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रेलवे को क्षमता में विस्तार करने की जरूरत

।। राकेश मोहन ।। (आरबीआइ के पूर्व डिप्टी गवर्नर) भारतीय रेल के सामने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से लेकर बुलेट ट्रेन चलाने तक की कई चुनौतियां हैं. हालिया आम चुनाव के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से भारतीय रेलवे की तसवीर बदलने का वादा किया था. आधुनिकीकरण समय की दरकार है, इसमें कोई […]

।। राकेश मोहन ।।

(आरबीआइ के पूर्व डिप्टी गवर्नर)

भारतीय रेल के सामने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से लेकर बुलेट ट्रेन चलाने तक की कई चुनौतियां हैं. हालिया आम चुनाव के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से भारतीय रेलवे की तसवीर बदलने का वादा किया था. आधुनिकीकरण समय की दरकार है, इसमें कोई संदेह नहीं, लेकिन सरकार इसे कैसे अंजाम देगी, यह एक बड़ा सवाल है. क्या इस संदर्भ में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सही फैसला होगा? और क्या निवेशक भारतीय रेल में निवेश करने में दिलचस्पी दिखायेंगे, जो पिछले कई सालों से घाटे में चल रही है.

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भारतीय रेल की तसवीर बदलने के लिए व्यापक कार्यक्रमों के अलावा इस दिशा में कठोर कदम उठाने की जरूरत है, ताकि इसकी क्षमता में बढ़ोतरी की जा सके. साथ ही, जवाबदेही के तरीके में व्यापक सुधार की जरूरत है. रेलवे के मौजूदा ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा. एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि जवाबदेही तय करने की बेहतर व्यवस्था होने पर ही गैर-सरकारी निवेशकों को इस क्षेत्र में आकर्षित किया जा सकता है. उम्मीद की जा सकती है कि मौजूदा एनडीए सरकार इस ओर ध्यान देगी.

इसी संदर्भ में एक मार्च, 2014 को नेशनल ट्रांसपोर्ट डेवलपमेंट पॉलिसी कमिटी रिपोर्ट सरकार को सौंपी गयी है. इस रिपोर्ट में अगले 20 सालों के मद्देनजर भारतीय रेल की रूपरेखा तय की गयी है. हालांकि, इसकी सिफारिशों को तुरंत लागू करने की जरूरत नहीं है, लेकिन उम्मीद की जा सकती है कि सरकार इसे चरणबद्ध रूप में लागू करेगी. हमें यह समझना होगा कि पिछले 60 वर्षो में रेलवे का यातायात सेक्टर में योगदान कितना कम हुआ है. 1950 में जहां कुल माल ढुलाई का तकरीबन 90 फीसदी हिस्सा रेलवे द्वारा होता था, वह अब कम होते हुए 30-33 फीसदी के आसपास सिमट गया है.

वर्ष 2000 में सरकार ने सड़कों की क्षमता बढ़ाने के लिए नेशनल हाइवे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट (एनएचडीपी) समेत सड़क निर्माण संबंधी अन्य योजनाओं की शुरुआत की, जिनके नतीजे अच्छे रहे. इस दौरान देशभर में व्यापक पैमाने पर सड़कें बनायी गयीं. रेलवे की क्षमता में विस्तार के लिए भी इसी तरह के कार्यक्रम की जरूरत है, ताकि दीर्घावधि में इसकी क्षमता बढ़ सके.

इस संबंध में कुछ दिलचस्प आंकड़ों से आप इसे आसानी से समझ सकते हैं. 1990 में देश के जीडीपी का तकरीबन 0.4 फीसदी हिस्सा सड़कों के निर्माण में निवेश किया जाता था, जबकि अब यह बढ़ कर एक फीसदी के आसपास पहुंच गया है. लेकिन निवेश में बढ़ोतरी की सिफारिश करने के बावजूद रेलवे में जीडीपी का तकरीबन 0.4 फीसदी ही निवेश किया जा रहा है और अगले एक दशक तक इसे बढ़ा कर एक फीसदी करने की जरूरत है. ऐसा करना कोई मुश्किल काम नहीं है, क्योंकि सड़कों के मामले में हमने बड़ी उपलब्धि हासिल की है और यदि इच्छाशक्ति हो तो हम रेलवे की क्षमता को भी बढ़ा सकते हैं.

अगले पांच वर्षो तक रेलवे को सालाना 90 हजार करोड़ निवेश की दरकार है, ताकि इसके नेटवर्क में व्यापक बढ़ोतरी की जा सके, लेकिन 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान करीब 30 हजार करोड़ रुपये ही निवेश किया गया. इसलिए यदि सरकार रेलवे की क्षमता बढ़ाना चाहती है, तो इसके बुनियादी ढांचे में बढ़ोतरी के लिए इस क्षेत्र में भारी निवेश करना होगा.

(मनीकंट्रोल. कॉम से साभार)

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