क्या यह भाजपा का स्वर्ण युग है और इसके नायक नरेंद्र मोदी हैं? यह सवाल आज हर किसी की जुबान पर है. सब यह जानना चाहते हैं कि क्या नरेंद्र मोदी अपने शासनकाल के पांच वर्षों को भाजपा का स्वर्ण युग बना देंगे, जिसकी मिसाल भविष्य में दी जायेगी, या फिर यह कहना अभी जल्दी होगी कि मोदी युग भाजपा का स्वर्ण युग बन जायेगा.
मोदी के पास है तमाम शक्तियां
किसी भी जनतांत्रिक देश में अगर सरकार स्पष्ट बहुमत से चुनकर आये तो उसे काम करने में किसी का मुंह नहीं ताकना पड़ता है और वह खुद निर्णय कर सकती है. इस नजरिये से देखें, तो नरेंद्र मोदी की सरकार किसी की मुखापेक्षी नहीं है क्योंकि उसे जादुई आंकड़े से अधिक बहुमत प्राप्त है.
ऐसे में अगर नरेंद्र मोदी अपनी किसी विकास योजना को देश में लागू करना चाहें, तो उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं होगी. एनडीए के लोग जो उनके साथ है,अगर वे मोदी का विरोध भी करते हैं, तो मोदी उन्हें बाहर का रास्ता दिखाकर अपनी योजनाओं पर कार्य जारी रख सकते हैं.
वादों को पूरा करें नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी ने चुनाव के पहले जितने वादे आम लोगों से किये हैं,उतने वादे आज तक शायद ही किसी राजनेता ने किये होंगे. अब जबकि उनके हाथों में सत्ता निहित है, तो यह जरूरी है कि वे अपने वादों को धरातल पर उतारें. अगर नरेंद्र मोदी ने अपने वादों में से 60 प्रतिशत भी पूरे कर दिये, तो मोदी युग को स्वर्ण युग कहने में किसी को गुरेज नहीं होगा.
भाजपा का अतीत
आज का भाजपा पहले जनसंघ के नाम से जाना जाता था. 1951 में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की थी. 1953 में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की संदेहास्पद मौत के बाद पं दीनदयाल उपाध्याय संघ के अध्यक्ष बने. उनके साथियों में अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी शामिल थे. 1968 में दीनदयाल उपाध्याय की हत्या कर दी गयी, उनके बाद अटलबिहारी वाजपेयी संघ के अध्यक्ष बने.
1977 में जब इंदिरा गांधी के विरोध में सभी पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा, तो जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया. मोरारजी देसाई की सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने थे. लेकिन 1979 में मोरारजी देसाई के इस्तीफा देने के बाद जनता पार्टी का विघटन हो गया.
1980 में जनसंघ के सदस्यों ने भारतीय जनता पार्टी का गठन किया और अटल बिहारी वाजपेयी उसके अध्यक्ष बने. 1984 में जब चुनाव हुआ तो भाजपा को मात्र दो सीट मिली थी. लेकिन धीरे-धीरे पार्टी ने अपना विस्तार किया. हिंदुत्व की विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए भाजपा ने रामजन्मभूमि के मुद्दे को अपने कब्जे में कर लिया और अपना वोट बैंक बढ़ाया.
1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी लेकिन बहुमत का आंकड़ा नहीं जुटा पाने के कारण भाजपा की सरकार मात्र 13 दिन ही चली. 1999 में एनडीए की सरकार बनी और भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनके पास बहुमत नहीं था. यही कारण था कि यह भाजपा का स्वर्ण युग नहीं बन पाया.