों में लैगिंग समानता सुनिश्चित करने जैसे कई प्रमुख वैश्विक सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों को हासिल किया जा चुका है.
रिपोर्ट के अनुसार, कई ऐसे लक्ष्य हैं जो 2015 तक पूरा होने के करीब हैं तथा अगर मौजूदा स्थिति बरकरार रही तो दुनिया मलेरिया, तपेदिक और एचआईवी के उपचार तक पहुंच से संबंधित सहस्राब्दि विकास लक्ष्य से आगे निकल जाएगी. इस रिपोर्ट में उन आठ प्रमख गरीबी विरोधी लक्ष्यों का मुख्य रुप से उल्लेख किया गया है जिन पर 2000 में एक संयुक्त राष्ट्र शिखर बैठक में वैश्विक नेताओं ने सहमति जताई थी.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2012 में भारत में पांच साल की कम उम्र के बच्चों की सर्वाधिक मौतें हुईं. इस दौरान पांच साल की उम्र तक पहुंचने से पहले 14 लाख बच्चों की मौत हो गई. इसके अनुसार शिश मृत्यु दर को कम करने में दक्षिण एशिया में मजबूत और स्थायी प्रगति हुई है.
दुनिया के सभी क्षेत्रों में प्रगति के बावजूद विकासशील क्षेत्रों में साल 2013 में प्रति एक लाख जन्म पर मातृ मृत्यु दर 230 रही. यह आंकड़ा विकसित देशों के मुकाबले 14 गुना ज्यादा है. विकसित क्षेत्रों में प्रति लाख जन्म पर मातृ मृत्यु दर 16 रही. इसमें कहा गया कि भारत में इस अवधि में करीब 50,000 महिलाओं की मौत प्रसव के समय हुई, जबकि नाइजीरिया में यह आंकड़ा करीब 40,000 का था.